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परीक्षा पे चर्चा: पीएम मोदी बोले-'मार्क्स का चक्कर छोड़ें' अपने उदाहरण में चंद्रयान-2,राहुल द्रविड़ और वीवीएस लक्ष्मण का भी नाम लिये
नई दिल्ली। पीएम नरेंद्र मोदी ने 'परीक्षा पे चर्चा 2020' कार्यक्रम में छात्रों, शिक्षकों और अभिभावकों से दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में एक घंटे 52 मिनट बात की। मोदी ने कहा कि 2020 केवल नया साल ही नहीं, बल्कि नए दशक की शुरुआत है। इस दौरान देश के विकास में सबसे ज्यादा 10वीं-12वीं के छात्रों की भूमिका होगी। प्रधानमंत्री ने चंद्रयान-2 की नाकामी का जिक्र करते हुए यह भी कहा कि विफलता दिखाती है कि आप सफलता की ओर बढ़ गए। राहुल द्रविड़, वीवीएस लक्ष्मण और अनिल कुंबले के उदाहरण से समझाया कि कैसे उनके खेल ने बाकी खिलाड़ियों को मोटिवेट कर दिया।
'इस दशक में नई पीढ़ी पर निर्भरता'
मोदी ने कहा, ''मैं सबसे पहले नए साल 2020 की शुभकामनाएं देता हूं। यह केवल नया साल नहीं, बल्कि नए दशक की शुरुआत है। इस दशक में देश जो भी करेगा, उसमें 10वीं-12वीं के छात्रों का सबसे ज्यादा योगदान होगा। देश नई ऊंचाइयों को पाने वाला बने, नई सिद्धियों के साथ आगे बढ़े। यह सब इस पीढ़ी पर निर्भर करता है। इसलिए इस दशक के लिए मैं आपको अनेक अनेक शुभकामनाएं देता हूं।''
''अगर कोई मुझे कहे कि सारे इतने कार्यक्रमों के बीच कौन सा कार्यक्रम दिल के करीब है, तो वह है परीक्षा पर चर्चा। मुझे अच्छा लगता है कि जब इसकी तैयारी होती है, तब युवा क्या सोच रहा है, इस बात को मैं महसूस कर सकता हूं। हमारे बीच हैशटैग विदआउट फिल्टर यानी खुल कर बातें होनी चाहिए। दोस्त की तरह बातें करेंगे, तो गलती हो सकती है, आपसे भी और मुझसे भी। मुझसे गलती होगी तो टीवी वालों को भी मजा आएगा।''
'मूड खराब न करें'
प्रधानमंत्री ने कहा, ''नौजवानों का मूड ऑफ होना ही नहीं चाहिए। लेकिन क्या कभी हमने सोचा है कि मूड ऑफ क्यों होता है। अपने खुद के कारण से या बाहर की परिस्थिति से। ज्यादातर मामलों में दिमाग खराब होता है, काम का मन नहीं करता। उसमें बाहर की परिस्थितियां ज्यादा जिम्मेदार होती हैं। आप पढ़ रहे हैं और अगर आपकी चाय 15 मिनट लेट हो जाए, तो आपका दिमाग खराब हो जाता है। लेकिन अगर आपने यह सोचा कि मां इतनी मेहनत करती है, इतनी सेवा करती है, जरूर कुछ हुआ होगा, जो मां चाय समय से नहीं दे पाई। तो आपका मूड अचानक से चार्ज हो जाता है। अपनी अपेक्षा पूरी न हो पाने के कारण हमारा मूड ऑफ होता है।''
'असफलता के आगे ही सफलता'
मोदी ने बताया, ''जीवन में शायद ही कोई व्यक्ति हो, जिन्हें नाकामी से गुजरना न पड़ता हो। कभी कुछ करने के लिए मोटिवेटेड होते हैं, अचानक असफलता मिलने पर डिमोटिवेट हो जाते हैं। चंद्रयान-2 के लिए हम रातभर जागे। आपका उसमें कोई कॉन्ट्रीब्यूशन नहीं था, लेकिन जब वह मिशन असफल हुआ तो आप सब डिमोटिवेट हो गए। कभी-कभी विफलता आपको परेशान कर देती है। कई लोगों ने मुझसे कहा था कि आपको उस कार्यक्रम में नहीं जाना चाहिए। आप जाएंगे और फेल हो गया तो क्या कहेंगे।
