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बस्तरिया काली-मिर्च ने राष्ट्रीय-संगोष्ठी में मचाई जबरदस्त धूम,देश में काली मिर्च का प्रति पेड़ उत्पादन डेढ़ से दो किलो, जबकि बस्तरिया किस्म प्रति पेड़ 8 से 10 किलो!
- भारत-सरकार (डीबीटी) सलाहकार ने "मां दंतेश्वरी हर्बल समूह" की उपलब्धियों की मुक्तकंठ से की तारीफ; बताया ,'21-22 साल पहले' भी आए थे इस फॉर्म को देखने,
- मिजोरम कृषि विश्वविद्यालय की काली-मिर्च की परियोजना में "मां दंतेश्वरी हर्बल समूह भी बनेगा सहायक,
- देश में काली मिर्च का प्रति पेड़ औसत उत्पादन है डेढ़ से दो किलो, जबकि बस्तरिया नई किस्म प्रति पेड़ दे रही है 8 से 10 किलो। इतना ही नहीं गुणवत्ता में भी यह साबित हुई है बेजोड़ ।
- ग्लोबल मार्केट में मचेगी धूम: "एमडी बोटैनिकल्स" करेगी कालीमिर्च, हर्बल्स मसाले, मिलेट्स जैसे सभी बस्तरिया उत्पादों की ब्रांडिंग मार्केटिंग ,
- 11 अगस्त 2023 को इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर छत्तीसगढ़ द्वारा औषधीय, सगंध पौधों तथा मसालों पर शीर्ष विशेषज्ञों की राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित की गई।
सेमिनार की विशेषज्ञ आमंत्रित वक्ता "मां दंतेश्वरी हर्बल फार्म्स एंड रिसर्च सेंटर" चिखलपुटी कोंडागांव की गुणवत्ता तथा विपणन प्रमुख अपूर्वा त्रिपाठी ने बस्तर की "ब्लैक गोल्ड" कही जाने वाली काली मिर्च की सफल किस्म "मां दंतेश्वरी काली मिर्च-16" पर अपनी प्रस्तुति देते हुए बताया कि कैसे डॉ राजाराम त्रिपाठी के मार्गदर्शन में इस संस्थान द्वारा विकसित बस्तरिया काली-मिर्च "एमडीबीपी 16" बस्तर के किसानों की जिंदगी को बदल रही है, बेहतर बना रही है। उन्होंने कहा कि वर्तमान में देश में काली मिर्च का प्रति पेड़ उत्पादन औसत डेढ़ से दो किलोग्राम है जबकि बस्तर में डॉ त्रिपाठी के द्वारा विकसित यह नई किस्म नई किस्म प्रति पेड़ 8 से 10 किलो काली मिर्च का उत्पादन दे रही है, इतना ही नहीं इसकी गुणवत्ता भी शेष भारत की काली मिर्च से बेहतर है।
उन्होंने सभी आमंत्रित विशेषज्ञों को कोंडागांव चलकर अपनी काली मिर्च की खेती इसके उत्पादन तथा गुणवत्ता को देखने पर रखने हेतु आमंत्रित भी किया। इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ गिरीश चंदेल ने कहा कि "मां दंतेश्वरी हर्बल फार्म" छत्तीसगढ़ में ही नहीं बल्कि संभवतः पूरे देश में पहला है जिसने इस तरह की उच्च स्तरीय मल्टी-लेयर फार्मिंग शुरू की है। आगे उन्होंने देश के वैज्ञानिकों को छत्तीसगढ़ बस्तर में हो रही काली-मिर्च की सफल खेती की विशिष्ट पद्धति के बारे में बताया। संगोष्ठी में इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के साथ ही देश के कुछ अन्य कृषि विश्वविद्याल भी "मां दंतेश्वरी हर्बल ग्रुप" के सहयोग से अपने राज्यों के विभिन्न क्षेत्रों में काली मिर्च की खेती के विस्तार किया जाना तय किया गया। इसका पायलट प्रोजेक्ट बहुत जल्द शुरू किया जाएगा।
मिजोरम विश्वविद्यालय आइजाल भी काली-मिर्च की खेती में इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के साथ हाथ मिलाएगा इस योजना में मां दंतेश्वरी हर्बल समूह की भी मार्गदर्शक भूमिका व सक्रिय भागीदारी होगी। इस अवसर पर डॉ. राजाराम त्रिपाठी के काली मिर्च के खेतों से सीधा वीडियो प्रसारण संगोष्ठी के वैज्ञानिकों, विभिन्न संकायों के छात्रों , शोधार्थियों तथा उपस्थित प्रगतिशील किसानों को दिखाया गया, जिसे सभी ने बहुत सराहा। डीबीटी-आईएलएस भारत सरकार नई दिल्ली के सलाहकार डॉ मोहम्मद असलम, जिन्होंने दो दशक पूर्व भी "मां दंतेश्वरी फार्म का दौरा किया था, अपने पिछले भ्रमण की यादें ताजा करते हुए वर्तमान में "मां दंतेश्वरी हर्बल फार्म तथा रिसर्च सेंटर के द्वारा विकसित "उच्च लाभदायक बहुस्तरीय कृषि" के सफल मॉडल को देश की खेती और किसानों के लिए एक बड़ी उपलब्धि बताते हुए सराहना की, और इस समूह के साथ मिलकर अंचल के अन्य किसानों को जोड़ते हुए संयुक्त रूप से काली मिर्च की खेती परियोजना शुरू करने की पहल का प्रस्ताव भी रखा।
अपूर्वा ने अपने समूह के लगभग 7 एकड़ में पिछले तीन दशकों में जंगल उगाकर तैयार किए गए "एथेनो मेडिको गार्डन" के बारे में भी बताया, जहां लगभग 340 प्रकार की औषधीय जड़ी-बूटियां संरक्षित हैं और उनमें से लगभग 25 तो विलुप्तप्राय व 'रेड डेटा बुक' में हैं। अपूर्वा त्रिपाठी ने सभी को बधाई देते हुए कहा कि यह बस्तर व छत्तीसगढ़ के लिए विशेष गर्व का विषय है कि, अपने विशिष्ट गुणवत्ता के कारण अल्प समय में ही अंतरराष्ट्रीय बाजार में अपनी धाक जमाने वाली बस्तर की ब्लैक-गोल्ड कही जाने वाली काली-मिर्च की ब्रांडिंग व मार्केटिंग अब "एमडी बॉटनिकल्स" के तहत की जा रही है और जल्द ही यह बस्तर में किसानों द्वारा उगाए गए हर्बल्स ,मसाले,मिलेट्स के साथ ही काली मिर्च भी बस्तरिया-ब्रांड 'एमडी बोटैनिकल्स' के जरिए भारत और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ऑनलाइन सहजता से उपलब्ध होगा।