

बात 8 अप्रैल 2015 की है, दिल्ली से पेरिस के लिए निकले, प्रधानमंत्री मोदी की पेरिस यात्रा को कवर करने जा रहे थे, पहली बार पेरिस जाना हो रहा था तो और ज़्यादा उत्साह भी था। पूरी यात्रा के दौरान भागदौड़ ज़्यादा थी, इस बीच पेरिस के मीडिया के मित्रो से जानकारी हुई कि राफेल लड़ाकू विमान को लेकर कोई सहमति बन सकती है,लेकिन किसी को नही पता था कि ये सहमति दो सरकारों के बीच (govt to govt) होने जा रही है, विदेश मंत्रालय के अधिकारी भी कुछ ज़्यादा बताने की स्थिति में नही थे।
प्रधानमंत्री मोदी के पेरिस दौरे के आखिरी दिन यानी 12 अप्रैल को तब के विदेश सचिव एस जयशंकर ने भागम-भाग में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर इसकी जानकारी दी, लेकिन मुझे याद है कि उनके पास उस समय राफेल डील पर बनी सहमति को लेकर ज़्यादा डिटेल्स नहीं थे।प्रधानमंत्री मोदी ने वायुसेना की ज़रूरत को ध्यान में रखते हुए एक अप्रत्याशित कदम उठाया और 36 राफेल विमानो को तुरंत खरीदने का समझौता किया। आपको बता दे वायुसेना की एक स्क्वाड्रन में 42 विमान होते हैं और वायुसेना के स्क्वाड्रन में घट कर 33 विमान रह गए थे, ऐसे हालात में मोदी ने जो फैसला लिया वो शायद कोई भी प्रधानमंत्री लेता। खैर बाद में हम वापस दिल्ली लौट आये। चूंकि राफेल विमान को लेकर फ्रांस और भारत के बीच बनी सहमति को लेकर किसी पत्रकार के पास बहूत कम डिटेल थे इसलिए खबर भी बहूत सुर्खियों में नही आ पाई।
प्रधानमंत्री भी 18 अप्रैल को फ्रांस से जर्मनी और फिर कनाडा की यात्रा कर वापस आ चुके थे। वे19 अप्रैल 2015 को संसद भवन की लायब्रेरी बिल्डिंग में सांसदों की एक कार्यशाला को संबोधित करने के बाद वापस जा रहे थे,बिल्डिंग के अंदर पत्रकारों का जमावड़ा था, प्रधानमंत्री ने क्या बात कही ये जानने की उत्सुकता सभी मे थी, उस समय मुझे याद है कि भूमि अधिगृहण कानून को लेकर राजनीति बेहद गर्म थी,इसलिए पत्रकारों का जमावड़ा और भी ज़्यादा था। प्रधानमंत्री आम तौर से जिस रास्ते से बाहर निकलते हैं वे उस रास्ते से बाहर नही निकले, सभी को चौका देने की अद्भुत क्षमता का बार-बार प्रयोग करने में कुशल पीएम मोदी पत्रकार जहां इकट्ठा थे वही से बाहर निकले, सभी पत्रकार अब सवाल दाग़ने को तैयार हो गए। पीएम मोदी ने दिल्ली के 90 के दशक के पुराने परिचित पत्रकार, रामनारायण श्रीवास्तव को आवाज़ दी " कैसे है रामनारायण जी" और उनके कंधे पर हाथ रख हाल-चाल जानने लगे। रामनारायण श्रीवास्तव के बगल में मैं खड़ा था, प्रधानमंत्री जी से नमस्कार हुई और तभी उन्होंने मुझसे पूछ लिया "विकास तुम तो पेरिस में थे" ,मैने हाँ में जवाब दिया,
तभी प्रधानमंत्री ने कहा कि "आप लोग बहूत अन्याय करते हैं इतनी बड़ी राफेल की डील पर सहमति बनी है और आप लोगो ने ना छापा और ना दिखाया" मैंने कहा , सर राफेल पर अफसरों ने ब्रीफिंग में सिर्फ एक दो लाइन ही बताई, इससे ज़्यादा के डिटेल्स मिले ही नही, पीएम मुस्कुराए और चल दिये, कुछ और साथी पत्रकार उनसे सवाल पूछते रहे लेकिन अपनी अदा के मुताबिक बिना कुछ बोले आगे निकल गए।
अब आप सोचिए अगर राफेल डील में घपला होता तो क्या कोई भी प्रधानमंत्री इसका प्रचार- प्रसार नहीं करने के लिए नाराज़गी ज़ाहिर करता, शायद नहीं, वो तो चाहता कि गुप-चुप डील हो जाए।लेकिन 19 अप्रैल की घटना के हफ्ते भर के भीतर 36 राफेल डील के बहूत सारे डिटेल्स मीडिया में छपे, आखिर में सितम्बर 2016 में जाकर 36 रफेल को लेकर दिल्ली में समझौते पर हस्ताक्षर हुए।
अब राफेल विमान में काँग्रेस को घोटाला दिखाई दे रहा है, लेकिन घोटाले में तीन महत्वपूर्ण तथ्य जो होने चाहिए काँग्रेस उन तथ्यों के बिना ही घोटाला-घोटाला चिल्ला रही है। ना तो वित्तीय लेन-देन की सीरीज है, न बैंक खाते है जिसमे घोटाले के पैसे गये हो, न बीच में बिचौलिया या दलाल है, फिर कैसा घोटाला ?? न हमारे समझ में आ रहा है और न जनता के समझ आ रहा है, हाँ वे ज़रूर इसमे घोटाला देख रहे हैं जो किसी भी कीमत पर मोदी को तबाह होते देखना चाहतें हैं। उन्हें राफेल से बड़ी उम्मीदें हैं। लेकिन मोदी पर जब-जब आरोप लगे हैं तब तब वे आग में तप कर कुंदन बन कर निखरे हैं।
