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चाचा चौधरी को नमामि गंगे कार्यक्रम के लिए शुभंकर घोषित किया गया

Desk Editor
2 Oct 2021 7:15 AM GMT
चाचा चौधरी को नमामि गंगे कार्यक्रम के लिए  शुभंकर घोषित किया गया
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राजीव रंजन मिश्रा, महानिदेशक, एनएमसीजी ने सुझाव दिया कि डॉल्फ़िन संरक्षण का लक्ष्य पाने में सीआईएफआरआई जैसे अन्य हितधारकों के साथ साझेदारी से लाभ हो सकता है

पीआईबी, नई दिल्ली: राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन की 37वीं कार्यकारी समिति की बैठक में, राजीव रंजन मिश्रा, महानिदेशक, एनएमसीजी की अध्यक्षता में, चाचा चौधरी को नमामि गंगे कार्यक्रम का शुभंकर घोषित किया गया और उत्तर प्रदेश व बिहार में कुछ प्रमुख परियोजनाओं पर चर्चा और समीक्षा की गई।

एनएमसीजी अपने संपर्क और जनसंचार प्रयासों के तहत किशोरों पर ध्यान केंद्रित कर रहा है, क्योंकि वे परिवर्तनों के प्रेरक हैं। इस दिशा में एक उठाते हुए एनएमसीजी ने कॉमिक्स, ई-कॉमिक्स और एनिमेटेड वीडियो बनाने और वितरित करने के लिए डायमंड टून्स के साथ समझौता किया है। इस सामग्री को गंगा और अन्य नदियों के प्रति किशोरों के व्यवहार में बदलाव लाने के उद्देश्य से तैयार किया जाएगा। इस परियोजना के लिए कुल अनुमानित बजट 2.26 करोड़ रुपये है। अशोक कुमार सिंह, कार्यकारी निदेशक (ईडी), परियोजनाओं ने परियोजना का विवरण सामने रखा और बताया कि चाचा चौधरी शुभंकर गंगा के कायाकल्प को जमीनी स्तर पर सक्रिय बनाने में उपयोगी हो सकता है। शुरुआत में, इन कॉमिक्स को शुरुआत में हिंदी, अंग्रेजी और बंगाली भाषाओं में लाया जाएगा। राजीव रंजन मिश्रा ने कहा, "एनएमसीजी हमेशा से युवाओं और बच्चों पर विशेष ध्यान देते हुए सामुदायिक जुड़ाव लाने में शामिल रहा है। यह समझौता इसी दिशा में एक और कदम होगा।"

दीपक कुमार सिंह, प्रधान सचिव, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन विभाग, बिहार सरकार, ने बिहार में गंगा के बाढ़ वाले मैदानों की आर्द्रभूमियों के संरक्षण और सतत प्रबंधन के लिए एक प्रस्ताव प्रस्तुत किया। परियोजना के प्रमुख घटकों में आर्द्रभूमि के ब्यौरे (वेटलैंड इन्वेंट्री) और आकलन, आर्द्रभूमि प्रबंधन योजना, आर्द्रभूमि की निगरानी और क्षमता विकास और संपर्क अभियान शामिल होंगे। 2.505 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत के साथ यह परियोजना 100 प्रतिशत केंद्र द्वारा वित्त पोषित होगी। प्रस्ताव का उद्देश्य बिहार के गंगा से जुड़े 12 जिलों में बाढ़ वाले मैदानों की आर्द्रभूमियों के प्रभावी प्रबंधन के लिए ज्ञान का आधार और क्षमता विकसित करना है, ताकि आर्द्रभूमि पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं की दीर्घकालिक व्यवस्था और जैव विविधता वाले आवासों को संरक्षित किया जा सके।

उन्होंने गंगा में मिलने वाली डॉल्फिन के संरक्षण के लिए उठाए गए कदमों के बारे में भी जानकारी दी। उन्होंने बताया कि सरकार स्थानीय मछुआरों को संवेदनशील बनाने का काम कर रही है। राजीव रंजन मिश्रा, महानिदेशक, एनएमसीजी ने सुझाव दिया कि डॉल्फ़िन संरक्षण का लक्ष्य पाने में सीआईएफआरआई जैसे अन्य हितधारकों के साथ साझेदारी से लाभ हो सकता है। डॉ. रितेश कुमार, निदेशक (आर्द्रभूमि), अंतरराष्ट्रीय दक्षिण एशिया ने भी आर्द्रभूमि परियोजना के बारे में विस्तार से जानकारी दी।

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