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बाबर का हुमायूँ को किया वसीयतनामा पढ़कर आप हैरान मत होना
रंगनाथ सिंह की फेसबुक से साभार
इलाहाबाद विश्वविद्यालय में इतिहास के प्रोफेसर रहे बीएन पाण्डे ने सन् 1993 में एक किताब छपवायी थी जिसमें बाबर का हुमायूँ को किया वसीयतनामा प्रकाशित हुआ था। प्रो पाण्डे ने किताब की भूमिका में लिखा है, "इस पुस्तक के प्रकाशन का श्रेय भारत के पूर्व प्रधानमंत्री श्री चंद्रशेखर जी को है।" बता दें कि प्रो पाण्डे राज्यसभा सांसद और ओडिशा के राज्यपाल भी रहे थे। यहाँ वही वसीयतनामा दिया जा रहा है। उसके पहले बाबर के बारे में मुख्तसर जानकारी देना उचित है।
बाबर का जन्म 14 फरवरी 1483 को आज के उज्बेकिस्तान की फरगना घाटी में हुआ था। बाबर ने 20 अप्रैल 1526 को पानीपत के प्रथम युद्ध में इब्राहिम लोदी को हराकर दिल्ली और आगरा की हुकूमत पर कब्जा किया। 26 दिसम्बर 1530 को आगरा में बाबर का निधन हो गया। बाबर के बाद उसके बेटे हुमायूँ ने उसकी हुकूमत सम्भाली। बाबर ने भारत में मुगल वंश की नींव रखी जो करीब 200 साल तक भारत की सबसे ताकतवर हुकूमत रही।
बाबर के बाद क्रमशः हुमायूँ, अकबर, जहाँगीर, शाहजहाँ और औरंगजेब दिल्ली-आगरा के बादशाह बने। 1707 में औरंगजेब के निधन के बाद मुगल सल्तनत कमजोर पड़ती गयी और 1857 में हुए भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम तक आखिरी मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर की बादशाही नामभर की ही बची थी। आगे आप पढ़ें प्रोफेसर बीएन पाण्डे की किताब में प्रकाशित बाबर का वसीयतनामा जिसे हूबहू दिया जा रहा है-
सम्राट बाबर का वसीयतनामा:-
अल्लाह के नाम के साथ
- ऐ मेरे फर्जंद, सल्तनत के स्थायी रखने की गरज से यह वसीयतनामा लिखा गया है।
हिन्दुस्तान का मुल्क भिन्न-भिन्न धर्मों का गहवारा है। उस अल्लाह की तारीफ है कि जो न्यायवान, दयावान और महान है, जिसने तुझे बादशाही बख्शी है। यह मुनासिब है कि तू अपने दिल से सभी धर्मों की तरफ से अगर कोई बदगुमानी है तो उसे निकाल दे और हर मिल्लत अथवा सम्प्रदाय के साथ उनके अपने से उनका न्याय कर, खास तौर से गाय की कुर्बानी से बिल्कुल परहेज कर क्योंकि इससे तू हिन्दुस्तान का दिल जीत लेगा और इस मुल्क की रय्यत का दिल इस अहसान से दब कर तेरी बादशाही के साथ रहेगा। तेरे साम्राज्य में हर धर्म के जितने मन्दिर और पूजाघर हैं, उनको नुकसान न हों। इस तरह अदल और इंसाफ करना जिससे रय्यत शाह से और शाह रय्यत से आसूदा रहे। इस्लाम की तरक्की, जुल्म की तेग के मुकाबले में अहसान की तेग से ज्यादा अच्छी हो सकती है। शिया और सुन्नियों के झगड़ों को नजरअंदाज करना क्योंकि इन झगड़ों से इस्लाम कमजोर होता है। प्रकृति के पाँचों तत्वों की तरह विविध धर्मों के पैरोकारों के साथ व्यवहार करना ताकि सल्तनत का जिस्म विविध व्याधियों से पाक और साफ रहे। हजरत तैमूर के कारनामों को अपनी नजर के सामने रखना ताकि सल्तनत के काम में तुम पुख्ता हो जाओ।
और हमारा काम महज तुम्हें सलाह देना है।
हिजरी 933, जमादि-उल-अव्वल की पहली तारीख
(11 जनवरी, 1529 ईसवी)
स्रोतः पृष्ठ 102, भारतीय संस्कृति- मुगल विरासत: औरंगजेब के फरमान, डॉ. बिश्वम्भरनाथ पाण्डे, हिन्दी अकादमी, दिल्ली, 2017 (द्वितीय संस्करण)