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कोरोना महामारी संकट से असुरक्षित हुए बच्चों के बचपन को बचाने के लिए आर्थिक मदद की दरकार
अनिल पांडेय
कोरोना महामारी ने पूरी दुनिया में आर्थिक संकट पैदा कर दिया है। हालात महामंदी के बन रहे हैं। अर्थशास्त्री तो इसकी भविष्यवाणी भी करने लगे हैं। वे आशंका जाहिर कर रहे हैं कि यह सन 1930 के दशक की वैश्विक महामंदी के बाद की सबसे बड़ी महामंदी होगी। इस महामंदी का व्यापक असर होगा और दुनियाभर में बेरोजगारी तथा गरीबी और बढ़ेगी। विश्व बैंक के एक ताजा अध्ययन के मुताबिक कारोना महामारी की मार से साल 2020 में दुनिया के 4 से 6 करोड़ लोग "अत्यधिक गरीबों" की सूची में शामिल हो जाएंगे। वहीं अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन का कहना है कि इस वैश्विक महामारी की वजह से अनौपचारिक क्षेत्र के लाखों कामगार बेरोजगार भी हो जाएंगे।
दुनिया में पहले से ही अमीरी-गरीबी के बीच गहरी खाई और असमानता है। इस महामारी ने से मौजूद असमानताओं को भी उजागर कर दिया है। मौजूदा समय में दुनिया की आबादी का पांचवा हिस्सा बेहद गरीब है। करीब 20 करोड़ लोग बेरोजगारी की मार झेल रहे हैं। करोना महामारी की वजह से पैदा हुए आर्थिक संकट से यह आंकड़ा और बढ़ने वाला है। कोरोना का सबसे विनाशकारी प्रभाव समाज में सबसे कमजोर और वंचित लोगों पर पड़ेगा। यह बच्चों के शोषण को और बढ़ाएगा। महामारी से बचने के लिए घरों में फंसे बच्चों को यौन शोषण और घरेलू हिंसा का सामना करना पड़ेगा। आर्थिक संकट की वजह से जैसे-जैसे बेरोजगारी बढ़ेगी और इसकी वजह से वैसे-वैसे बच्चों की ट्रैफिकिंग भी। उन्हें अपने परिवारों की आजीविका चलाने के लिए मजबूरन स्कूलों की पढ़ाई बीच में छोड़नी होगी और अपने श्रम को सस्ते में बेचना पड़ेगा। यानी वे बाल मजदूरी करने के लिए विवश होंगे। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन की मानें तो दुनिया में आज भी तकरीबन 16 करोड़ बच्चे बाल मजदूरी कर रहे हैं। वहीं, कोरोना के तेजी से बढ़ते संक्रमण पर रोक लगाने के लिए व्यापार और कारोबार के साथ ही दुनिया के तमाम देशों में स्कूल भी बंद कर दिए गए हैं। जिसकी वजह से दुनिया के करीब 37 करोड़ बच्चे मिड-डे मील से वंचित हैं। ऐसे में इन गरीब बच्चों के सामने पेट भरने का संकट पैदा हो गया है।
आने वाली वैश्विक महामंदी का असर वैसे तो सबके जन-जीवन पर पड़ेगा, लेकिन इससे सबसे ज्यादा बच्चे प्रभावित होंगे। सन 2009 में आई वैश्विक महामंदी के परिणाम बताते हैं कि इससे प्रभावित देशों में बाल मजदूरी, बच्चों की गुलामी, बाल वेश्यावृत्ति, बाल विवाह और बच्चों की ट्रैफिकिंग में बढ़ोत्तरी हुई। कोरोना महामारी और इससे उपजने वाले वैश्विक आर्थिक संकट से पूरी एक पीढ़ी का भविष्य अधर में है। गरीब देशों के बच्चे ही करोना संकट से सबसे ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं। गरीबों-वंचितों के लिए कल्याणकारी योजनाओं के साथ-साथ बच्चों की सुरक्षा की योजनाओं को बढावा देकर इस नई पीढ़ी को बचाया जा सकता है। इसके लिए बच्चों की सुरक्षा में लगी एंजेंसियों को और मजबूत करने तथा हिंसा के शिकार बच्चों को बचा कर उनके उचित पुनर्वास किए जाने की सख्त जरूरत है। जाहिर है, इन सब योजनाओं के लिए पहले से और ज्यादा धन की जरूरत होगी। कोरोना महामारी और उससे पैदा हुए आर्थिक संकट से गरीब देशों की कमर टूट रही है। इससे उबरने के लिए उन्हें आर्थिक मदद की दरकार होगी।
