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माजिद अली खां (राजनीतिक संपादक)
देश के चार राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव में मुख्या मुक़ाबला कांग्रेस और भाजपा का है जबकि कुछ छोटे संगठन मुक़ाबले को त्रिकोणीय करने में लगे हुए हैं. पूर्वोत्तर का छोटे से राज्य मिजोरम में भी विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. ४० सीटों वाली विधान सभा में पीछले दस साल से कांग्रेस का पलड़ा भरी रहा तथा कांग्रेस ही सत्ता सुख भोग रही है. भाजपा पांच बार चुनाव लड़ कर भी इस ईसाई बहुल राज्य में कुछ नहीं कर पायी. अबकी बार भाजपा ने चुनाव जीतने के लिए पूरी ताक़त से ज़ोर लगा दिया है. भाजपा के अध्यक्ष अमित शाह पूरी ताक़त से चुनाव अभियान में उतर गए हैं.
पूर्वोत्तर के सभी ६ राज्यों में भाजपा की सरकारें हैं और भाजपा यही चाहती है की वह अकेले न सही मिजो नेशनल फ्रंट के साथ मिल कर सरकार बना लेती है तो पूर्वोत्तर का इलाक़ा कांग्रेस मुक्त हो जायेगा जो सदा से भाजपा का सपना रहा है. कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी दिक्कत है उसके प्रभावी नेताओ का मिजो नेशनल फ़्रंट में शामिल हो जाना. भाजपा ने वैसे तो अकेले ही मैदान में उतरने का फैसला किया है लेकिन हो सकता है की चुनाव बाद मिजो नेशनल फ़्रंट के साथ मिल कर सरकार बना सकती है.
राज्य में अब मुख्य मुकाबला कांग्रेस और विपक्षी एमएनएफ के बीच है. 1987 में मिजोरम को अलग राज्य का दर्जा मिलने के बाद से यहां होने वाले छह विधानसभा चुनावों में कांग्रेस व एमएनएफ के बीच सत्ता बदलती रही है. 1987 में पहला चुनाव एमएनएफ ने जीता था. लेकिन उसके बाद 1989 और 1993 के चुनाव में कांग्रेस विजयी रही थी. एक दशक के कांग्रेसी शासन के बाद प्रतिष्ठानविरोधी लहर पर सवार होकर एमएनएफ ने 1998 के चुनाव में कांग्रेस को सत्ता से बाहर का रास्ता दिखाया था. उसके बाद वह दस साल तक सत्ता में रही थी. अब कांग्रेस ने भी सत्ता में 10 साल पूरे कर लिए हैं. बीजेपी की ओर से पूर्वोत्तर के क्षेत्रीय दलों को लेकर गठित नॉर्थ ईस्ट डेमोक्रेटिक अलायंस (नेडा) में शामिल होने के बावजूद एमएनएफ ने अकेले मैदान में उतरने का फैसला किया है. एमएनएफ अध्यक्ष जोरमथांगा कहते हैं, "हमारी पार्टी पर बीजेपी की बी टीम होने का आरोप बेबुनियाद है. हम पहले भी अपने बूते जीत चुके हैं और इस बार भी लोग कांग्रेस की भ्रष्ट सरकार को सबक सिखाएंगे."
राज्य में अब तक तमाम चुनावों में स्थानीय मुद्दे ही हावी रहे हैं. इस बार भी अपवाद नहीं है. इन चुनावों में सरकार की नई जमीन उपयोग नीति, शरणार्थी, जातीय अल्पसंख्यकों के लिए कोटा, शराब नीति और असम के साथ सीमा विवाद ही प्रमुख मुद्दे होंगे. सरकार की नई जमीन नीति पर भ्रष्टाचार के आरोप लग रहे हैं. इसी तरह राज्य के लोग चाहते हैं कि त्रिपुरा के शरणार्थी शिविरों में रहने वाले ब्रू तबके के लोगों को वोट देने का अधिकार नहीं दिया जाए. स्थानीय लोग ब्रू व चकमा को बाहरी मानते हैं. उन दोनों को छोड़ कर दूसरी अल्पसंख्यक जनजातियों के लिए सरकारी नौकरियों में कोटा तय करने की मांग भी उठ रही है. तीन साल पहले तक मिजोरम में शराबबंदी लागू थी. लेकिन कांग्रेस सरकार ने कानून में संशोधन कर उसे खत्म कर दिया था. अब क्षेत्रीय पार्टियां सत्ता में आने की स्थिति में दोबारा शराबाबंदी लागू करने के वादे कर रही हैं. राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि राष्ट्रीय राजनीति के लिहाज से न सही, इलाके में कांग्रेस के भविष्य के लिहाज से मिजोरम विधानसभा चुनाव अब काफी अहम हो गए हैं.