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एशियाई देशों के कृषि महाकुंभ में बस्तर के 'मां दंतेश्वरी हर्बल समूह' के किसानों के नवाचारों की मची धूम, अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों ने सराहा
नई दिल्ली : "जैविक खेती एशिया-2022" के एशियाई देशों के दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय महासम्मेलन में डॉ राजाराम त्रिपाठी ने देश की शीर्ष कृषि अनुसंधान संस्थान आईसीएआर ICAR के पूसा परिसर दिल्ली में आयोजित इस भव्य अंतर्राष्ट्रीय महासम्मेलन में "आमंत्रित विशेषज्ञ वक्ता" की हैसियत से बोलते हुए "अखिल भारतीय किसान महासंघ" (आईफा) के राष्ट्रीय संयोजक राजाराम त्रिपाठी ने सरकार को कटघरे में खड़े करते हुए कहा कि सरकार जैविक खेती का केवल ढोल पीटती है लेकिन जब अनुदान देने की बारी आती है तो पूरा का पूरा खजाना उठाकर रासायनिक खाद की कंपनियों को सौंप दिया जाता है और जैविक खेती को "जीरो- बजट" जैसे भ्रामक नकली जुमलों का झुनझुना थमा दिया जाता है। डॉक्टर त्रिपाठी ने तथ्यों और आंकड़ों के साथ अपनी बात को रखते हुए कहा कि, कृषि मंत्रालय भारत सरकार की उपलब्ध जानकारी के अनुसार, देश में लगभग 70 मिलियन टन रासायनिक जहरीली खाद का सालाना उपयोग किया जाता है।
इसका सीधा सीधा मतलब यह है कि, देश की लगभग 130 करोड़ की जनसंख्या हर साल लगभग 54 किलो केमिकल फर्टिलाइजर खा रही है। यानी कि बच्चा, बूढा, नौजवान स्त्री पुरुष सभी,,प्रति व्यक्ति प्रतिदिन लगभग डेढ़ सौ ग्राम यानी कि, आधा पाव जहरीला केमिकल फर्टिलाइजर खाद्य पदार्थों के रूप में ब्रेकफास्ट लंच और डिनर के रूप में ग्रहण कर रहा है। और यही कारण है कि आज हर घर में कोई न कोई किसी न किसी बीमारी से ग्रस्त है,और प्रत्येक परिवार एक अथवा एकाधिक बीमारियों से घिरा हुआ है। इससे आय का एक बड़ा हिस्सा चिकित्सा वे वे दवाई और डॉक्टर भी बेचा जाता है। इजी जहरीली खाद और दवाइयों के कारण मानव सहित सभी जीव जंतुओं का पेट भरने वाली धरती मां की अनमोल उपजाऊ मिट्टी, समस्त जीवन के पर्याय जल के सभी स्रोत तथा प्राणवायु सहित जलवायु तथा सम्पूर्ण पृथ्वी का पर्यावरण विषाक्त हो चला है। साल दर साल रासायनिक खाद की मात्रा के साथ ही साथ धरती तथा हमारे शरीरों में घुलने वाले जहर की मात्रा भी बढ़ती जा रही है।
रासायनिक जहरीले खाद पर अनुदान की अगर बात करें तो सरकार ने 2020 के दौरान उर्वरकों पर 15801.96 करोड़ रुपये की "पोषकतत्व" आधारित सब्सिडी तथा 53950.75 करोड़ रु की "यूरिया सब्सिडी" प्रदान की अर्थात लगभग 70 हजार करोड़ का अनुदान रासायनिक ज़हरीली खाद के को दिया गया यदि 13 तेरह करोड किसान देश में हम मानते हैं तो प्रति किसान सरकार ₹6000 दे सकती है। डॉक्टर त्रिपाठी ने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) सहित भारत तथा अन्य एशियाई देशों के कृषि वैज्ञानिकों को औषधीय पौधों की खेती के देश के पहले ( स्थापना:1996) अंतरराष्ट्रीय प्रमाणित जैविक फार्म "मां दंतेश्वरी हर्बल फार्म एवं रिसर्च सेंटर, कोंडागांव बस्तर भ्रमण हेतु आने का सादर निमंत्रण देते हुए कहा कि, देश के सबसे पिछड़े दुर्गम आदिवासी क्षेत्र में पिछले 25 वर्षों में जैविक तथा औषधीय पौधों की खेती के क्षेत्र में "मां दंतेश्वरी हर्बल समूह" के किसानों के द्वारा किसानों की आय बढ़ाने वाले जो नए-नए नवाचार किए गए हैं उसे देखने समझने, और अधिक शोध करने के साथ ही उसे देश के अन्य किसानों तक पहुंचाने की महती आवश्यकता है।
देश तथा अन्य एशियाई देशों के वैज्ञानिकों को यह बताते हुए हमें बड़ा हर्ष है कि बस्तर के "मां दंतेश्वरी हर्बल समूह" के द्वारा "काली मिर्च" की एक ऐसी अनूठी और ज्यादा लाभ देने वाली किस्म विकसित की गई है, जिसकी लगभग हर तरह की जलवायु में, देश के लगभग सभी राज्यों में आसानी से खेती की जा सकती है, तथा देश की शीर्ष शोध संस्था सीएसआइआर (आईएचबीटी) पालमपुर के सहयोग से "स्टीविया" की एक ऐसी नई प्रजाति भी विकसित की गई है। इसमें कड़वाहट बिल्कुल ही नहीं है, और इसकी पत्तियां शक्कर से 25 गुना मीठी हैं तथा यह मिठास जीरो-कैलोरी वाली है।
अन्य कई दुर्लभ औषधीय पौधों की नई प्रजातियों पर भी कार्य किया जा रहा है। त्रिपाठी ने कहा की जैविक खेती पर और शोध किया जाना चाहिए, सरकार, वैज्ञानिकों और किसानों को साथ मिलकर काम करना होगा तभी इस पृथ्वी तथा इसके पर्यावरण को बचाते हुए मानव जाति की खाद्य संबंधी सभी आवश्यकताओं को पूरा किया जा सकेगा। कार्यक्रम का उद्घाटन भारत सरकार के कृषि मंत्री श्री माननीय नरेंद्र तोमर के द्वारा किया गया। कार्यक्रम में भारत सरकार तथा एशियाई देशों के प्रतिनिधियों, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के डायरेक्टर जनरल डा.त्रिलोचन महापात्रा, इंडियन चैंबर्स ऑफ फूड एंड एग्रीकल्चर के चेयरमैन डॉ एमजे खान, आयोजन प्रमुख ममता जैन जी, एशिया के शीर्ष कृषि वैज्ञानिकों, उच्चाधिकारियों, कृषि आदानों के शीर्ष निर्माता कंपनियों सहित देश के कई राज्यों के प्रगतिशील किसानों ने भाग लिया।
डॉ राजाराम त्रिपाठी, राष्ट्रीय संयोजक : अखिल भारतीय किसान महासंघ (आईफा)