मैंने कहा- इसलिए तो मुझे जाना चाहिए। जब आखिरी कुछ मिनट थे, तो मुझे दिखा कि वैज्ञानिकों के चेहरे पर तनाव है, परेशान हैं। मुझे लगा कि कुछ अनहोनी हो गई है। फिर थोड़ी देर बाद उन्होंने बताया तो मैंने कहा- ट्राई कीजिए। मैं बैठा हूं। मैंने वहां साइंटिस्ट्स के साथ बातें कीं। कुछ देर बाद अपनी होटल चला गया।''
''मैं वहां भी चैन से बैठ नहीं पाया। सोने का मन नहीं किया। हमारी पीएमओ की टीम अपने कमरों में चली गई। आधा पौने घंटे बाद मैंने सबको बुलाया। मैंने कहा- सुबह हमें जाना है, तो सुबह थोड़ा देर से जाएंगे। मैं सुबह उन साइंटिस्टों से मिला। मैंने उनके परिश्रम की जितनी सराहना की जा सकती थी, की। देखा कि पूरा माहौल बदल गया। सिर्फ वैज्ञानिकों का नहीं, पूरे हिंदुस्तान का माहौल बदल गया। हम विफलताओं में भी सफलताओं की शिक्षा पा सकते हैं। हर प्रयास में हम उत्साह भर सकते हैं। किसी चीज में विफल हुए हैं तो इसका मतलब यह है कि अब आप सफलता की ओर चल पड़े हैं।''
'सोच ही जीत दिलाती है'
प्रधानमंत्री ने क्रिकेट मैच का उदाहरण देते हुए समझाया, ''2001 में भारत-ऑस्ट्रेलिया का क्रिकेट मैच था। सारा माहौल डिमोटिवेशन का था। पब्लिक गुस्सा हो जाती है। आपको याद होगा कि राहुल द्रविड़ और वीवीएस लक्ष्मण ने ऐसा कमाल किया, शाम तक खेलते रहे और सारी परिस्थिति को उलट कर दिया। वे मैच को जीत कर आ गए। हम यह बना लें कि अगर सोच लें कि हम कैसे हार सकते हैं? जूझ जाएं तो नतीजा बदल सकता है।
2002 के एक मैच में कुंबले जी को जबड़े में गेंद लग गई थी। हम सोच रहे थे कि अनिल बॉलिंग कर पाएंगे या नहीं। अगर वे न भी खेलते तो देश उन्हें दोष न देता, लेकिन उन्होंने तय किया कि उतरेंगे और पट्टी लगाकर मैदान पर उतरे। उस समय ब्रायन लारा का विकेट लेना बड़ा काम माना जाता है। उन्होंने लारा का विकेट लेकर पूरा मैच पलट दिया। यानी एक व्यक्ति की हिम्मत से परिस्थितियां कैसे बदल सकती हैं, वो दिखाई दिया। एक आदमी का संकल्प कइयों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनता है।''
'मार्क्स का चक्कर छोड़ें'
मोदी ने कहा, ''आज जाने-अनजाने सफलता-विफलताओं का पैमाना परीक्षाओं के मार्क्स बन गए है। इस वजह से छात्र सोचते हैं, कि बाकी सब पीछे छोड़े पहले मार्क्स ले आऊं। माता-पिता भी कहते हैं पहले 10वीं निकाल लो, फिर 12वीं के लिए मेहनत के लिए कहेंगे। इसके बाद एंट्रेस एग्जाम निकालने के लिए कहेंगे। वे बच्चे को सिर्फ मोटिवेट करना चाहते हैं। लेकिन अब दुनिया बदल गई है। कोई एग्जामिनेशन जिंदगी नहीं है। सिर्फ एक पड़ाव है। हम इन्हें अपने पूरे जीवन का एक पड़ाव मानना चाहिए, न कि पूरी जिंदगी। मैं पेरेंट्स से कहना चाहता हूं कि बच्चों को यह मत कहें कि ऐसा नहीं हुआ तो दुनिया लुट गई। बच्चे किसी भी क्षेत्र में जा सकते हैं। हो सकता है स्कूली शिक्षा कम रही हो, लेकिन वे चीजें सीखकर जीवन को बढ़िया बना देता है। परीक्षा का महात्म्य है, लेकिन परीक्षा ही जिंदगी है, इस सोच से बाहर आना चाहिए।''
