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
वर्षों से देख रहा हूं और कोरोना काल के पहले तक राखी पर मिठाइयों की मांग पूरी करने के लिए छोटे-बड़े ज्यादातर हलवाई दुकान के बाहर तंबू लगाकर मिठाई बेचते थे। ज्यादातर समोसे - ब्रेड पकौड़े बेचने वाला एक 'कैटरर' इधर कुछ समय से मिठाइयां भी रख रहा था और सुबह छह बजे दुकान खुल जाती थी तो मैं समझ रहा था काम बढ़ रहा है।
आज देखा दुकान पर बनी मिठाइयों के मुकाबले डिब्बाबंद और ब्रांडेड मिठाइयों का अच्छा-खासा स्टॉक सुबह सात बजे ही सजा लिया गया था। चूंकि आज/कल राखी है इसलिए वह मिठाई बेचने की तैयारी तो कर ही रहा था पर असली स्टॉक डिब्बाबंद और ब्रांडेड मिठाइयों का बिकेगा।
पहले जो हलवाई अपंजीकृत होते थे वो ना बिल देते थे ना टैक्स लेते थे। इसे लोग टैक्स चोरी कहते थे पर वह चोरी है नहीं। अभी भी अलग-अलग मामलों में 10-20 और 40 लाख तक का कारोबार करने वालों के लिए जीएसटी जरूरी नहीं है पर हालात ऐसे बना दिए गए हैं कि जीएसटी पंजीकरण बिना बैंक में खाता न खुले इलेक्ट्रॉनिक तराजू और बिल मशीन न हो, कार्ड से भुगतान की सुविधा न हो तो कोई दुकान न मानें।
ऐसी हालत में जीएसटी वसूलना और सरकार के खाते में जमा करना सबकी मजबूरी है और नियम इतने उलझे हुए हैं तथा इतनी बार बदले हैं कि शायद ही कोई सही नियम जानता हो और जो मांगा जाए उसे चुनौती दे सके। मैं नियम जानने-समझने की कोशिश कर रहा था पर कुछ मिला नहीं। सीधा सरल नियम यही है कि एमआरपी से ज्यादा नहीं देना है। कुछ मामलों में उसपर भी छूट है।
दिलचस्प यह है कि टैक्स के कारण अगर किसी को एमआरपी 10 रुपया बढ़ाना है तो यह टैक्स राशि से ज्यादा नहीं होना चाहिए। यानी 10 रुपया टैक्स बढ़ा, 10 रुपया एमआरपी बढ़ा तो जो आया वह गया। विक्रेता के लिए कुछ नहीं और नियम यह है कि वह दोनों दाम बताने वाला स्टीकर लगाए, विज्ञापन छपवाए आदि आदि। इसे भारत में ईज ऑफ डूइंग बिजनेस के नाम से प्रचारित किया जा रहा है। उपभोक्ता एमआरपी पर सामान खरीदने के लिए मजबूर है।
पहले बाजार से राखी खरीद कर लिफाफे में डाक से या कूरियर से भेजी जाती थी। अक्सर समय लगता था और बहनें यह काम महीने भर पहले से शुरू कर देती थीं। संचार क्रांति के इस युग में महीने भर पहले कोई सक्रिय नहीं होता है। कूरियर से जल्दी पहुंच जाएगा के भ्रम में अक्सर देरी हो जाती है। देरी पहले भी होती थी लेकिन कूरियर वाला चाहे देर से पहुंचाए जीएसटी लेता ही है। अब जीएसटी वाला एक आसान व अच्छा विकल्प भी आ गया है। इंटरनेट पर ऑर्डर कीजिए जहां पहुचाना है वहीं से पहुंचा दिया जाएगा। मिठाई, चंदन, टीका, रोली सबके साथ समय पर। 10 रुपए की राखी सबके साथ 100 रुपए में।
जनता के लिए यह अच्छा सौदा है, जीएसटी के लिए भी। महीने के आखिर में खबर छपती है जीएसटी वसूली और बढ़ गई। (इसलिए अर्थव्यवस्था में मंदी नहीं है, नोटबंदी को बदनाम मत कीजिए आदि आदि।