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केवल लॉकडाउन से ही नहीं इस विकल्प को भी अपनाने से रुकेगा कोरोना

Shiv Kumar Mishra
29 March 2020 1:48 PM GMT
केवल लॉकडाउन से ही नहीं इस विकल्प को भी अपनाने से रुकेगा कोरोना
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कोरोना वायरस का संक्रमण रोकने के लिये राज्यों की जरूरत के आधार पर पहली कार्ययोजना दिल्ली के लिये बनाने वाले 'यकृत एवं पित्त विज्ञान संस्थान' (आईएलबीएस) के निदेशक डॉक्टर एस के सरीन ने अपनी रिपोर्ट में सरकार को सुझाव दिया है कि भारत को संक्रमण रोकने के लिये प्रत्येक संदिग्ध मरीज के संपर्क में आये हर एक व्यक्ति की पहचान के लिये चीन और दक्षिण कोरिया की तर्ज पर जीपीएस तकनीक का इस्तेमाल करना होगा।

कोरोना संक्रमण के तीसरा चरण अभी नहीं

उनका मानना है कि वायरस का संक्रमण तीसरे चरण में जाने से रोकने के लिये सभी राज्यों को तत्काल तीसरे चरण की तैयारियों को लागू करना जरूरी है। डॉक्टर सरीन ने बताया कि वैश्विक स्तर पर कोरोना वायरस के संक्रमण की दर और कोरोना समूह के वायरस की प्रकृति को देखते हुये भारत में राज्यों के स्तर पर प्रत्येक राज्य में संक्रमण के प्रसार की गति के मुताबिक रणनीति बनानी होगी।

उन्होंने का कि दिल्ली के लिय जो रणनीति बनायी गई है उसमें प्रतिदिन 100 मरीज, फिर 500 मरीज और तब 1000 मरीज तक सामने आने वाली तीन स्थितियों के लिये कार्ययोजना लागू की है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि दिल्ली या देश तीसरे चरण में पहुंच गया है। हालात की गंभीरता को देखते हुये अब राज्यों को किसी भी स्थिति से निपटने के लिये अपनी रणनीति लागू करने हेतु संक्रमण के किसी चरण की घोषणा होने का इंतजार करने की जरूरत नहीं है।

संक्रमण का तीसरा चरण रोकना है तो उठाने होंगे ये कदम

डॉक्टर सरीन ने बताया कि अगर हमें संक्रमण के तीसरे चरण में जाने से बचना है तो कुछ कदम उठाने होंगे। पहला, संक्रमण के संदिग्ध लोगों के संपर्क में आये प्रत्येक व्यक्ति तक पहुंचने के लिये जीपीएस जैसी तकनीकों का सहारा लेना होगा। दूसरा जरूरी काम जनता की भागीदारी सुनिश्चित करना है।

इसके लिये लोगों को जागरूक कर संक्रमण के लक्षणों को छुपाने के बजाय खुद उजागर करने के लिये प्रेरित किया जाना है। और तीसरा, परीक्षण क्षमता को मांग की तुलना में काफी अधिक रखना है। राज्यों के स्तर पर इन तीन कामों की बदौलत ही संक्रमण को दूसरे चरण तक सीमित रखा जा सकता है।

उन्होंने बताया कि संक्रमण को रोकने का एकमात्र विकल्प 'कांटेक्ट ट्रेसिंग' (संदिग्ध मरीजों के संपर्क को खंगालना) है। चीन में संक्रमित मरीजों के संपर्क में आये लगभग 26 हजार लोगों की पहचान हुयी, उनमें से 2,58,00 तक जीपीएस की मदद से पहुंचा जा सका।

जांच के लिए खुद आगे आएं लोग

अभी हम उन लोगों की जांच कर रहे हैं, जिनमें वायरस के लक्षण दिखने लगे हैं। जबकि लक्षण दिखने के दो दिन पहले ही संभावित मरीज से संक्रमण दूसरों में फैलने लगता है। इसलिये हमारे लिये यह जरूरी है कि ऐसे संभावित मरीजों के संपर्क में दो दिन पहले जितने लोग भी आये उन्हें भी हम जांच के दायरे में लायें। इसके लिये लोगों की भागीदारी बहुत जरूरी है।

अकेली सरकार इस नेटवर्क को कवर नहीं कर सकती है। मामूली सी आशंका दिखने पर भी लोग स्वयं परीक्षण के लिये आगे आयें। संक्रमण के तीसरे चरण में जाने से बचने का यह जरूरी उपाय है।