'जो सीखें, जिंदगी की कसौटी पर कसें'
मोदी के मुताबिक, ''शिक्षा दुनिया के दरवाजे खोलने का रास्ता होती है। बच्चे 'क' शुरू करते हैं, चलते-चलते काफी आगे पहुंच जाते हैं। कोई अगर सरगम को ठीक से जान ले और वहीं रुक जाए, तो क्या वह संगीत की दुनिया में बड़ा काम कर सकता है? नहीं। यानी हम जो सीखते हैं, उसे हमें हर दिन जिंदगी की कसौटी पर कसना चाहिए। अगर क्लास में मुझे पढ़ाया गया कि भाई कम बोलने से फायदा होता है, तो कोशिश करनी चाहिए कि जब माता-पिता डांटें, तो शांत रह सकते हैं क्या? आप कोई एक्स्ट्रा करिकुलर एक्टिविटी नहीं करते, सिर्फ काम करते हैं, तो आप रोबोट बन जाएंगे। मैं चाहता हूं कि हमारा युवा साहस सामर्थ्य दिखाने वाला हो। सपने देखने वाला हो।''
''समय का संतुलन जरूरी है। लेकिन समय पूरी तरह बर्बाद हो जाएगा, ऐसा नहीं सोचना चाहिए। आज अवसर बहुत हैं। इन दिनों एक नई बुराई आ गई है। जब मां-बाप दोस्तों के बीच बैठते हैं तो उन्हें बच्चे की एक्टिविटीज बताने में बड़ा मजा आता है। पेरेंट्स सोचते हैं कि फलां सेलिब्रिटी वाली एक्टिविटी बच्चे से कराऊंगा। वे एक्टिविटी के लिए दबाव डालते हैं। पेरेंट्स देखें कि बच्चों के लिए उसकी रुचि वाली चीज कौन सी है, उसी को आगे बढ़ाएं। कहीं न कहीं तो एक्टिविटीज को जीवन में बांधना चाहिए। इससे आपको संतोष मिलेगा। कई लोग ऐसे होते हैं, जो 35-40 साल के बाद कुछ करने का सोचते हैं, वे सोचते हैं कि यह भी नहीं किया, वह भी नहीं किया। तब जीवन उनके लिए जीवन बोझ बन जाता है। जो आप क्लास में सीखते हैं, वो आपके 40 साल के बाद बहुत काम आता है। 10वीं-12वीं के विद्यार्थियों को तो कुछ न कुछ एक्स्ट्रा करना चाहिए, इससे माइंड फ्रेश हो जाएगा।''
'तकनीक को हिसाब से इस्तेमाल करें'
प्रधानमंत्री ने कहा, ''इस वक्त टेक्नोलॉजी हावी है, लेकिन इसका भय जीवन में नहीं आने देना चाहिए। इसे दोस्त मानें। कोशिश होनी चाहिए कि मैं जो तकनीक में देख रहा हूं, उसका बेहतर इस्तेमाल कैसे हो। यह माना जाता है कि तकनीक कइयों का समय चोरी कर लेती है। जितना समय आपका स्मार्टफोन खाता है, उसका 10% भी माता-पिता के साथ बिताएं तो किसमें ज्यादा फायदा होगा। हमारे अंदर वह ताकत होनी चाहिए कि तकनीक को अपने हिसाब से इस्तेमाल करूंगा।''
