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आजन्म शिष्य ही बने रहे बिहार योग विद्यालय के गुरूओं के

Gaurav Maruti
27 July 2021 10:25 PM IST
आजन्म शिष्य ही बने रहे बिहार योग विद्यालय के गुरूओं के
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कुमार कृष्णन

पूरी दुनिया में एक प्रखर शिक्षक के रूप में प्रसिद्ध भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम बिहार के मुंगेर स्थित विश्व प्रसिद्ध बिहार योग विद्यालय के गुरूओं के लिए आजन्म शिष्य ही रहे। वे राष्ट्रपति रहते अपने गुरू स्वामी शिवानंद सरस्वती के शिष्य परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती द्वारा स्थापित बिहार योग विद्यालय में दो बार गए। पर राष्ट्रपति के रूप में नहीं, शिष्य के रूप में। यही वजह थी कि राष्ट्रपति का सारा प्रोटोकॉल बिहार योग विद्यालय परिसर के बाहर तक ही सीमित रहता था।

मजेदार वाकया हुआ। डॉ. कलाम ने राष्ट्रपति बनने के कुछ समय बाद ही बिहार योग विद्यालय में जाने की इच्छा व्यक्त की। इस बात से योग विद्यालय के व्यस्थापकों को अवगत कराया गया तो एक समस्या खड़ी हुई कि आश्रम के भीतर प्रोटोकॉल का पालन कैसे होगा। कहते हैं कि राष्ट्रपति भवन को जब इस स्थिति से अवगत कराया गया तो वहां से जबाव मिला कि राष्ट्रपति जी आश्रम के भीतर शिष्य के नाते जाना चाहेंगे। लिहाजा कैंपस में कोई प्रोटोकॉल नहीं होगा। ऐसा हुआ भी। डॉ. कलाम मुंगेर आश्रम में गए तो उन्होंने परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती के उत्तराधिकारी परमहंस स्वामी निरंजनानंद सरस्वती के सत्संग में बाकी शिष्यों के साथ ही बैठना पसंद किया।