ये पहला मौका नहीं है जब मोदी को बदनाम कर गिराने की साज़िश हो रही है। 2002 के दंगो को लेकर,12 साल तक मोदी को राजनीतिक रूप से खत्म करने की कोशिश काँग्रेस ने की। ये पहला प्रयास था जब कांग्रेस ने मोदी का राजनीतिक वध करने की कोशिश की, धर्म निरपेक्षता के रथ पर सवार काँग्रेस ने 2007 के विधानसभा चुनाव में दूसरी बार में "मौत का सौदागर"कह कर मोदी को मौत के घाट उतारने की कोशिश की। 2012 के चुनाव में मोदी को काँग्रेस
नेता ने "रावण मोदी" "जालिम मोदी" और 2017 में "नीच मोदी" तक कहा, चायवाला कहा, लेकिन जब जब कॉंग्रेस ने मोदी का अपमान किया जनता ने मोदी को और ऊँचाई पर बैठा दिया। 2002 से लेकर 2014 तक लगातार 4 चुनावो में सीधे -सीधे, मोदी ने गांधी परिवार और काँग्रेस को धूल चटाई। 2014 के बाद तो मोदी ने 22 से ज़्यादा बार काँग्रेस को चित किया हालांकि तीन बार मोदी को भी काँग्रेस ने पंजाब बिहार और कर्नाटक में पटखनी दी। लेकिन इस बार काँग्रेस 2019 में मोदी को हमेशा के लिए मार गिराना चाहती है। शाम-दाम-दंड-भेद से लेकर चरित्र हनन (2014 के लोकसभा चुनाव में)तक सारे तरीके अपनाकर हार चुकी काँग्रेस,इस बार राफेल विमान की खरीद को घोटाला, चिल्ला-चिल्लाकर मात देना चाहती है। लेकिन "चोर-चोर" का काँग्रेस का शोर जनता को चुभ रहा है, उल्टा सवाल दाग देती है पब्लिक, एक तो मोदी चोरी कर नहीं सकता, दूसरा जनता मन में ये भी है आखिर किसके लिए करेगा मोदी, आगे-पीछे तो है नही कोई ?
ये सब हो रहा है तभी बीजेपी ने आरोप जड़ दिया है कि स्विस से पिलाटस विमान खरीद में घोटाले में पकड़े गए हथियार दलाल संजय भंडारी के रॉबर्ट वाड्रा से करीबी संबंध है और रॉबर्ट वाड्रा के लिए संजय भंडारी ने लंदन में 19 करोड़ का मकान भी खरीद कर दिया है ये मकान संजय भंडारी के जीजा चड्ढा ने खरीदा। इस मामले में सीबीआई जांच कर रही है। अब जिसके दामन में इतने दाग हो वो अगर दुसरे को दागी कहेगा तो उल्टे सवाल तो पब्लिक पूछ ही लेगी न ?
ये बात भी सामने आई है कि यूपीए सरकार के समय संजय भंडारी की कंपनी OIS को राफेल विमानो की खरीद में शामिल करने का दवाब भी दौसा कंपनी पर था, दौसा ही राफेल विमान बनाती है।
दौसा कंपनी ने अनिल अंबानी के अलावा 70 दूसरी कम्पनियो से भी करार किया है, 2022 के बाद ही इस करार पर आगे बढ़ा जाएगा, और दौसा ही तय करेगा कि वो 70 कंपनियों में से किस से राफेल के लिए कौन सा पुर्जा बनवायेगा, हो सकता है कि जिस अनिल अंबानी को तीस हजार करोड़ का ठेका देने का दावा कॉंग्रेस कर रही है वो राफेल विमान के लिए टायर भर ही बनाये या महिंद्रा जिसका नाम तक लोग अभी इस डील में नहीं जानते वो राफेल के लिए विमान बनाये। लेकिन राजनीति ऐसे ही चलती है। जिसका दांव लगता है वो लगा लेता है अपना दांव।लेकिन फैसला जनता करती है।
चलिए,चलते- चलते राफेल की खूबियां बताते हैं और ये भी बताते हैं कि राफेल विमान की खरीद में कौन-कौन से विमान कंपनीयो ने टक्कर दी थी
भारतीय वायु सेना ने कई टेस्ट के बाद राफेल को चुना है। हालांकि राफेल विमान भारत सरकार के लिए एकमात्र विकल्प नहीं था। इस डील के लिए कई अंतरराष्ट्रीय विमान निर्माताओं ने भारतीय वायुसेना को विमान बचने की पेशकश की थी। इनमें से छह बड़ी विमान कंपनियों को चुना गया। जिसमें लॉकहीड मार्टिन का एफ-16, बोइंग एफ/ए -18 S, यूरोफाइटर टाइफून, रूस का मिग -35, स्वीडन की साब की ग्रिपेन और राफेल शामिल थे। भारतीय वायुसेना ने विमानों के परीक्षण और उनकी कीमत के आधार पर राफेल और यूरोफाइटर को शॉर्टलिस्ट किया। यूरोफाइटर टायफून काफी महंगा है। इस कारण 126 राफेल विमानों को खरीदने का फैसला किया गया है।
अब ये जो बड़ी-बड़ी कंपनी जिनको सौदा नहीं मिला वो क्या चुप बैठेगी, इस राजनीतिक उठापटक में बेहद ताकतवर ये कंपनी और उसके दलाल,राफेल सौदा केंसिल करने के लिए खूब ज़ोर लगा रहे हैं।।