''आज की पीढ़ी स्टेशन पर ट्रेन देखने के लिए लाइन नहीं लगाती। वे गूगल डुओ से बात कर लेते हैं, घर बैठकर की ट्रेन के बारे में जानकारियां हासिल कर लेते हैं। यानी तकनीक का प्रयोग कैसे हो यह नई जेनरेशन जान गई है। सोशल नेटवर्क शब्द में टेक्नोलॉजी के कारण इतनी विकृति आ गई कि अब वॉट्सऐप से नेटवर्किंग कर रहे हैं। पहले हम जन्मदिन विश करने उसके घर चले जाते थे, अब हम वॉट्सऐप कर देते हैं। टेक्नोलॉजी का ज्यादा इस्तेमाल हो, लेकिन गुलाम न बनें।''
'अधिकार के साथ कर्तव्य भी जरूरी'
मोदी ने कहा, ''अधिकार भाव एक व्यवस्था है और कर्तव्य भाव दूसरी, ऐसा नहीं है। कर्तव्य, अधिकार में निहित हैं। गांधीजी ने कहा था कि मूलभूत अधिकार नहीं होते, मूलभूत तो कर्तव्य होते हैं। अगर हम अपने कर्तव्य निभाएं तो किसी को अधिकार मांगने नहीं पड़ेंगे, क्योंकि कर्तव्य से ही अधिकार संरक्षित होंगे। राष्ट्र के लिए हमें कुछ कर्तव्य निभाने चाहिए। 2022 आजादी के 75 साल होंगे। हमें 2047 में आजादी के 100 साल होंगे। जब आजादी के 100 साल होंगे। तो आप कहां होंगे? आप कहीं न कहीं लीडरशिप में होंगे। आज जो 10वीं-12वीं के विद्यार्थी 2047 में लीडरशिप की पोजिशन में होंगे। जब आप लीडर होंगे, तब आपको बिल्कुल टूटी-फूटी व्यवस्था मिल जाए तो कैसा लगेगा। इस देश के लिए कई लोगों ने अपनी जान की बाजी लगा दी। कुछ अंडमान-निकोबार की जेल में बंद रहे। मैं देश के लिए कर्तव्य निभा सकूं, उन कर्तव्यों का पालन करना चाहिए।
''क्या हम यह फैसला कर सकते हैं कि हमें आगे मेड इन इंडिया खरीदेंगे। इससे देश की इकोनॉमी को ताकत मिलेगी। अगर पटाखे भी बाहर से लाकर धमाका करेंगे तो क्या होगा। मैं बिजली फालतू नहीं जाने देता, पानी नहीं बहने देता, बिना टिकट ट्रेन में सफर नहीं करता। अगर हर हिंदुस्तानी यह करे, तो बहुत कुछ बदल सकता है। हम लोग जब पढ़ते थे, तो नागरिक शास्त्र पढ़ाया जाता था, अब वो नहीं पढ़ाया जाता। लेकिन हमें नागरिक के तौर पर जिम्मेदारियां निभानी चाहिए। एयरपोर्ट पर हम कतार नहीं तोड़ते, क्योंकि वह हमारे अनुशासन का हिस्सा है। अगर यही अनुशासन सब के जीवन में आ जाता है, तो बहुत कुछ बदल सकता है।''
'बच्चे की क्षमता आंकें'
मोदी ने कहा, ''पैरेंट्स-टीचर्स को अंदाजा होना चाहिए कि स्टूडेंट्स की क्षमता क्या है। पेरेंट्स सोचें कि जब आप तीन-चार साल के थे, तब आपके मां-बाप कैसे बर्ताव करते थे। क्या वे कभी बच्चों को जबरदस्ती चलने के लिए मजबूर करते थे। नहीं, वे प्यार से उसे बुलाते थे। ताली बजाते थे। बच्चे बड़े हो गए हैं यह स्वीकारें, लेकिन खुद को उनकी मदद करने वाली साइकी में ही रखिए। उस साइकी में, माता-पिता 3-4 साल के थे। इसे जिंदा रखिए। जब पेरेंट्स बच्चे को वहां पहुंचने का मौका देते हैं, जहां वह जाना चाहता है, उस परिवार में बहुत बढ़ोतरी होती है।''
''भारत में बच्चा सुपर पॉलिटिशियन होता है। उसे पता है कि पापा फिल्म देखने के लिए मना करेंगे, तो वह दादी के पास जाता है। मां कुछ मना करती है तो वह पापा के पास जाता है। आप बच्चों को जानें और उसे जताएं। उन्हें जितना प्रोत्साहित करेंगे, उतना बच्चे को शक्ति पता चलेगी। जितना दबाव डालेंगे, उतना ही बच्चा परेशान होगा।''
