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जरा सम्भल कर दुनिया...इधर है कोरोना, तो उधर आर्थिक तबाही!
- आर्थिक तबाही को स्वीकार कर कोरोना से निपटने के लिए चीन और इटली के सब कुछ ठप यानी लॉक डाउन के रास्ते पर चल पड़ा भारत
- क्योंकि मोदी को पता है भारत की स्वास्थ्य सुविधाओं की कड़वी हकीकत
- खुद मोदी सरकार ने भी पिछले छह साल में नहीं दिया स्वास्थ्य सुविधाओं पर विशेष ध्यान
- जबकि बेहतरीन स्वास्थ्य सुविधाओं के दम पर ही अमेरिका और जापान ने चुना लॉक डाउन को खत्म करके दोनों से एक साथ जंग का रास्ता
- जनजीवन सामान्य रखकर कोरोना से भी लड़ाई जारी रखने का किया है फैसला
- अमेरिका को कोरोना ने पहुंचाया खासा नुकसान मगर लोगों के रोजगार / व्यापार को भी ट्रम्प दे रहे तरजीह
- जापान ने तो दोनों मोर्चों पर देश को बचाने का हुनर और दम दुनिया को दिखाया
चमचमाते पर्दों के पीछे अपने घर में कहां-कहां क्या खामी है, इसे घर के मुखिया से बेहतर कौन जान सकता है। तभी तो आर्थिक चुनौती या कोरोना महामारी, दोनों से साथ जूझने का माद्दा खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को ही अपने देश भारत में नहीं नजर आया। इसीलिए उन्होंने इटली, चीन आदि के नक्शेकदम पर चलते हुए लॉकडाउन यानी सब कुछ ठप करके लोगों को घरों में कैद करने का विकल्प चुना। जबकि अमेरिका और जापान जैसे देशों ने लॉक डाउन को खत्म करके दोनों से एक साथ जूझने का कठिन रास्ता अपनाया है।
मोदी को यह अच्छी तरह से पता है कि 2014 से ही चल रही उनकी सरकार ने पिछले छह साल में कभी भी देश में स्वास्थ्य सुविधाओं को विशेष तवज्जो नहीं दी। इसीलिए अमेरिका या जापान की तरह यहां भी कोरोना का सामना करने के बारे में उन्होंने शायद सोचा ही नहीं। वह यह भी बखूबी जानते हैं कि मंदिर, राष्ट्रवाद, धार्मिक कट्टरता, पाकिस्तान, कश्मीर, नागरिकता, तीन तलाक जैसे मुद्दों पर ही अब तक अपना सारा ध्यान केंद्रित करके चल रही उनकी सरकार ने कोरोना जैसी महामारी से लड़ने की तैयारी तो दूर, सामान्य स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए भी देश में कभी कोई खास योजना नहीं बनाई।
लिहाजा उन्होंने सबको घरों में दुबक जाने यानी कैद करने का फरमान जारी करने का फैसला कर लिया। इसके लिए उन्होंने अपना पसंदीदा तरीका अपनाया। वह यह कि रात आठ बजे आकर उसी रात बारह बजे से लागू होने वाला अपना तुगलकी फरमान सुना दिया जाए।
अब उनकी भक्ति की अफीम चाट चुके खाये अघाये लोग तो उनके हर तुगलकी फरमान पर वाह मोदी जी वाह या मोदी का मास्टर स्ट्रोक कह कर उनके साथ आ ही जाएंगे। रही बात उन कमजोर तबकों की, जिसके लिए नोट बंदी और लॉक डाउन जैसा हर तुगलकी फैसला काल बनकर आ जाता है तो उसके लिए पुलिस के लठ का बेहतरीन इंतजाम है ही देश में। सब जानते हैं कि यहां पुलिस को तो बस एक बार छूट देने भर की देर है, उसका लठ तो फिर तब तक नहीं रुकेगा, जब तक खुद प्रधानमंत्री रोकने का इशारा न करें।
दूसरी तरफ अमेरिका में ट्रंप पर चौतरफा दबाव पड़ा कि वह देश में लॉक डाउन को जारी रखें मगर उन्होंने बेहद खुले शब्दों में दुनिया को यह बता दिया कि हमें जितनी चिंता अपने देशवासियों के इस महामारी से पीड़ित हो जाने की है, उतनी ही चिंता हमें उनके रोजगार/ व्यापार और आर्थिक हितों की भी है। लिहाजा वह लॉक डाउन जैसा सब कुछ ठप कर देने वाला कदम आगे बढ़ाने को तैयार नहीं हैं। हालांकि दो तरफा जंग के इस दौर में अमेरिका ने ट्रंप के नेतृत्व में बहुत कुछ झेला है और अभी भी आर्थिक हितों को संभालने के चक्कर में उस पर कोरोना खासा भारी भी पड़ रहा है। मगर वह आर्थिक पैकेज देने , कोरोना से लड़ने और जनजीवन सामान्य रखने की अपनी नीति पर डटे हुए हैं।
उधर, जापान ने जरूर दोनों ही मोर्चों पर बेहतरीन प्रदर्शन करके दुनिया को चौंका दिया है। वहां न सिर्फ जनजीवन बेहद सामान्य तरीके से चल रहा है बल्कि कोरोना का असर भी वहां व्यापक नहीं हो सका है।
बहरहाल, अब तो ओखली में सर देकर यानी लॉक डाउन के मार्ग पर चलकर देश ने आर्थिक मोर्चे पर तबाही को स्वीकार कर ही लिया है तो अब यह देखना है कि कोरोना से जारी जंग में हम अगले एक महीने में कितना कामयाब हो पाते हैं। क्योंकि इस लॉक डाउन के बावजूद अगर कोरोना से भी हम जंग हारने लगे तो यह दोतरफा हार हमें बहुत भारी पड़ने वाली है...