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पश्चिम बंगाल में टीकाकरण पर भाजपा अध्यक्ष का झूठ और टेलीग्राफ़ की ख़बर
संजय कुमार सिंह
सत्तारूढ़ पार्टी झूठ बोलने, भ्रम फैलाने वाली बातें करने से बाज नहीं आ रही है। यह अलग बात है कि फेक न्यूज से उसे बहुत परेशानी है और सही खबर को भी गलत कह दिए जाने के मामले हैं। खुद के फायदे कि लिए फर्जी खबर गढ़ने के उदाहरण तो मिल ही जाएंगे। ऐसा ही एक उदाहरण आज द टेलीग्राफ में है। "इट मस्ट बी द 'वी' मिस्टर नड्डा" शीर्षक से प्रकाशित इस खबर में बताया गया है कि मंगलवार को भाजपा अध्यक्ष ने वीडियो पर पार्टी की राज्य कार्यकारिणी से कहा, "आप लोगों को यह बताते हुए मुझे बहुत अफसोस हो रहा है कि देश में अगर कहीं बहुत कम टीकाकरण हो रहा है तो वह है पश्चिम बंगाल।" अखबार ने लिखा है कि बंगाल ने अभी तक 2.17 करोड़ लोगों को टीका लगाया है जबकि मंगलवार तक राज्य को 1.98 लाख खुराक ही मिली थी। दावा है कि राज्य सरकार ने 59 करोड़ रुपए में अपने स्तर पर 18 लाख खुराक प्राप्त किए हैं। अगर वास्तविक स्थिति यही है तो सत्तारूढ़ पार्टी के अध्यक्ष को यह शोभा नहीं देता है कि पार्टी कार्यकर्ताओं से (भी) वे इस स्तर पर झूठ बोलें। राज्य सरकार का आरोप है कि टीकों की अनियमित आपूर्ति के कारण यह संख्या ज्यादा नहीं हो पाई।
अखबार ने लिखा है कि सार्वजनिक रूप से उपलब्ध डाटा से यह खुलासा होता है कि सिर्फ दो राज्यों ने तीन करोड़ से ज्यादा टीके लगाए हैं। महाराष्ट्र 3.21 करोड़ और उत्तर प्रदेश 3.12 करोड़। अब उत्तर प्रदेश की आबादी 20 करोड़ है और महाराष्ट्र की 12 करोड़ से ऊपर। बंगाल की आबादी 10 करोड़ के करीब है। ऐसे में बंगाल को किसी भी सूरत में पीछे नहीं कहा जा सकता है। टीका लगाने के मामले में तीन और राज्य बंगाल से आगे हैं – राजस्थान, कर्नाटक, और गुजरात। इनमें दो भाजपा शासित हैं और यह आरोप तो रहा ही है कि केंद्र सरकार तृणमूल सरकार से सहयोग नहीं करती है। यही नहीं, बंगाल के एक अधिकारी ने अखबार से कहा है कि (पश्चिम बंगाल) सरकार रोज 5 लाख टीके लगाने में सक्षम है। पर राज्य में यह सीमा कभी हासिल नहीं हुई क्योंकि टीके की सप्लाई ही कम रही है। यही नहीं, गए हफ्ते एक दिन में चार लाख टीके लगाए गए और इससे भी साबित होता है कि हमारे पास क्षमता तो है पर टीका ही नहीं है। मंगलवार को बंगाल ने 2.78 लाख से ज्यादा टीके लगाए थे और महाराष्ट्र (3.84 लाख) तथा आंध्र प्रदेश (2.88) लाख से ही पीछे रहा जबकि भाजपा शासित गुजरात (2.62 लाख), उत्तर प्रदेश (1.86 लाख) और कर्नाटक (2. 54 लाख) बंगाल से पीछे रहे। फिर भी दावा और प्रचार देखिए।
सरकारी पैकेज या प्रचार को छल कहा