कोरोना वायरस का कहर दुनिया के साथ-साथ भारत में भी बढ़ता जा रहा है। देश में 900 से ज्यादा मामले हैं, जिनमें 47 विदेशी नागरिक शामिल हैं। इस बीमारी से 94 लोग ठीक हो गए हैं या उन्हें अस्पताल से छुट्टी दे दी गई है और एक मरीज को दूसरी जगह भेजा गया है। इस महामारी से जुड़े हर पहलु पर प्रधानमंत्री कार्यालय पैनी नजर बनाए हुए है और इस बात पर ध्यान दिया जा रहा है की कही कोई कमी ना रहने पाए।

दिल्ली के मॉडल को अपनाएं दूसरे राज्य

दिल्ली के लिये जो रणनीति बनायी है, उसे कोई भी राज्य अपना सकता है। यह सही है कि इस कार्ययोजना को दिल्ली की जरूरतों एवं मौजूदा ढांचागत सुविधाओं के मुताबिक बनाया है। इसे दूसरे राज्यों की जरूरत और मौजूदा सुविधाओं के मुताबिक तब्दील कर लागू किया जा सकता है। यह काम राज्य अपने स्तर पर भी कर सकते हैं।

फिलहाल सभी के लिये तीन काम करना जरूरी हैं, जांच का दायरा बढ़ा कर ऐसे हर व्यक्ति की जांच करें जिसमें संक्रमण के शुरुआती लक्षण दिखने लगें हों, जनभागीदारी सुनिश्चित करें जिससे जांच के लिये लोग खुद आगे आयें और जांच के इंतजामों को युद्धस्तर पर व्यापक बनायें।

लगाई गई है पानी की टंकी

करगिल में कोरोना से संक्रमण के शक में 140 से अधिक लोग क्वॉरंटाइन में हैं। इसके अलावा जिले में 2 मरीजों के पॉजिटिव होने का पता चला है। इसे देखते हुए लत्तू गांव के लोगों ने अब एक कमिटी का गठन किया है। गांव के लोगों की इस कमिटी ने ही गांव के बाहर पानी की टंकी को लगाया है, जिसपर हिदायती लहजे में लिखा है कि किसी भी व्यक्ति को गांव में बिना हाथ धोए एंट्री की इजाजत नहीं है। इसके लिए टंकी के पास साबुन और सैनेटाइजर का भी प्रबंध किया गया है।

जिस गांव में यह मुहिम शुरू हुई है, उसकी ऊंचाई समुद्र तल के करीब 8700 फीट है। गांव के बाहरी इलाकों में बर्फबारी होती रहती है और कई बार रात को तापमान 5 डिग्री से भी कम हो जाता है। पर इन सब स्थितियों में भी गांव के लोग कोरोना से लड़ने की हर संभव कोशिश में जुटे हैं। करगिल के इस इलाके में स्वास्थ्य सेवाओं की कमी को देखते हुए गांव वालों का प्रयास काफी महत्वपूर्ण भी हो जाता है।

सोशल मीडिया पर सराहना

कोरोना के मामलों पर रोकथाम के लिए गांव में चलाई गई इस मुहिम की चर्चा तमाम हिस्सों में है। खास बात ये कि गांव के तमाम लोग इस प्रयास में ना सिर्फ एक साथ खड़े हैं, बल्कि नौजवान लोग गांव में मौजूद तमाम बुजुर्गों और बच्चों की सेहत का खास ध्यान भी रख रहे हैं। गांव के लोगों की इस मुहिम की चर्चा खुद कारगिल के उपायुक्त बशीर उल हक चौधरी ने ट्विटर पर की है।

लॉकडाउन से संक्रमण दर शून्य नहीं होगा

देश में जो स्थिति है, उसे देखते हुये लॉकडाउन कितना असरकारी है, यह एक अप्रैल के बाद ही पता चल सकेगा। बेशक लॉकडाउन से संक्रमण के मामले बढ़ने में कमी आती है, क्योंकि एक संक्रमित व्यक्ति 2.9 लोगों में संक्रमण फैलाता है और लाकडाउन में यह संख्या घटकर 2.0 हो जाती है, शून्य नहीं। लॉकडाउन का असर 10 दिन में पता चलता है।

फिलहाल संक्रमित और संदिग्ध मरीजों के दायरे में आये प्रत्येक व्यक्ति की पहचान सुनिश्चित करने पर ही पूरा दारोमदार टिका है और इसके लिये लोगों को जांच के लिये खुद सामने आना होगा। अब इस स्थिति में सरकार के साथ लोगों की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण हो गयी है।

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