राष्ट्रीय

पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह पुण्यतिथि विशेष, जानें- किसानों के मसीहा के बारें में सब कुछ

Special Coverage News
29 May 2020 6:07 AM GMT
पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह पुण्यतिथि विशेष, जानें- किसानों के मसीहा के बारें में सब कुछ
x
अंग्रेजों के शासन में भी चरण सिंह की तूती बोलती थी और किसानों की कर्जमाफी कराई..

नई दिल्ली : भारत के पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की 33वीं पुण्यतिथि है। जिन्हें आज भी किसानों का मसीहा कहा जाता है। पूरे जीवन किसानों के लिए आवाज उठाना ही शायद वो असल वजह है, जिसने चौधरी चरण सिंह को किसानों के मसीहा की संज्ञा दी है। आज जब चरण सिंह की 33वीं पुण्यतिथि (29 मई) है तो राष्ट्रीय लोकदल उस मुहाने पर पहुंच गई है जहां हर तरफ सूखा ही सूखा नजर आ रहा है।

गरीबी में यूपी के हापुड़ में एक जाट परिवार में जन्म लेने वाले चरण सिंह ने आगरा यूनिवर्सिटी से कानून की शिक्षा लेकर 1928 में गाजियाबाद में वकालत शुरू की। इसके बाद गायत्री देवी से उनका विवाह हो गया।

चरण सिंह की 6 संतानों में एक चौधरी अजित सिंह हैं, जो फिलहाल राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष हैं। राष्ट्रीय लोकदल के एजेंडे में आज भी किसान हैं, लेकिन जनता का भरोसा जीतने में वह फेल हो गई है। 2017 के विधानसभा चुनाव और 2019 के लोकसभा चुनाव में आरएलडी की करारी हार ने उसके अस्तित्व पर संकट खड़ा कर दिया है।

पार्टी का सिर्फ एक विधायक जीता, जो बाद में बीजेपी में शामिल हो गया। फिलहाल, आरएलडी का न कोई विधायक है और न ही कोई सांसद। यहां तक कि मौजूदा चुनाव में चौधरी अजित सिंह और उनके बेटे जयंत सिंह दोनों ही चुनाव हार गए हैं। 29 मई 1987 को आखिरी सांस लेने वाले चौधरी चरण सिंह ने किसानों की राजनीति कर जो विरासत अजित सिंह को सौंपी थी, उसकी फसल अब बर्बाद हो गई है।

इतिहास है कि चरण सिंह एकमात्र ऐसे प्रधानमंत्री रहे जिन्होंने कभी संसद का सामना नहीं किया

जब 1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आपातकाल की घोषणा की। इसका ऐसा असर हुआ कि तमाम गैर-कांग्रेसी दल व नेता एकजुट हो गए। इस विलय को जनता पार्टी का नाम दिया गया और 1977 में जब चुनाव हुआ तो इंदिरा की हार हुई और मोरारजी देसाई के नेतृत्व में जनता पार्टी की सरकार बनी। हालांकि, जल्द ही जनता पार्टी में बिखराव हो गया। मोराजी देसाई की सरकार गिर गई। सब नेता जनता पार्टी छोड़ने लगे. इस कड़ी में चौधरी चरण सिंह सबसे आखिरी कतार में नजर आए और उन्होंने कांग्रेस का समर्थन लेकर सरकार बना ली।

चरण सिंह जुलाई 1979 में प्रधानमंत्री बन गए। हालांकि, कुछ दिन बाद ही इंदिरा गांधी ने समर्थन वापस ले लिया और चरण सिंह की सरकार भी गिर गई। ये भी एक इतिहास है कि चरण सिंह एकमात्र ऐसे प्रधानमंत्री रहे जिन्होंने कभी संसद का सामना नहीं किया।

अंग्रेजी शासन में भी किसानों की कर्जमाफी कराई

जब चरण सिंह की राजनीति का आगाज हुआ तो हर तरफ बहार थी। यहां तक कि अंग्रेजों के शासन में भी चरण सिंह की तूती बोलती थी। बागपत की छपरौली विधानसभा सीट का वो 1977 तक लगातार प्रतिनिधित्व करते रहे। इस बीच उन्होंने गांव, गरीब और किसानों के लिए जमकर काम किए।

1937 की अंतरिम सरकार में जब चरण सिंह विधायक बने तो सरकार में रहते हुए 1939 में कर्जमाफी विधेयक पास करवाया। चरण सिंह का ये वो कदम था, जो आज भी राजनीतिक दलों का मुख्य एजेंडा माना जाता है। वहीं, चरण सिंह ने किसानों के खेतों की नीलामी रुकवाई।

चौधरी चरण सिंह के हस्तक्षेप पर कर का बोझ कम करने के लिए और किसानों के लिए इनपुट लागत, ग्रामीण विद्युतीकरण के निर्माण में उनकी भूमिका नाबार्ड जैसे संस्थानों, ग्रामीण विकास मंत्रालय में अपने इरादे पर प्रकाश डाला और आज याद किया जाता है। चरण सिंह ने 1979 में उप प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री के रूप में प्रस्तुत अपने बजट में 25000 गांवों के विद्युतीकरण को मंजूरी दी थी।

चरण सिंह ने यह तमाम काम कांग्रेस पार्टी में रहते हुए किए। लेकिन करीब 40 साल तक देश की सबसे पुरानी पार्टी का हिस्सा रहने के बाद 1967 में उन्होंने इस्तीफा दे दिया। ये वो वक्त था, जब जवाहर लाल नेहरू की मौत हो चुकी थी और कांग्रेस में नेतृत्व को लेकर घमासान शुरू हो गया था और इंदिरा गांधी काल का आरंभ हो चुका था।

लिहाजा, चरण सिंह ने अपना रास्ता अलग कर लिया और कांग्रेस से इस्तीफा देने के बाद ही भारतीय क्रांति दल का गठन कर लिया। सियासी हालात ऐसे बने कि चरण सिंह यूपी के मुख्यमंत्री बन गए और करीब एक साल यह जिम्मेदारी संभाली। ये पहला मौका था जब यूपी में गैर-कांग्रेस सरकार का गठन हुआ। इस सरकार में जनसंघ, सोशलिस्ट, प्रजा सोशलिस्ट, स्वतंत्र पार्टी और कम्यूनिस्ट तक शामिल थे, जो खुद में अद्भुत था।

Next Story