अब इस बात में कोई संदेह नहीं रह गया है कि ज्यादातर अखबार सरकारी बयान जस के तस छाप देते हैं। मंगलवार, 29 जून को मैंने लिखा था, "आज सभी अखबारों में केंद्र सरकार के 6.28 लाख करोड़ रुपए के पैकेज की खबर लीड है। हमेशा की तरह ज्यादातर शीर्षक प्रचारात्मक हैं और किसी ने यह नहीं बताया है कि पहले के ऐसे पैकेज का क्या हुआ। या यह भी नहीं कहा गया है कि पहले के ऐसे पैकेज की सफलता से प्रेरित होकर अभी भी वही तरीका अपनाया जा रहा है"। देश की अर्थव्यवस्था जब लगातार गड्ढे में जा रही है तो उसे संभालने के लिए कुछ किया जाना चाहिए। पांच ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था बना देने का प्रचार अब खत्म हो गया है और जीडीपी को नीचे जाने से रोकने का कोई उपाय नजर नहीं आ रहा है पर अखबारों में सरकारी प्रचार जारी है। अखबार खुद तो कोई सवाल नहीं ही करते हैं। विपक्ष के सवालों को भी नहीं छापते हैं। दि हिन्दू में आज पहले पन्ने पर यह सूचना है कि राहुल गांधी ने कहा कि यह पैकेज एक छल है। इस खबर में बताया गया है कि पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने (कल इस खबर पर) ट्वीट कर कहा था कि कर्ज की गारंटी कर्ज नहीं है, कर्ज ज्यादा उधार है। कोई भी बैंकर कर्ज से लदी कंपनी को और कर्ज नहीं देगा। कर्ज से दबे या नकदी से वंचित कारोबारों को और ज्यादा कर्ज की जरूरत नहीं है। उन्हें पूंजी की जरूरत है जो कर्ज न हो। इसी तरह, ज्यादा आपूर्ति का मतलब ज्यादा मांग (खपत) नहीं होता है। इसके उलट ज्यादा मांग (खपत) से ज्यादा सप्लाई की शुरुआत होगी। मेरा मुद्दा खबर छापने या नहीं छापने की नहीं है। मेरा कहना है कि अगर सरकारी प्रचार किया जाए और उसका विरोध प्रचारित नहीं किया जाए तो बेशक जो हो रहा है वही सर्वश्रेष्ठ मान लिया जाएगा।
जैन हवाला कांड के दो दागी राज्यपाल
ऐसी हालत में भ्रष्टाचार दूर करने, साफ सुथरी सरकार देने का वादा करने वाले नरेन्द्र मोदी ने दो दागियों – जगदीप धनखड़ और आरिफ मोहम्मद खान को राज्यपाल बना रखा है। दोनों का नाम नब्बे के दशक के हवाला घोटाले में था और मामले की जांच करने और चार्जशीट दायर करने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद लाल कृष्ण आडवाणी समेत कुछ नेताओं ने अपने पदों से इस्तीफा दे दिया था। पर ना तो इस मामले की जांच हुई और ना कोई कार्रवाई हुई। मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने भरी अदालत में कहा था कि उन पर इस मामले में भारी दबाव है। पर उन्होंने भी दबाव डालने वालों का नाम नहीं लिया और कोई कार्रवाई नहीं हुई। मामला अपनी मौत मर गया। पर अब जब ममता बनर्जी ने अपने राज्यपाल पर यह आरोप लगाया तो इस मामले को सुप्रीम कोर्ट में ले जाने वाले पत्रकार विनीत नारायण ने कहा कि नैतिक आधार पर दोनों राज्यपालों को (आरिफ मोहम्मद खान कांग्रेस से बीएसपी होते हुए भाजपा में गए हैं) इस्तीफा दे देना चाहिए तो धनखड़ ने अपने बचाव में जो कहा उसे विनीत नारायण ने चुनौती दी और गलत बताया।
