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कांग्रेस को खत्म हो जाना चाहिए, यह गांधी की इच्छा थी
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वह कार्य जो अपने अंतिम दिन तक कर रहे थे। 29 जनवरी की रात देर तक वह इस पर लिखते रहे। देश का पिता, अपने जाने के बाद देश को सुरक्षित और समृद्ध रखने की योजना बना रहा था। और उसका औजार क्या था- कांग्रेस, वही कांग्रेस जो बापू की सबसे बड़ी विरासत थी।
जी हां। गांधी कांग्रेस को मारने की बात नही कर रहे थे, जो आपको अक्सर व्हॉट्सप पर आई गप्पों में बताया जाता है। गांधी की कांग्रेस एक आंदोलन का मंच था, जनता को एक सूत्र में बांधकर, उसे हुकूमत ए बर्तानिया के कुशासन के खिलाफ लामबंद करने का जरिया था। अब उसे बदलने का वक्त था। इसलिए कि वक्त बदल चुका था, पृष्ठभूमि बदल चुकी थी। संघर्ष बदल चुका था।
गांधी ने साफ लिखा- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, जो सबसे पुरानी संस्था है, जिसने अहिंसा से आजादी सहित क़ई लड़ाइयां जीती हैं, वह मरने नही दी जा सकती। वह तब ही मरेगी, जब यह देश मरेगा।
तो बापू चाहते क्या थे? बापू बदलाव चाहते थे। कांग्रेस की जिम्मेदारी बदल रही थी, वे देख रहे थे। 1937 और बाद के इलेक्शंस में काँग्रेस एक चुनावी पार्टी की तरह लड़ी। आंदोलन चुनावी पार्टी में बदलता है, चैलेंज बदलते है। हमारी पीढ़ी ने इसका छोटा सा नमूना IAC को AAP में बदलते देखा है। आंदोलन अलग है, गवर्नेस अलग। सत्ता के तौर तरीके, बंधन और मजबूरियां अलहदा होती हैं। गांधी जैसे विजनरी ने पहले ही देख लिया था।
उन्होंने इसका तरीका भी सोचा। गवर्नेस की दिशा में जो होगा, वह होगा। कांग्रेस में एक लोक सेवक संघ बनाने की कल्पना की। कांग्रेस को अपनी चवन्नी सदस्य्ता (तब सदस्यता शुल्क चार आने था) की रजिस्टर से आगे बढ़कर, अपनी सदस्यता देश के तमाम वोटर, नागरिकों के बराबर करनी होगी।
यह मूल बदलाव था, जो गांधी के जेहन में था। इस पर वो और सोचते, इसके पहले नाथूराम गोडसे ने विचार के अजस्र प्रवाह को तीन गोलियों से शांत कर दिया। जैसा गांधी ने कहा था- कांग्रेस देश के साथ ही खत्म होगी। गोडसे वादियों ने इस बात की गांठ बांधकर इस देश को शनै शनै खत्म करने का बीड़ा उठाया। आखिर देश खत्म होगा, तब तो जम्बूद्वीप कांग्रेस मुक्त होगा।
कांग्रेस सेवा दल उसी सोच का नतीजा था। पीएम नेहरू ने उसे तरजीह दी। हाफ पैंट पहन उंसके कार्यक्रमो में शामिल हुए। याद हैं न वे तसवीरें, जो आपको व्हस्ट्सप गप में RSS की शाखा बताकर भेजी गई थी।
मगर आगे कांग्रेस भूल गयी। मानव सेवा संघ को। सेवा दल को। देश ले हर नागरिक को कांग्रेस से जोड़ने की बापू सलाह भुला दी गयी। सरकारें और अफसर ही उसकी आईडीयोलॉजिकल मोरल के वाहक बन गए। कार्यकर्ता विमुख हुआ, सिर्फ सत्ता के इर्दगिर्द सत्ता की चाहत में लिपटा रहा।
जब सत्ता गयी, तो आदते नही गयी। वह शवासन में पड़ी है। मरी नही है, कांग्रेस ये देश है जैसा बापू ने कहा। सच्चा हिंदुस्तानी देश को मरने नही देगा, और कांग्रेस सांसे लेती रहेगी। मगर देखना यह है कि उठेगी कब, चलेगी कब, लड़ेगी कब..
क्योकि कांग्रेस की अशक्तता देश की अशक्तता है। और यह बापू ने कहा था। जो पूछते है कि कांग्रेस को क्या करना चाहिए। उन्हें सूचना यही दीजिये, बापू कि लिखे आखरी दस्तावेज पढ़े जाएं।
बापू के कहे पर अमल किया जाए।