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किसान तड़प रहे है ठंड से और दोनों पक्ष खेल रहे है वार्ता वार्ता
लगता है सरकार और किसान नेता दोनों मिलकर किसानों की भावनाओ के साथ खिलवाड़ करने में लगे हुए है । जब सरकार स्पस्ट रूप से दृढ़ शब्दो मे कह चुकी है कि किसी भी हालत में कृषि बिल वापिस नही होंगे तो फिर किसान नेता वार्ता में जाते क्यो है ? इससे जाहिर होता है कि सरकार के साथ नेता भी किसानों की परीक्षा लेने पर आमादा है ।
पिछले करीब 50 दिनों से सरकार और किसान नेता आपस मे कबड्डी खेल रहे है । इसका खमियाजा उन किसानों को उठाना पड़ रहा है जो डेढ़ महीने से कड़कड़ाती ठंड और बारिश में सड़कों पर डेरा डाले हुए है । इनमे महिला, बुजुर्ग और बच्चे तक शामिल है । सरकार से ज्यादा किसान नेता इस धरने और आंदोलन के लिए जिम्मेदार है ।
सवाल उठता है कि जब दोनों पक्ष अपना इरादा स्पस्ट कर चुके है फिर वार्ता का स्वांग क्यों ? किसान बिना बिल वापसी के आंदोलन समाप्त करने को राजी नही तो सरकार ने पहले ही कह दिया है कि किसी भी हालत में बिल वापिस नही होंगे । फिर नेता लोग किसानों का मखौल उड़ाने पर आमादा क्यों ?
दरअसल दोनों पक्षो ने किसानों का अपना औजार बना लिया है । नेता लोग किसानों के कंधे पर बंदूक चलाकर किसानों की भावना का मजाक उड़ा रहे है । आज नवे दौर की वार्ता फिर हुई । इसमे भी वहीं टेप बजाया गया जो पिछली आठ बैठकों में बजता रहा है । सरकार ने पुनः अपना रुख स्पस्ट कर दिया कि बिल वापसी के अलावा किसी मुद्दे पर बातचीत की जा सकती है ।
किसान नेताओ को चाहिए कि वे वार्ता में समय खराब करने के बजाय आंदोलन को सार्थक मोड़ दे । सरकार धरने से बिल वापिस ले लेगी, यह सोचना बहुत बड़ा मुगालता है । वार्ता फिर 19 जनवरी तक टाल दी गई है । इस वार्ता में कोई निर्णय होगा, इसकी संभावना शून्य है । आंदोलनकारी को अपने नेताओं से पूछना होगा कि कब तक बंदूक उनके कंधे पर चलती रहेगी ।
कांग्रेस के पास आजकल कोई कामधाम नही है । जनाधार उसका पहले ही खिसक चुका है । किसानों की वह हिमायती है, इसको प्रदर्शित करने के लिए आज स्वांग तो रचा गया । लेकिन वह इसमे बुरी तरह नाकामयाब रही । उसका प्रदर्शन केवल रस्म अदायगी जैसा नजर आया । अगर कांग्रेस किसानों की सच्ची हिमायती है तो इसके नेताओ और कार्यकर्ताओं को कड़कड़ाती ठंड में खुले आसमान के नीचे धरना देना चाहिए ।
अब समय आगया है जब किसानों को खुद निर्णय लेना होगा । सरकार से किसी प्रकार की उम्मीद करना बेमानी होगा । उधर नेता लोग भी अपनी नेतागिरी को धार देने के लिए किसानों का इस्तेमाल कर रहे है । ये सभी नेता प्रोफेशनल है । किसानों से ज्यादा इनको अपनी दुकान चलाने की फिक्र है । इसलिए कोई निर्णायक कदम उठाने के बजाय वार्ता वार्ता खेल रहे है ।