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आर्थिक मोर्चे पर सरकार के लिये मुश्किल भरी चुनौतियां

Shiv Kumar Mishra
9 April 2021 10:46 AM IST
आर्थिक मोर्चे पर सरकार के लिये मुश्किल भरी चुनौतियां
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देश की अर्थव्यवस्था का इस प्रकार का संकेत देश को वित्तीय आपात की तरफ भी ढ़केल सकता है। सरकार के नीतिगत फैसलों की वजह से आज देश में लोगों की बीच भ्रम और अफरातफरी की स्थिति बनी हुई।

बृजेश कुमार वरिष्ठ पत्रकार

एक तरफ पांच राज्यों में चुनाव में चुनाव हो रहें तो दूसरी तरफ देश में अर्थव्यवस्था पर संकट के बादल छाये हुये हैं। सरकार नये रोजगार सृजन के साथ साथ उद्योगों को दिशा देने में नाकाम रही है। वहीं दूसरी तरफ कोरोना का दूसरा चरण देश में मुँह फैलाये तेजी से बढ़ रहा है। आम जनमानस में एक प्रकार का भय व्याप्त है कि अगर दूसरी बार लाकडाउन की स्थिति बन रही है। अभी तक छत्तीसगढ़ में पूर्ण लाकडाउन के अतिरिक्त अन्य कई राज्यों में नाईट कर्फ्यू लगाया जा रहा है। देश में अर्थव्यवस्था टेक आफ की स्थिति में आ चुकी थी। परन्तु अब लगने वाला लाकडाउन फिर से इसे निष्क्रीय कर देगा। गरीबी भूखमरी देश के घर -घर में पहुँचने की पूरी संभावना है। भारत ही नहीं विश्व के अन्य देशों में भी कोरोना ने अर्थव्यवस्था चौपट कर दी है। जहां अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की जुगत की जा रही थी। कोरोना की दूसरी लहर ने फिर से लोगों में भय का माहौल पैदा कर दिया है।

देश में महगाई अपने चरम पर है । पेट्रोल गैस सीएनजी की कीमतों में उछाल से आम लोगों के लिये काफी संघर्ष पूर्ण स्थिति हो गयी है। जहा पहले स्थिति यह थी कि मंहगाई बढ़ रही थी । परन्तु लोगों के पास रोजगार थे या जीवन यापन करनें के लिये छोटे मोटे रोजगार के साधन थे ।जिस वजह से महगाईं इतना असर नहीं दिखा सकी । परन्तु अब स्थिति इससे इतर है ।लोगों के पास सब्जी खरीदने भर के पैसे नहीं है। आटा दाल चावल खरीदना खरीदने के पैसे नहीं है। बच्चों की फीस ,इएमआई,रूम रेंट के पैसे चुका पानें में बड़ी मुश्किल हो रही है।देश की रीढ़ कहा जाने वाला आईटी उद्योग पूरी तरह से टूट चुका है।अन्य कई बड़ी कंपनिया दीवालीया होनें की कगार पर हैं। तो दूसरी तरफ सार्वजनिक उपक्रम को बेचने की लिस्ट सरकार तैयार कर चुकी है।

देश की अर्थव्यवस्था का इस प्रकार का संकेत देश को वित्तीय आपात की तरफ भी ढ़केल सकता है। सरकार के नीतिगत फैसलों की वजह से आज देश में लोगों की बीच भ्रम और अफरातफरी की स्थिति बनी हुई।

