
ऐतिहसिक एवं दुर्लभ अभिलेखीय धरोहर को डिजीटल करने का प्रयास युद्ध स्तर पर जारी

माजिद अली खां
वैश्विक मानव इतिहास में शायद पहली बार ऐसा हो रहा है कि वृहद स्तर पर ऐतिहसिक और दुर्लभ अभिलेखों के डिजीटाइजेशन और उन्हें संरक्षित करने का बीड़ा उठाया गया हो। मोदी सरकार के देश को डिजीटल बनाने के मिशन में ऐतिहासिक अभिलेखों के डिजीटाइजेशन का कार्य भी अतिमहत्वपूर्ण हिस्सा बनेगा जब लगभग तीस हज़ार करोड़ अभिलेख पृष्ठों को लगभग छह लाख पृष्ठ प्रतिदिन के हिसाब से दो साल पूर्ण रूप से डिजीटल किया जाने का प्रयास किया जाएगा और इन डिजीटल पृष्ठों को राष्ट्रीय अभिलेखागार (नेशनल आर्काइव आफ इंडिया- एनएआई) के वेबपोर्टल "अभिलेखपटल" पर अपलोड कर दिया जाएगा।
ये क्रांतिकारी और दुनिया को चौंकाने वाला मिशन चलाने का बीड़ा उठाया है राष्ट्रीय अभिलेखागार के महानिदेशक और यूपी काडर के अतिवरिष्ठ आईएएस अधिकारी अरुण सिंघल साहब ने। राष्ट्रीय अभिलेखागार के महानिदेशक अरुण सिंघल साहब स्वयं आइआइटियन हैं एवं एक विज़नरी शख्सियत के मालिक रहे हैं। उन्होंने प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी के देश को पूर्णरूपेण डिजीटल करने के सपने को पूरा करने के लिए अभिलेखीय एवं इतिहास संरक्षण के क्षेत्र में इस कार्य को अंजाम देने के प्रयास शुरू कर दिए हैं। महानिदेशक अरुण सिंघल साहब के इस प्रयास से जब ये अभिलेखीय ऐतिहसिक धरोहर डिजीटल होगी तब देश ही नहीं बल्कि दुनिया के शोधार्थियों को इसका लाभ मिलेगा और कोई भी स्कालर बिना अभिलेखागार आए इंटरनेट पर इन अभिलेखों को पढ़ सकेगा। अभिलेखों को डिजीटल करने वाली कंपनी का चयन भी कर लिया गया है, उम्मीद की जा रही है कि बहुत जल्दी ही ये काम शुरू कर दिया जाएगा।
राष्ट्रीय अभिलेखागार दुनिया के बड़े अभिलेखागारों में शुमार ही नहीं किया जाता बल्कि बड़ी संख्या में अतिदुर्लभ अभिलेखों को संरक्षित करने में अपना एक विशेष स्थान रखता है। राष्ट्रीय अभिलेखागार को अभिलेखों का समंदर की संज्ञा दी जाती है इसमें कोई संदेह नहीं है। इसमें केवल भारत ही नहीं विश्व में इतिहास से जुड़े किसी भी विषय में शोध करने वाले शोधार्थी नई दिल्ली स्थित राष्ट्रीय अभिलेखागार में आकर इन अभिलेखों से जानकारी जुटाते हैं। आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के समय और जब दुनिया एक डिजटल गांव के तौर पर ढल रही है तब इस बात की आवश्यकता महसूस की जा रही थी के अब ऐतिहसिक अभिलेखीय धरोहर को भी डिजीटल कर उनकी वैश्विक स्तर पर पहुंच को आसान बना दिया जाए जिसके लिए अभिलेखागार के महानिदेशक अरुण सिंघल साहब ने मिशन मोड में अपनी कमर कस ली है, यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि यह काम जब अपने लक्ष्य पर पहुंचेगा तो दुनिया के लिए मिसाल बनेगा क्योंकि कहीं भी इतने बड़े स्तर पर अभिलेखों को डिजीटल करने और संरक्षित करने का मिशन नहीं चलाया गया होगा।
राष्ट्रीय अभिलेखागार के महानिदेशक अरुण सिंघल साहब के इस मिशन में कर्णधार बने हैं अभिलेखागार के उपनिदेशक सैयद फरीद साहब और माइक्रो फोटोग्राफिस्ट और कंप्यूटर युनिट के इंचार्ज जे के लुथरा साहब।
राष्ट्रीय अभिलेखागार के उपनिदेशक सैयद फरीद अहमद साहब का ये कमाल रहा है कि उन्होंने अभिलेखागार द्वारा संचालित स्कूल आफ आर्काइवल स्टडी ( एस ए एस) में पढ़ाए जाने वाले अभिलेखीय अध्ययन एवं प्रबंधन जैसे अतिमहत्वपूर्ण लेकिन बेजान हो गए इस विषय में जान फूंक कर राष्ट्रीय ही नहीं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विद्वानों, शोधार्थियों और इतिहास में दिलचस्पी रखने वाले लोगों का ध्यान इस के प्रति आकृष्ट कराया है। सैयद फरीद अहमद समय समय पर रिकार्ड मैनेजमेंट पर देशभर में ही नहीं बाहर भी लेक्चर देते रहे हैं। उपनिदेशक सैयद फरीद अहमद भी महानिदेशक अरुण सिंघल साहब के इस मिशन में उनके साथ कड़ी लगन के साथ खड़े हुए हैं और काम को आगे बढ़ाने का प्रयास जारी रखे हुए हैं।
ऐतिहसिक अभिलेखीय धरोहर के डिजीटाइजेशन मिशन में एक और महत्वपूर्ण स्तंभ हैं राष्ट्रीय अभिलेखागार के माइक्रोफोटोग्राफिस्ट के जे के लुथरा साहब। जे के लुथरा खुद आईटी के आदमी हैं तथा बड़ी मेहनत से वो भी अभिलेखीय ऐतिहसिक धरोहर को डिजीटल करने के सपने को पूरा करने में जी जान से जुट गए हैं।
देश विदेश के शोधार्थी और विद्वान इस कदम की अपने अपने स्तर पर प्रशंसा भी कर रहे हैं और महानिदेशक अरुण सिंघल एवं उनकी टीम की सराहना भी की जा रही है।
माजिद अली खां, (पत्रकार एवं अभिलेखीय सहायक राष्ट्रीय अभिलेखागार, नई दिल्ली)