ऐसे हालात में नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित बाल अधिकार कार्यकर्ता श्री कैलाश सत्यार्थी ने एक महत्वपूर्ण पहल की है। उन्होंने पीड़ित बच्चों के हक में दुनिया के नोबेल पुरस्कार विजेताओं और वैश्विक नेताओं को गोलबंद किया है। इन प्रतिष्ठित नेताओं और नोबेल पुरस्कार विजेताओं ने 'लॉरिएट्स एंड लीडर्स फॉर चिल्ड्रेन्स' के बैनरतले दुनिया के हाशिए के बच्चों के हक में एक साझा बयान जारी किया। जिसमें उन्होंने दुनिया के सभी देशों की सरकारों और नीति-निर्माताओं से कोरोना संकट में गरीब-वंचित बच्चों और उनके परिवारों की भलाई के लिए एकजुट होने और बच्चों की सुरक्षा के लिए एक ट्रिलियन डॉलर की मदद का आह्वान किया है। उन्होंने विश्व की सरकारों से यह भी आह्वान किया है कि वे लॉकडाउन के दौरान और उसके बाद प्रभावित होने वाले बच्चों की सुरक्षा को प्राथमिकता दें और इस सिलसिले में अपनी एकजुटता दिखाएं। इतिहास में ऐसा पहली बार हो रहा है कि इतनी बडी संख्या में नोबेल पुरस्कार विजेता और वैश्विक नेता बच्चों की आवाज बुलंद करने के लिए एक साथ एक मंच पर आए हों। जाहिर है इससे सरकारों पर नैतिक दबाव बनेगा।
श्री कैलाश सत्यार्थी ने इंजीनियरिंग के अपने शानदार करियर को छोड कर करीब चार दशकों से बच्चों के शोषण के खिलाफ अभियान चला रहे हैं। उन्हें दुनियाभर में वंचित, पीड़ित और हाशिए के बच्चों के सामने पेश आ रही चुनौतियों का समाधान और उनके अधिकारों की आवाज बुलंद करने के लिए नोबेल पुरस्कार मिलने के बाद "लॉरियेट्स एंड लीडर्स फॉर चिल्ड्रेन्स'' की स्थापना की है। वे देश और दुनिया की सरकारों पर बच्चों के हक में "जन-दबाव" बनाने के लिए ऐसे सफल प्रयोग पहले भी करते रहे हैं। उनके संघर्षों का ही नतीजा है कि भारत सहित दुनिया के कई देशों में बाल श्रम के खिलाफ कानून बने। बाल श्रम के खिलाफ मजबूत अंतरराष्ट्रीय कानून बनवाने का श्रेय भी उन्हें जाता है। बाल श्रम के खिलाफ एक मजबूत अंतरराष्ट्रीय कानून बनाने की मांग को लेकर उन्होंने 1998 में बाल श्रम विरोधी विश्व यात्रा का आयोजन किया था। आज जैसे ही तब भी उन्होंने 100 अधिक देशों के राष्ट्राध्यक्षों और प्रमुख वैश्विक हस्तियों को यात्रा से जोड़ कर जबरदस्त जन दबाव बनाया था। छह महीने तक चली यह विश्व यात्रा 103 देशों से गुजरते हुए और 80 हजार किलोमीटर की दूरी तय कर जिनेवा स्थित अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) पर समाप्त हुई थी। इस यात्रा में करीब एक करोड़ लोग शामिल हुए थे। इससे आईएलओ पर कानून बनाने के लिए जबरदस्त दबाव पड़ा। यात्रा के एक साल बाद आईएलओ ने बाल श्रम और बाल दासता के खिलाफ सर्वसम्मति से कनवेंशन-182 पारित किया। आईएलओ कनवेंशन-182 बाल दासता और बंधुआ बाल मजदूरी पर पूरी तरह से रोक लगाते हुए बच्चों के बाल सैनिक बनाने और पोर्नोग्राफी आदि में शोषण पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाती है। इस पर भारत सहित दुनिया के तकरीबन सभी देश हस्ताक्षर कर चुके हैं। इस दौरान उन्होंने आईएलओ के सामने एक मांग और उठाई थी, जिसमें उन्हेंने साल का एक दिन बाल मजदूरों को समर्पित करने की बात कही थी। उनकी यह मांग मान कर 12 जून को बाल श्रम विरोधी विश्व दिवस घोषित कर दिया गया।
मौजूदा हालात में आर्थिक संकट से उबरने के लिए दुनिया के ताकतवर देशों के संगठन जी-20 ने वैश्विक अर्थव्यवस्था में पांच ट्रिलियन डॉलर से अधिक की मदद देने की घोषणा की है। फिलहाल तो यह आपातकालीन मदद इन देशों की कंपनियों और लोगों के लिए है। लेकिन, अगर श्री कैलाश सत्यार्थी की बात मानकर इसका 20 फीसदी हिस्सा यानी एक ट्रिलियन डॉलर दुनिया की आबादी के 20 फीसदी गरीबों पर खर्च किया जाए तो इससे पूरी एक पीढ़ी को बाल मजदूरी और शोषण से बचाया जा सकता है। कोरोना महामारी के गंभीर संकट की इस घड़ी में हम सब को मिल कर समाज के सबसे कमजोर और हाशिए के बच्चों को बचाने और उसकी सुरक्षा का पुरजोर प्रयास करना चाहिए। यह एक पूरी पीढ़ी को बचाने का उद्यम होगा।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)