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बीजेपी सांसद वरुण गांधी बोले, पूर्व RBI गवर्नर रघुराम राजन जी द्वारा उठाई गई चिंता वास्तविक, मैंने तो ये 4 साल पहले ही लिखी थी बड़ी बात
बीजेपी सांसद वरुण गांधी ने कहा कि पूर्व RBI गवर्नर रघुराम राजन जी द्वारा उठाई गई चिंता वास्तविक। मैनें लगभग 4 साल पहले रोजगार सृजन की आवश्यकता के बारे में अपनी चिंताओं को उठाते हुए यह लेख लिखा था। यहां डेटा कोरोना महामारी के पूर्व की है, तब से स्थितियां और खराब हुई हैं। किसी भी देश के पास युवा आबादी होना वरदान है, किन्तु युवाओं के पास रोजगार न होना सबसे बड़ा अभिशाप है। युवाओं की स्थिति यदि खराब हुई, तो भारत को भी इसका खामियाजा भुगतना होगा। स्थिति हाथ से निकलने से पूर्व सार्थक कदम उठाने होंगे।
आज भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने कहा है कि अगर भारत में बेरोजगारी दर उच्च रहती है, तो इससे 'उद्यमिता' राजनेता हो सकते हैं जो वास्तव में नौकरियों को बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय धार्मिक विभाजन को पूरा करते हैं।
वरुण गांधी ने यह लेख चार साल पहले लिखा था
कायदे से भारत युवाओं के लिए रोजगार पैदा करने वाला आकर्षक स्थान होना चाहिए-आखिर, यह दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में एक है और भारी मात्रा में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश आकर्षित कर रहा है। फिर भी, कहीं कुछ गड़बड़ है-सरकारी क्षेत्र में भर्ती का एलान होते ही भारी संख्या में आवेदक दौड़ पड़ते हैं, जिनमें से अधिकांश अति शिक्षित होते हैं। हाल ही में रेलवे भर्ती बोर्ड ने करीब 1.9 लाख पद भरने के लिए परीक्षाएं आयोजित कीं, तो 4.25 करोड़ से अधिक आवेदन आए। ग्रुप डी पदों के लिए पीएच.डी. धारियों ने आवेदन किया।
उत्तर प्रदेश में 62 पुलिस मैसेंजर पदों के लिए 93,000 से अधिक उम्मीदवार थे, जबकि राजस्थान में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी के मात्र पांच पदों के लिए 23,000 से ज्यादा उम्मीदवार थे। सितंबर 2015 में, चपरासी के 368 पदों के लिए 23 लाख से अधिक आवेदन आए थे, जिनमें से 250 से अधिक डॉक्टरेट और करीब 25,000 स्नातकोत्तर थे। छत्तीसगढ़ में आर्थिक और सांख्यिकी निदेशालय को अगस्त, 2015 में चपरासी के 30 पदों के लिए 75,000 से अधिक आवेदन प्राप्त हुए, जबकि अप्रैल, 2018 में जादवपुर विश्वविद्यालय को चपरासी के 70 पदों के लिए 11,000 से अधिक आवेदन मिले।
जाहिर है, हमारे जॉब मार्केट में कुछ गड़बड़ है। निजीकरण के आगमन के बाद भी सार्वजनिक क्षेत्र अब भी नौकरी की बेहतर सुरक्षा प्रदान करता है और कई सेवानिवृत्ति लाभ देता है, जिसका बहुत कम वेतन देने वाला निजी क्षेत्र कभी मुकाबला नहीं कर सकता। सातवें वेतन आयोग के तहत एक सामान्य सहायक का वेतन भत्ता, जो सबसे निचली रैंक का सरकारी कर्मचारी है, 22,579 रुपये है, जो निजी क्षेत्र के मुकाबले दोगुना है। हमारे श्रम बाजार का आंकड़ा बहुत अस्पष्ट और बिखरा है, इसलिए इस समस्या की गहराई मापना मुश्किल है।
नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस (एनएसएसओ) का रोजगार से संबंधित जितना भी आंकड़ा उपलब्ध है, वह ताजा है; जबकि श्रम ब्यूरो द्वारा तैयार तिमाही रोजगार सर्वे, और सेंटर फॉर मॉनीटरिंग इंडियन इकोनॉमी जैसे अन्य स्रोतों का दायरा सीमित है। तिमाही रोजगार सर्वे (क्यूईएस) रिपोर्ट 8 प्रमुख उद्योगों में पैदा हुए रोजगार के बारे में है। हालांकि ऐसे सर्वे रोजगार की गुणवत्ता दर्ज कर पाने में नाकाम हैं, जिससे प्रच्छन्न और लाभकारी रोजगार को लेकर हमारे पास कोई जानकारी नहीं होती।
