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जब सदन में श्यामा प्रसाद मुखर्जी से नेहरू ने मांगी थी माफ़ी!
भारतीय जनसंघ के संस्थापक और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के प्रमुख आदर्शों में से एक डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की आज जयंती है. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने जवाहरलाल नेहरू से अलग होकर 1951 में भारतीय जन संघ की नींव रखी थी. उन्होंने उस समय कश्मीर में दो प्रधानमंत्री का विरोध किया. जम्मू-कश्मीर में श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने धारा 370 का विरोध शुरू किया. उन्होंने एक देश में दो विधान, एक देश में दो निशान, एक देश में दो प्रधान नहीं चलेंगे नहीं चलेंगे जैसे नारे दिए.
डॉक्टर मुखर्जी का जन्म 6 जुलाई, 1901 को एक बंगाली परिवार में हुआ था. उनकी माता का नाम जोगमाया देवी मुखर्जी था और पिता आशुतोष मुखर्जी बंगाल के एक जाने-माने व्यक्ति और कुशल वकील थे. डॉ. मुखर्जी ने कलकत्ता विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री प्रथम श्रेणी में 1921 में प्राप्त की थी. इसके बाद उन्होंने 1923 में एम.ए. और 1924 में बी.एल. किया. वे 1923 में ही सीनेट के सदस्य बन गए थे. उन्होंने अपने पिता की मृत्यु के बाद कलकता हाईकोर्ट में एडवोकेट के रूप में अपना नाम दर्ज करवाया. बाद में वो सन 1926 में 'लिंकन्स इन' में अध्ययन करने के लिए इंग्लैंड चले गए और 1927 में बैरिस्टर बन गए.
जब नेहरू ने मांगी माफ़ी
"श्यामा प्रसाद मुखर्जी नेहरू की पहली सरकार में मंत्री थे. जब नेहरू-लियाक़त पैक्ट हुआ तो उन्होंने और बंगाल के एक और मंत्री ने इस्तीफ़ा दे दिया. उसके बाद उन्होंने जनसंघ की नींव डाली."
"आम चुनाव के तुरंत बाद दिल्ली के नगरपालिका चुनाव में कांग्रेस और जनसंघ में बहुत कड़ी टक्कर हो रही थी. इस माहौल में संसद में बोलते हुए श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने कांग्रेस पार्टी पर आरोप लगाया कि वो चुनाव जीतने के लिए वाइन और मनी का इस्तेमाल कर रही है."
इस आरोप का नेहरू ने काफ़ी विरोध किया. इस बारे में इंदर मल्होत्रा ने बताया था, "जवाहरलाल नेहरू समझे कि मुखर्जी ने वाइन और वुमेन कहा है. उन्होंने खड़े होकर इसका बहुत ज़ोर से विरोध किया."
"मुखर्जी साहब ने कहा कि आप आधिकारिक रिकॉर्ड उठा कर देख लीजिए कि मैंने क्या कहा है. ज्यों ही नेहरू ने महसूस किया कि उन्होंने ग़लती कर दी. उन्होंने भरे सदन में खड़े होकर उनसे माफ़ी मांगी. तब मुखर्जी ने उनसे कहा कि माफ़ी मांगने की कोई ज़रूरत नहीं है. मैं बस यह कहना चाहता हूँ कि मैं ग़लतबयानी नहीं करूँगा."
रहस्यमय परिस्थितियों में हुई थी मौत?
बता दें कि श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने साल 1953 में बिना परमिट के कश्मीर का दौरा किया, जहां उन्हें जम्मू-कश्मीर की तत्कालीन शेख अब्दुल्ला सरकार ने गिरफ्तार कर लिया था. इसी दौरान रहस्यमय परिस्थितियों में उनकी मौत हो गई. केंद्र की सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी (BJP) श्यामा प्रसाद मुखर्जी को अपना आदर्श मानती है. बीजेपी का आज भी ये प्रमुख नारा है 'जहां हुए बलिदान मुखर्जी वो कश्मीर हमारा है, जो कश्मीर हमारा है, वह सारा का सारा है.'