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किसानों को आतंकवादी मत कहिये

किसानों को आतंकवादी मत कहिये
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समय का फेर देखिए जिस किसान को लोग अन्नदाता और धरतीपुत्र कहते हुए नहीं थकते थे, एक ही दिन में वह उपद्रवी और आतंकवादी जैसे शब्दों से नवाजा जाने लगा । दो महीनों से किए जा रहे किसानों के अथक प्रयास अर्श पर पहुंचने से पहले ही फर्श पर औंधे मुंह आ गिरे।

गणतंत्र दिवस के दिन किसानों की ट्रैक्टर परेड के दौरान हुई हिंसा के बाद अचानक किसान खलनायक नजर आने लगा है। सरकार ही नहीं आम जनता भी अब किसानों पर नकेल कसने को आमादा है। और तो और किसानों के अपने सहयोगी भी इस आंदोलन से किनारा करने लगे हैं। यह सब कहने का अर्थ यह मत निकालिए कि मैं दिल्ली में हुई हिंसा को जायज ठहरा रहा हूं, मैं भी इसका सख्त विरोध करता हूं। ऐसा किसी भी हालत में नहीं होना चाहिए था और शायद किसान भी ऐसा कुछ नहीं चाहते थे।

लेकिन कहीं यह कुछ युवा किसानों के आक्रोश और गुस्से का परिणाम तो नहीं था? पिछले दो महीनों से अपने घरों से दूर आंदोलन पर बैठे किसानों के हालात पर गौर करें तो पता चलेगा की रूह चीरने वाली ठंडी हवाओं और हाड़ गलाने वाली ठंड के बीच किस तरह वह अपनी मांगों को मनवाने के लिए शांति पूर्वक और धैर्य के साथ बैठे रहे। बेमौसम बारिश भी किसानों को उनके हौसले से डिगा न सकी। उस पर सरकार के साथ बातचीत के लंबे सिलसिले बेनतीजा रहे। सरकार ने बैठकों के बीच कई कई दिनों का अंतराल भी रखा। तमाम प्रयासों का हल ना निकलने के बावजूद किसानों ने अपना संयम बनाए रखा।

लंबी-पकी सफेद दाढ़ी वाले उम्रदराज किसानों ने तो अपना धीरज नहीं खोया, लेकिन युवा गर्म खून कई बार अति उत्साह में ऐसी गलतियां कर बैठता है जिसके लिए शायद बाद में उसे भी पछतावा होता है।कमोबेश दिल्ली में ट्रैक्टर परेड के दौरान हुई हिंसा के बाद ऐसा करने वालों को भी मलाल जरूर होगा। वहीं इस संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि किसान आंदोलन को बेपटरी करने के लिए कुछ बाहरी ताकतों ने हिंसा को भड़काया हो।

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के उस बयान से में सौ प्रतिशत सहमत हूं जिसमें उन्होंने भी कहा कि एक दिन की उपद्रव की घटना देशभर के किसानों की समस्याओं से बड़ी कतई नहीं हो सकती है।

हां यह जरूर है कि जो किसान हिंसात्मक घटनाओं में शामिल रहे हैं उनकी पहचान कर उन पर कानून सम्मत कार्रवाई की जानी चाहिए लेकिन इस घटना के एवज में किसान आंदोलन समाप्त हो जाए या उसका दमन कर दिया जाए तो यह किसी भी कीमत पर जायज नहीं होगा।जो किसान संगठन अभी तक संयुक्त किसान मोर्चा के रूप में आंदोलन को आगे बढ़ाते रहे, उन्हें इस आंदोलन से बाहर निकल जाने के बजाय फूंक फूंक कर कदम रखते हुए आंदोलन को मजबूत करना चाहिए।इसके अलावा आंदोलनरत किसानों को ट्रैक्टर मार्च के दौरान हुई घटना से सबक लेते हुए यह सुनिश्चित करना चाहिए कि आगे से इस प्रकार के आयोजन न किए जाएं। सरकार के साथ धैर्य पूर्वक बातचीत करके विवाद का हल निकालना ही सबसे बेहतर होगा।

माजिद अली खां

माजिद अली खां

माजिद अली खां, पिछले 15 साल से पत्रकारिता कर रहे हैं तथा राजनीतिक मुद्दों पर पकड़ रखते हैं. 'राजनीतिक चौपाल' में माजिद अली खां द्वारा विभिन्न मुद्दों पर राजनीतिक विश्लेषण पाठकों की सेवा में प्रस्तुत किए जाते हैं. वर्तमान में एसोसिएट एडिटर का कर्तव्य निभा रहे हैं.

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