भारत एक कृषि प्रधान देश है।जहां देश में जोत का आकार मंझोला है, या तो छोटा है। लगभग 40 प्रतिशत आबादी पूरी तरह से कृषि पर आधारित है।देश में विकास की मुख्य अवधारणा देश में 2012 के बाद आयी । हालाकिं देश में पहले भी विकास हुये थे। लेकिन गुजरात का सुशासन माडल लागू करने की बात कहकर कई राज्यों और देश में सरकार बनायी गयी। परन्तु अब हम विकास का कहीं नाम भी नही सुनते । यूपी में एक बार बस बिकरू कानपुर की घटना में विकास का जोरशोर से नाम लिया गया था। यही देश का दुर्भाग्य है कि आम जनता आवेश में आकर जाति धर्म समाज के विभिन्न धड़ों मे विभाजित हो जाती है। चुनाव के बाद पछताने के शिवाय कुछ हाथ नहीं लगता । राजनीति की इस पशोपेश में आम जनता उस गेंहू के घुन की तरह पीस जाती है जिसका सिर्फ इतना सा दोष होता है चुनाव के समय उचित -अनुचित में स्पष्ठ भेद नहीं कर पाती।

विकास माडल की स्थिति आज यह हो रही है कि देश की अर्थव्यवस्था चलाने के लिये कौड़ी के भाव बेचा जा रहा है। यह बताया जा रहा है कि सरकार के मार्गदर्शन में कंपनिया सही तरिके से उत्पादन नहीं कर पा रही है। जबकि ऐसा बिल्कुल नहीं है कि देश की कई कंपनिया को सीधे तौर पर कुछ प्राईवेट संस्थानों को सुपुर्द कर दिया गया । कृषि बिल लाकर सरकार नें किसानों को साधनें का प्रयास किया गया। परन्तु किसान कृषि बिल के बिरोध में ही रोड़ पर आ गये। तमाम आन्दोलन कृषि बिल के खिलाफ चलाये गये । सरकार नें बिल को ठंडे बस्ते में डाल दिया।

देश के विभिन्न राज्यो में चुनाव के प्रचार में होनें वाले तमाम खर्चे देश में मुद्रा स्फिति को बढायेंगें। इस स्थिति से देश का हर व्यक्ति दो चार हो रहा है। लाकडाउन के बाद की स्थिति यह हो गयी है मध्यम वर्ग को निम्न वर्ग में लाकर खड़ा कर दिया है।

देश में लगातार प्रयास किया जा रहा है कि कोरोना वैक्सीन जन जन को उपलब्ध करायी जा सके। परन्तु अभी संभव नहीं हो पाया है। इसलिये सरकार सुरक्षा के लिये कई राज्यो में लाकडाउन जैसी स्थिति अपना रही है। परन्तु आखिर कब तक ऐसी स्थिति रहेगी। क्या सरकार के पास ऐसी कोई योजना नहीं है जिससे प्रभावी रूप से कोरोना से निपट सकें। परन्तु अगर सरकार ने इस पर ध्यान नहीं दिया तो आगे अर्थव्यवस्था की स्थिति और दयनीय होगी। महाराष्ट्र छत्तीगढ राजस्थान उत्तर प्रदेश कहीं भी स्थिति ठीक नहीं कही जा सकती।देश सम्पनता को बजाय विपन्नता की तरफ बढ़ रहा है।

देश में कोरोना के अतिरिक्त आतंकवाद, नक्सलवाद,सीमा के अतिरिक्त तमाम आंतरिक समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। ऐसी हालत में सरकार को सतर्कता बरतनी होगी। जितना जल्दी संभव हो लाकडाउन जैसी स्थिति से उबरने का प्रयास किया जाय। सरकार को विनिर्माँण क्षेत्र के साथ इंफ्रास्ट्रकचर के विकास पर जोर देना होगा। इससे भी बड़ी बात सरकार को बेरोजगारी पर रोक लगानी होगी। अगर सरकार रोजगार सृजन पर ध्यान नहीं दे सकी तो जल्दी ही संभावना है , बेरोजगारों की स्थिति विस्फोटक हो जायेगी। जब आम नागरिकों छोटे मोटे रोजगार के भी साधन नहीं रहेंगे तो चोरी ,छिना झपटी की घटनायें बढ़ेगी। युवा अवस्था में बेरोजगारों के दिशाहीन होना संभव है। इसलिये जरूरी है कि सरकार नीतिगत आर्थिक मामलों पर समीक्षा करे। जनहीत में नीतिगत फैसले करे।


(लेखक न्यूज चैनल में कार्यरत हैं)

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