'जब कंफर्टेबल हों, तब पढ़ें'
मोदी ने कहा, ''रात को जागना या सुबह जागना यह इश्यू है। मैं बात पर बात करने के लिए 50% अधिकारी हूं क्योंकि मैं खुद सुबह जल्दी उठता हूं, लेकिन रात में जल्दी सो नहीं पाता। इसलिए मैं आधी आदर्श स्थिति तो फॉलो करता हूं और आधी नहीं। इसलिए मैं मॉरल अथॉरिटी नहीं हूं, जो आपको इस बारे में बताऊं। फिर भी सोचिए कि पूरे दिन मेहनत के बाद आपके पास कितनी क्षमताएं बचेंगी, रात में पढ़ते वक्त आपका दिमाग प्रीऑक्यूपाइड होगा। हो सकता है रात में आप फोकस न कर पाएं। लेकिन गहरी नींद के बाद सुबह सूर्योदय के पहले तैयार होकर पढ़ना शुरू करते हैं तो आप मन से तंदुरुस्त होते हैं। उस समय जो आप पढ़ेंगे वो ज्यादा रजिस्टर होगा। जरूरी यह नहीं कि सुबह पढ़ना है या शाम को। आप जिसमें कंफर्टेबल हों, उसी में रहें।''
'देखादेखी नहीं, मन का काम करें'
मोदी ने कहा, ''जीवन में हर किसी को कुछ न कुछ जिम्मेदारियां निभानी होती हैं। अगर आप किसी की देखादेखी में कोई काम करते हैं, तो बहुत निराशा हाथ लगेगी। अगर अपने मन का काम करेंगे, तो मजा आएगा। जिंदगी में अगर एकाध एंट्रेंस में रह गए तो क्या। लाखों लोग पीछे रह जाते हैं। लेकिन अगर हम डर के कारण कदम ही न रखें तो उससे बुरा कुछ नहीं। हमेशा अपने अंदर के विद्यार्थी को जीवित रखें। जीवन जीने का यही मार्ग है, नया-नया जानना।''
''मेरा आग्रह है कि मेरी किताब 'एग्जाम वॉरियर' जरूर पढ़िएगा। आपका कोई सवाल नहीं रहेगा। 12वीं के बाद भी आपको तनाव रहता है। यह तनाव एग्जाम का नहीं है। जो आप अनुभव कर रहे हैं, वो तनाव आपके अंदर एक एंबीशन और आकांक्षा का है कि मुझे कुछ बनना है। आप सोचते है कि यह एग्जाम उस एंबीशन का जरिया है। आपको एग्जाम की सफलता का टेंशन नहीं है। आप सोचते हैं कि एग्जाम में अगर ठीक नहीं हुआ तो मैं फेल हो जाऊंगा। हमें कभी भी बनने के सपने नहीं पालने चाहिए। इसमें निराशा की संभावनाएं होती हैं। लेकिन अगर कुछ करने के सपने देखें तो कुछ अच्छा करने का मौका रहेगा। एग्जाम को कुछ बनने के सपने से नहीं, बल्कि कुछ करने के सपने से जोड़ना चाहिए।''
'30-40 साल बाद गर्व होगा'
मोदी ने आखिर में कहा, ''आज जो मेरे सामने हैं, वो नया भारत हैं। 2047 में भारत जब आजादी की शताब्दी मनाएगा, तो आपके पास नेतृत्व होगा। आज से 30-40 साल बाद जब सफलता को चूमेंगे और मैं अगर जीवित रहूंगा तो गर्व से कहूंगा कि यह वही लोग हैं जिनका मुझे 20 जनवरी को दर्शन करने का सौभाग्य मिला था। मैं गर्व करूंगा कि जब आपके हाथ में देश का नेतृत्व होगा। संतोष होगा कि इनसे मैंने बात की थी। परीक्षा जिंदगी नहीं है, परीक्षा जिंदगी में महज एक मुकाम है। आप में से बहुत से लोग हैं, जिन्हें शायद यहां मौका नहीं मिला। मैं उनसे क्षमा चाहता हूं।''