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पंच परमेश्वर के देश में जहां न्याय होना ही नहीं चाहिये, होता दिखना भी चाहिये तब सब सामान्य नहीं है। लगातार नौ बार सुनवाई टलना और हेंमत सोरेन की जमानत याचिका पर सुनवाई न होना। एक निर्वाचित जनप्रतिनिधि, दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया का जांच के नाम पर एक साल से जेल में हैं और कई राजनीतिज्ञ दल बदलकर गिरफ्तारी और जांच से बचे हुए हैं। ऐसे में बात जनहित में विशेषाधिकार के उपयोग की भी है। तब जब रिटायर जजों ने सरकार से ईनाम स्वीकार किये हैं। जज लोया की संदिग्ध मौत का मामला अभी तक स्पष्ट नहीं है। सरकार की जिद्द बार-बार संविधान पीठ बनाने मजबूर कर रही है और जनहित की कोई परवाह नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार, दो फरवरी को झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया। अदालत ने सोरेन को हाईकोर्ट जाने के लिए कहा है। द टेलीग्राफ में आज छपी एक खबर के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट कल इस मामले की अर्जेन्ट सुनवाई के लिए तैयार हो गया था। वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिबल और अभिषेक मनु सिंघवी की अपील पर मुख्य न्यायाधीश ने इसे आज अर्जेन्ट सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया था। सुनवाई की अपील करते हुए सिबल ने पीठ से कहा था, प्रीवेंशन ऑफ मनी लांडरिंग ऐक्ट (पीएमएलए) 2002 की संवैधानिकता पर विचार किये जाने की जरूरत है क्योंकि यह ईडी अधिकारियों को गिरफ्तारी का व्यापक अधिकार देता है। सामान्य समझ यह है कि किसी की गिरफ्तारी तब जरूरी होती है जब उससे पूछताछ करनी हो, घटना का ब्यौरा जुटाना हो, निशानदेही करानी हो, आगे अपराध की आशंका से रोकना हो या सबूत नष्ट करने अथवा गवाहों को धमकाने का डर हो।
ऐसे मामलों में गिरफ्तारी के बाद भी अदालत में पेश करना होता है, अदालत मामले को जानने-समझने के बाद तय करती है कि गिरफ्तारी जरूरी है या नहीं तथा कितने दिन की पुलिस हिरासत देनी है। एक मुख्यमंत्री के मामले में कारण स्पष्ट होने चाहिये और इस बात का भी ख्याल रखना चाहिये कि वह इतना शक्तिशाली है कि जेल में रहकर भी बहुत कुछ कर-करा सकता है और इसपर जांच करने वालों को नजर रखना जितना जरूरी है उतना ही जरूरी है अभियुक्त को कानून का डर हो। और कानून को न्यायप्रिय अंदाज में लागू किया जाये। एक गृहमंत्री के बेटे पर हत्या का मामला था तो किसी ने नहीं कहा कि इसलिए उन्हें पद से हटाया जाना चाहिये जबकि नैतिक रूप से जरूरी था। दूसरी ओर निर्वाचित प्रतिनिधि और जनहित में देश में सबसे अच्छा काम कर रहे नेताओं में एक, मनीष सिसोदिया को इतने समय तक जेल में रखना क्यों जरूरी है?
हेमंत सोरेन को पीएमएलए कोर्ट ने एक दिन की न्यायिक हिरासत में भेजा जबकि ईडी ने 10 दिन की हिरासत मांगी थी। अगले दिन उन्हें पांच दिन की ईडी हिरासत में भेज दिया गया। लेकिन मामला मुख्यमंत्री का है और सुप्रीम कोर्ट में सिबल ने यही बात कही कि यह वाजिब नहीं है और सुप्रीम कोर्ट को संदेश देना चाहिये। अपनी बात रखते हुए उन्होंने कहा कि यह विशेषाधिकार का मामला है और जजों को इसका इस्तेमाल करना चाहिए। वे यह आरोप लगा चुके थे कि गिरफ्तारी का मकसद झारखंड की सरकार गिराना है। (महाराष्ट्र समेत देश की राजनीतिक स्थिति आप जानते हैं, अभी वह मुद्दा नहीं है)। सिबल की दलील से सहमति जताते हुए सिंघवी ने कहा, .... गिरफ्तारी की कोई आवश्यकता नहीं है ...।
अदालत ने सिबल की इस अपील को भी नहीं माना कि हाईकोर्ट के लिए एक समय सीमा निर्धारित कर दी जाये। इसपर एडिशनल सोलिसिटर जनरल ने कहा, एक अलग पीठ बनाई गई है .... आम आदमी को ऐसे लाभ कभी नहीं मिलेंगे। पर यही तो मुद्दा है। जब मुख्यमंत्री को नहीं मिले तो आम आदमी को कैसे मिलेंगे। कायदे से, ऐसी सुविधा आम आदमी को भी मिलनी चाहिये और ऐसा नहीं है कि नहीं मिलती है। अर्नब गोस्वामी का मामला सबको याद है। उसपर किसी व्यक्ति के पैसे नहीं देने का मामला था, जमानत मिल गई। उस आम आदमी के साथ कहां न्याय हुआ जिसके पैसे मारे जाने का मामला था और जो आत्महत्या कर चुका है। बाद में तो सरकार भी बदल गई। कौन जानता है यहां (झारखंड में) सरकार बदलने की कोशिश या आरोप का सच क्या है। हालांकि वह मुद्दा नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट ने आज एक और मामले को 7 फरवरी तक टाल दिया। जेएनयू के पूर्व छात्र नेता उमर खालिद का मामला है। द टेलीग्राफ की एक खबर के अनुसार इस मामले में सुनवाई कल भी थी और कल उमर खालिद की जमानत अर्जी पर लगातार आठवीं बार सुनवाई नहीं हो सकी थी। हालांकि, इस बार उसके वकील कपिल सिब्बल दूसरे महत्वपूर्ण मामले में व्यस्त थे। आज जब नौवी बार याचिका टली है और अब अगली तारीख 7 फरवरी है तो यह बताना मायने रखता है कि सोरने के मामले में सुनवाई के लिए बनाई गई अलग और विशेष पीठ में न्यायमूर्ति संजय खन्ना, एमएम सुनद्रेश और बेला एम त्रिवेदी थीं। उमर खालिद का मामला आज न्यायमूर्ति बेला त्रिवेदी और पंकज मिथल की बेंच में था। दोनों में बेला एम त्रिवेदी थीं और वे गुजरात की मोदी सरकार में लॉ सेक्रेटरी भी रह चुकी हैं। राजनीतिक रूप से संवेदनशील सभी केस कैसे बेला त्रिवेदी की ही बेंच को जाते हैं इस पर भी सवाल उठने लगे हैं। ऐसा पहले भी एक जज के साथ होता था वे सरकार से पुरस्कार पा चुके हैं।