दरअसल बिहार योग विद्यालय के प्रति उनके विशेष अनुराग के पीछे एक घटना है। महासमाधिलीन परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती के गुरू स्वामी शिवानंद सरस्वती ऋषिकेश में अपने आश्रम में रहते थे। वे दशनामी संन्यास परंपरा के अग्रदूत थे। उन्होंने योग को एक ऐसी जीवनोपयोगी विज्ञान के रूप में प्रस्तुत किया था जिसे हर व्यक्ति सरलता से अपने जीवन में अपना सकता था। उनकी ख्याति दूर-दूर तक फैली हुई थी। परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती ने एक बार कहा था स्वामी शिवानंद जी न तो कभी पाश्चात्य देशों में गए और न ही पाच्य देशों में, लेकिन आज वे सर्वत्र छाए हुए हैं। उसी ऋषिकेश आश्रम में एक ऐसी घटना हुई कि पूर्व राष्ट्रपति और हरदिल अजीज डॉ एपीजे अब्दुल कलाम का जीवन-दर्शन ही बदल गया। यह संयोग था या पूर्वनिर्धारित भाग्य का लेखा कि वह उस दिन ऋषिकेश स्वामी शिवानंद के आश्रम में पहुँच गये । वह वायु सेना चयन बोर्ड में दूसरा इंटरव्यू देने के लिए मैं देहरादून … । चयन बोर्ड में बुद्धि के बजाय व्यक्तित्व पर ज्यादा जोर था । शायद वे स्पष्ट तौर पर शारीरिक योग्यता को ही देख रहे थे । परिणामत:वायुसेना के लिए पच्चीस में से जिन आठ उम्मीदवारों का चयन हुआ,उसमें मैं नौवें नंबर पर ही आकर अटक गया । इसे लेकर मेरे भीतर एक गहरी हूक- सी उठी । किंकर्तव्यविमूढ़ - सा हो गया मैं । मैं चयन बोर्ड से बाहर आ गया और एक चटटान के किनारे पर खड़ा हो गया । नीचे एक झील थी ऊँचाई से एक झरना गिर रहा था । कभी झील झिलमिलाती,कभी झरना स्थिर दिखता । मुझे पता था कि आनेवाले दिन काफी मुश्किल भरे होंगे । ऐसे कई सवाल थे ,जो जवाब चाहते थे । ऊहापोह में उलझा मैं ऋषिकेश आ गया । मैनें गंगा में स्नान किया और इसकी शुद्धता का आनंद लिया । इसके बाद मैं छोटी सी पहाड़ी पर बने शिवानंद आश्रम में गया । जब मैंने आश्रम में प्रवेश किया तो मुझे तीव्र कंपन महसूस हुए । मैंने देखा कि चारों ओर बड़ी संख्या में साधु समाधि लगाए बैठे हैं । मैंने पढ़ा था कि साधु आत्मिक व्यक्ति होते हैं -- वे व्यक्ति, जो अपने अंतर्ज्ञान से ही सबकुछ जान लेते हैं । अपने उदासी के क्षणों में ही मैं उन सवालों का जवाब खोजने चला, जो मुझे परेशान किये हुए थे । मैं स्वामी शिवानंद से मिला -- बिल्कुल भगवान बुद्ध की तरह दिखनेवाले । वह स्वेत धवल धोती और पैरों में खड़ाऊँ पहने हुए थे । मैं उनकी अत्यंत सम्मोहक,एकदम बच्चे जैसी मुस्कान और कृपालु भाव देखकर दंग रह गया । मैंने स्वामी जी को अपना परिचय दिया । मेरे मुस्लिम नाम की उनमें जरा भी प्रतिक्रिया नहीं हुई । मैं और आगे कुछ बोल पाता, इससे पहले ही उन्होंने मेरी उदासी का कारण पूछ लिया । उन्होंने कहा ,' यह मत पूछना कि मैंने यह कैसे जाना कि तुम उदास हो । 'और फिर मैंने उनसे यह नहीं पूछा ।मैंने उन्हें भारतीय वायुसेना में अपने नहीं चुने जा पाने की असफलताओं के बारे में बताया । उन्होंने मुस्कराते हुए मेरी सारी चिंताएँ दूर कर दी और फिर धीमें तथा गहरे स्वर में कहा ' इच्छा जो तुम्हारे हृदय और अंतरात्मा से उत्पन्न होती हो , जो शुद्ध और मन से की गई हो , एक विस्मित कर देनेवाली विधुत- चुंबकीय ऊर्जा लिए होती है । यही ऊर्जा हर रात को, जब मस्तिष्क सुषुप्त अवस्था में होता है आकाश में चली जाती है । हर सुबह यह ऊर्जा ब्रह्मांडीय चेतना लिये वापस शरीर में प्रवेश करती है । जिसकी परिकल्पना की गई है, वह निश्चित रूप से प्रकट होती नजर आएगा । नौजवान, तुम इस तथ्य पर उसी तरह अनंत काल भरोसा कर सकते हो जैसे तुम हमेशा सूर्योदय के अकाट्य सत्य पर भरोसा करते हो । 'जब शिष्य चाहेगा, गुरु हाजिर होगा -- कितना सच है यह ! यहाँ गुरु अपने शिष्य को रास्ता दिखाता है, जो अपने रास्ते से थोड़ा भटक गया है -- ' अपनी नियति को स्वीकार करो और जाकर अपना जीवन अच्छा बनाओ । नियति को मंजूर नहीं था कि तुम वायुसेना के पायलट बनो । नियति तुम्हें जो बनाना चाहती है, उसके बारे में अभी कोई भीं बता सकता है; लेकिन नियति को तुम्हें यहाँ लाना ही था । असमंजस से निकल अपने अस्तित्व के लिए सही उददेश्य की तलाश करो । अपने को ईश्वर की इच्छा पर छोड़ दो ।' स्वामी शिवानंद ने कहा। इस घटना की चर्चा उन्होंने अपनी पुस्तक 'अग्नि की उड़ान' में की है।राष्ट्रपति रहते हुए वे दो बार मुंगेर आए। पहली बार डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम 31 मई 2003 को मुंगेर आए। इस दौरान जहां वे विश्व प्रसिद्ध बिहार योग विद्यालय गए,वही दूसरी ओर खानकाह रहमानी भी गए। बिहार योग विद्यालय में बच्चों के निमंत्रण पर दूसरी बार 14 फरबरी को मुंगेर आए। यहां पोलो ग्राउंड में बच्चों के विशाल सभा को संबोधित किया। मुंगेर में स्मृति चप्पे—चप्पे में है।

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