

कुछ दिनों बाद तीन राज्यों में हो रहे विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को अकेले ही चुनाव लड़ना होगा. जैसे संभावनाएं व्यक्त की जा रही थी की बहुजन समाज पार्टी शायद कांग्रेस के साथ मिल कर भाजपा से मुक़ाबला करेगी. लेकिन मायावती द्वारा राजस्थान और मध्यप्रदेश में कांग्रेस से गठबंधन न करने और छत्तीसगढ़ में अजित जोगी के साथ गठबंधन करने के बाद ये संभावनाएं सिर्फ ख्याल बन कर रह गयी.
मायावती ने आखिर कांग्रेस के साथ गठबंधन क्यों नहीं किया इसके पीछे बहुत सारे क़यास और बहुत सारी अफवाहें गश्त कर रही हैं. बसपा का कहना है की सीटों के सही बंटवारे न होने की वजह से मध्यप्रदेश और राजस्थान में कांग्रेस और बसपा एकजुट नहीं हो पायी. कांग्रेस की तरफ से अभी कोई बयान आधिकारिक नहीं आया है. खबर ये भी है की कांग्रेसी के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह के इस बयान पर कि मायावती सीबीआई और ईडी कि डर से भाजपा के दबाव में कांग्रेस से गठबंधन नहीं कर रही हैं मायावती का सख्त रद्देअमल आया है. मायावती ने पलटवार करते हुए दिग्विजय सिंह को कांग्रेस में भाजपा का एजेंट करार दिया है. कुल मिलकर यह साफ़ हो गया है की बसपा का कांग्रेस से गठबंधन नहीं हो रहा है और कांग्रेस को अकेले ही चुनाव में अपनी ज़मीन खोजनी होगी.
अब बात करते हैं की आखिर कांग्रेस गटबंधन के लिए दूसरो के मुँह क्यों ताकती है. देश पर सबसे लम्भी अवधि तक राज करने वाली पार्टी दूसरो को सहारे चुनाव क्यों जीतना चाहती है . कांग्रेस के वोट कहाँ चले गए हैं. इस पर कोई कांग्रेसी जवाब देने को तैयार नहीं है. जब कोई पार्टी कांग्रेस के साथ गठबंधन नहीं करती तो कांग्रेस समर्थक उस पर भाजपा की बी टीम होने या भाजपा का एजेंट होने का इलज़ाम लगते हैं. जबकि उन्हें सही जवाब खुद तलाशने की ज़रुरत है.
कांग्रेस की सरकार के दौरान मज़े लूटने वाले मंत्री संत्री कहाँ चले जाते हैं जो अपने वोटों को समेत नहीं पाते. सरकार के दौरान मंत्री बनकर मज़े लूटने के आदि हो चुके कांग्रेसी नेता खुद भी चुनाव जीतने में अक्सर नाकाम ही रहते हैं. वह सिर्फ इतना चाहते हैं की उत्तर प्रदेश में मायावती या अखिलेश की मेहनत के दम पर, बिहार और दुसरे राज्यों में दुसरे दलों की मेहनत से अपने उम्मीदवार जितवा दें.
जब तक कांग्रेस इन सवालो के जवाब नहीं तलाशेगी तब तक उसे ऐसे ही भाड़ झोंकनी होगी.