मीडिया जगत में चर्चा है कि ये लोग बरी हो गए थे जबकि इस विषय पर अपनी पुस्तक, "भ्रष्टाचार, आतंकवाद और हवाला कारोबार" के 16वें अध्याय, "हाइकोर्ट ने कैसे किया अभियुक्तों को बरी", में विनीत नारायण ने लिखा है, "इससे ज्यादा विरोधाभास क्या हो सकता है कि जैनबंधु अपने हलफिया बयान में हवाला कांड के आरोपी सभी राजनेताओं को धन देने की बात स्वीकार करें। देवीलाल, राजेश पायलट (दोनों अब दिवंगत) जैसे दर्जन भर राजनेता सुरेन्द्र जैन से यह रकम लेने की बात स्वीकार करें, जैन बंधुओं के यहां से देश विदेश की तमाम अवैध मुद्रा छापे में मिले, आतंकवाद से इस पूरे तंत्र का तार जुड़ा हो और अदालत कहे कि कोई गुनाहगार ही नहीं है?" ऐसे में अखबारों का काम था नरेन्द्र मोदी को ईमानदार सरकार देने का उनका दावा याद दिलाते, संवैधानिक पदों पर दागी लोगों को बैठाने के आरोपों की चर्चा करते। पर ऐसा कुछ आज के अखबारों में दिखा क्या? विनीत नारायण अदालत की अवमानना कानून के दुरुपयोग पर भी किताब लिख चुके हैं पर कल पता चला कि डबलइंजन की सरकार के पीड़ित का पक्ष मीडिया में रखने के लिए एफआईआर का सामना कर रहे हैं और भ्रष्टाचार दूर करने का दावा किसी को याद ही नहीं है।
नेशनल डाटाबेस फॉर अनऑर्गनाइज्ड वर्कर्स
ऐसे में सुप्रीम कोर्ट ने (द हिन्दू का शीर्षक), "सरकार को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है कि कोई भी प्रवासी मजदूर भूखा न रहे।" आज यह खबर लीड है और इसका उपशीर्षक है, "अदालत ने 31 जुलाई अंतिम तिथि तय की और राज्यों से एक देश एक राशन कार्ड लागू करने के लिए कहा।" इंडियन एक्सप्रेस ने इसी खबर को लीड तो बनाया है लेकिन शीर्षक है, "सुप्रीम कोर्ट ने एक राशन कार्ड के लिए 31 जुलाई की तारीख तय की, कहा, प्रवासियों का पोर्टल (बनाने में देरी) अक्षम्य है।" अखबार ने इसका जवाब फ्लैग शीर्षक के रूप में छापा है, "पोर्टल में देरी के लिए केंद्र ने कोविड-19 का उल्लेख किया।" एक्सप्रेस की इस खबर का उपशीर्षक है, राज्यों को सूखे राशन की आपूर्ति, रसोई स्थापित करने के लिए कहा; असम, बंगाल, छत्तीसगढ़, दिल्ली राशन योजना में पीछे चल रहे हैं। हिन्दुस्तान टाइम्स में यह खबर लीड नहीं है। तीन कॉलम की टॉप की खबर का दो लाइन का शीर्षक है, "प्रवासियों के साथ व्यवहार अक्षम्य है : सुप्रीमकोर्ट।" टाइम्स ऑफ इंडिया में यह खबर पहले पन्ने पर नहीं है।
द टेलीग्राफ ने इस खबर का शीर्षक अंग्रेजी का एक शब्द, अनपार्डनेबल यानी "अक्षम्य" लगाया है। छह कॉलम में इसका फ्लैग शीर्षक है, "सुप्रीम कोर्ट ने असंगठित क्षेत्र के मजदूरों का डाटाबेस बनाने में केंद्र के रवैये की निन्दा की।" अखबार ने अपनी खबर में लिखा है (इसे किसी भी तरह से कोई प्रमुखता नहीं दी गई है), अदालत ने याद दिलाया कि केंद्र नेशनल डाटाबेस फॉर अनऑर्गनाइज्ड वर्कर्स (एनडीयूडब्ल्यू) की स्थापना करने में नाकाम रहा है जबकि इस संबंध में निर्देश 21 अगस्त 2018 को दिए गए थे। अब इसके मुकाबले गौर करने वाली बात यह है कि सरकार ने कहा है और इंडियन एक्सप्रेस ने लाल स्याही से फ्लैग शीर्षक बनाया है, देरी का कारण कोविड-19 है। आप जानते हैं कि मार्च 2020 तक तो सरकार कोई की कोई औकात ही नहीं मान रही थी। तब यह सरकार का स्टैंड है और इंडियन एक्सप्रेस का समर्थन।