7वां तिमाही रोजगार सर्वे बताता है कि 1.36 लाख नौकरियां पैदा की गईं-जो पिछली तिमाही में पैदा 64,000 नौकरियों की तुलना में काफी अधिक है-पर यह हर महीने कार्य बल में शामिल हो जाने वाले 10 लाख से अधिक लोगों की जरूरतें पूरी नहीं कर सकतीं। ईपीएफओ नामांकन का उपयोग संकेतक के रूप में किया जाता है, पर यह जानकारी अपुष्ट हो सकती है और इसका मतलब यह भी हो सकता है कि मौजूदा रोजगार को केवल औपचारिक शक्ल दी जा रही है। एनएसएसओ और क्यूईएस सर्वेक्षणों के दायरे और आवृत्ति का विस्तार स्पष्टता लाने की दिशा में भी मददगार होगा। आइए, जो आंकड़े उपलब्ध हैं, उन पर गौर करते हैं।
हमारे कर्मचारियों का लगभग 80 प्रतिशत अनौपचारिक क्षेत्र में लगा हुआ है, और मात्र 17 फीसदी नियमित वेतन पाते हैं। 5वें वार्षिक रोजगार-बेरोजगार सर्वेक्षण में सामने आया कि केवल 21.6 फीसदी कर्मचारियों को सामाजिक सुरक्षा का लाभ मिला है। बढ़ते निवेश के चलते ज्यादा सार्वजनिक खर्च इस रोजगार संकट से निपटने का समाधान पेश कर सकता है। हालांकि आठ साल की निवेश मंदी, तकरीबन स्थिर निर्यात और बढ़ते आयात बोझ के कारण ऐसे निवेश का फायदा मिलने के अवसर सीमित हैं।
बढ़ता ऑटोमेशन समस्या को और गंभीर बनाता है तथा विकास मार्गों को अवरुद्ध कर देता है। विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार, ऑटोमेशन के कारण करीब 69 फीसदी रोजगार खतरे में हैं, लिहाजा रोजगार के नए तरीकों के निर्माण पर ध्यान देना होगा। वस्त्र जैसे प्रमुख उद्योगों में रोजगार उत्पादन नीति और नीयत के जाल में उलझा है। देश को समग्र राष्ट्रीय रोजगार नीति चाहिए, जो रोजगार के अलावा विभिन्न सामाजिक-आर्थिक मुद्दों पर नीतिगत इनपुट प्रदान कर सके। इसमें कारगर समाधान देने के साथ रोजगार, चिकित्सा सेवा और सामाजिक सुरक्षा नीतियों का युवा-उन्मुख नजरिया भी दिखना चाहिए।
हमें श्रम कानूनों में सुधार करने और रोजगार पैदा करने वाले उद्योगों को कर लाभ देने की जरूरत है-ऑटोमोटिव की तुलना में परिधान उद्योग 80 गुना अधिक श्रम प्रधान है; इस्पात से 240 गुना अधिक श्रम प्रधान है; और इसमें प्रति एक लाख निवेश पर 29 अतिरिक्त नौकरियां (महिलाओं के लिए आठ) पैदा की जा सकती हैं। ऐसे ही चमड़ा और फुटवियर क्षेत्र में प्रति एक लाख के निवेश से करीब सात नई नौकरियां पैदा की जा सकती हैं।
हमें अपने रोजगार दफ्तरों को भी सुधारने, उन्हें जॉब सेंटर में बदलने की जरूरत है। इन्हें रोजगार, समुदाय व उपयोगी कर्मियों के नेटवर्क के साथ युवा लोगों को जोड़ने और भर्ती संचालन के सहायक के रूप में काम करना चाहिए। राष्ट्रीय कौशल विकास निगम (एनएसडीसी) को युवा विकास सहायता कार्यक्रम शुरू करने पर विचार करना चाहिए, जिसके तहत युवाओं को कौशल विकसित करने में मदद देने वाले गैरसरकारी संगठनों को वित्तीय सहायता दी जाए। जिला स्तर पर अप्रेंटिसशिप प्रोग्राम चलाने की भी जरूरत है।
उद्यमिता को सामाजिक प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए। एसएमई (लघु और मध्यम उद्यम) कारोबार शुरू करने में बाधाओं को हटाना एक प्रमुख उपाय है। फाइनेंस तक पहुंच की कमी, सरकारी योजनाओं के बारे में सीमित जागरूकता और बुनियादी ढांचे की बाधाएं विकास की कोशिशों का गला घोंट रही हैं। एसएमई क्षेत्र में भारी निवेश करने की दिशा में बैंकिंग क्षेत्र को प्रोत्साहित करने की जरूरत है।
नेताओं और युवाओं के बीच पीढ़ियों का तालमेल टूट गया है और आर्थिक समृद्धि न आने से युवाओं में गुस्सा है। हमारे जनसांख्यिकीय लाभ का भी इस्तेमाल नहीं हो पा रहा। उत्साहजनक माहौल प्रदान करना हम सबके हित में है और हमारी जिम्मेदारियों का हिस्सा है। बेरोजगारी युवाओं की सबसे बड़ी परेशानी है। इस परेशानी को हल करने में सिर्फ लफ्फाजी से काम नहीं चलेगा।