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पहले दयाशंकर मिश्रा ने दिया News 18 से इस्तीफ़ा, फिर राहुल गांधी पर लिखी किताब, पढ़ें जरूर
ख़ौफ़ नहीं जिसे मुरझाने का
मैं उस गुल के साथ खड़ा हूँ।
कैसा भी दौर आये लेकिन
मैं राहुल के साथ खड़ा हूँ।
दयाशंकर मिश्रा ने लिखा पहले इस्तीफ़ा, फिर किताब :
राहुल गांधी पर सच लिखना कितनी मुश्किलें खड़ी करेगा, मुझे बिल्कुल अंदाज़ा नहीं था। ऐसे समय जब सत्ताधीशों पर गाथा-पुराण लिखने की होड़ लगी हो, मैंने सोचा था कि एक लोकनीतिक विचारक की सोच, दृष्टि और दृढ़ता को संकलित कर प्रस्तुत करना किसी को क्यों परेशान करेगा? लेकिन मैं ग़लत साबित हुआ। लिखना और व्यक्त करना हमारा काम है। लेकिन इसी के विस्तार से अचानक कंपनी की धड़कनें बढ़ गईं। मेरे पास विकल्प था कि मैं किताब वापस ले लूं। नौकरी करता रहूं। चुप रहूं। लेकिन, मैंने किताब को चुना। जो हमारा बुनियादी काम है, उसको चुना। सच कहने को चुना। इसलिए, पहले इस्तीफ़ा, फिर किताब।
यह किताब असल में न्यूज़रूम के हर उस समझौते का प्रायश्चित है, जिसने छापा नहीं, छिपाया। इसमें राहुल गांधी के ख़िलाफ़ 2011 से शुरू हुए दुष्प्रचार की तथ्यात्मक कहानी और ठोस प्रतिवाद है। किस तरह से मीडिया ने लोकतंत्र में अपनी परंपरागत और गौरवशाली विपक्ष की भूमिका से पलटते हुए न केवल सत्ता के साथ जाना स्वीकार किया, बल्कि विपक्ष यानी जनता की प्रतिनिधि आवाज़ को जनता से ही दूर करने, उसकी छवि को ध्वस्त करने की पेशागद्दारी की। न्यूज़रूम और दुष्प्रचारी IT सेल के अंतर को मीडिया ने मिटा दिया। यह किताब साम्प्रदायिकता, दुष्प्रचार और तानाशाही के खिलाफ राहुल गांधी के संघर्ष का विश्लेषण है।
संवैधानिक संस्थाओं पर केंद्र का क़ब्ज़ा, अन्ना हजारे के साथ मिलकर केजरीवाल की प्रोपेगेंडा राजनीति का चक्रव्यूह, पाठक इसमें आसानी से समझ सकते हैं। यह किताब हालिया इतिहास में लोकतंत्र और संविधान पर हुए हमलों को सिलसिलेवार 11 अध्यायों में बताने का सहज प्रयास है।
आप पढ़िएगा और बताइएगा कि हिंदुत्व की राजनीति में मॉब लिंचिंग की स्थापना, झूठ और दुष्प्रचार की प्रभुसत्ता, हिंदू संप्रदायवाद का नया राष्ट्रवाद बनना, लोकतंत्र से लोकतांत्रिक मूल्यों का विलोपन… ये भारत पर खरोंच हैं जो कुछ समय में ठीक हो जाएंगी या यह एक दशक का सत्तानीतिक ‘सांविधानिक विकास’ है, जिसके निदेशक तत्व आज भारत को चला रहे हैं और दशकों तक चलाएंगे।
पत्रकार नंदलाल शर्मा ने लिखा
ये होता है राहुल गांधी के साथ खड़ा होना. जब गोदी मीडिया में राहुल गांधी के बारे में सोचना भी मना हो. खबर छापने पर पाबंदी हो. जब राहुल गांधी को डिक्रेडिट करने की साजिशें रची जा रही हो, तब उसी न्यूजरूम में खड़ा एक आदमी तय करता है कि वह राहुल गांधी के साथ खड़ा होगा. ये सोच और संकल्पना कोई स्वप्न में आया विचार नहीं था, बल्कि एक दृढ़ निश्चय था कि वह लोकतंत्र और संविधान बचाने के राहुल गांधी के संघर्षों को सर माथे से लगाएगा और जनता के बीच राहुल गांधी के 'आइडिया ऑफ इंडिया' को किताब के रूप में पहुंचाएगा.
दयाशंकर मिश्र की ये किताब उन तमाम खतरों को उठाकर लिखी गई जिसके बारे में सोचकर आज के कथित पत्रकार, और साहित्यकार सिहर उठते हैं. खास बात ये है कि इस किताब को 'कमल' के 'राज' में कोई प्रकाशक छापने को तैयार नहीं हुआ. ये है सत्ता का डर! खैर लिखने वाले ने तय किया कि जब लिख लिया तो खुद ही छापूंगा भी और अब किताब आपके पास आ गई है. पाठकों को ये तय करना है कि राहुल गांधी पर लिखी किताब कहां तक पहुंचेगी, क्योंकि ये किताब अब पाठकों की किताब है.
ये किताब पिछले दो दशक में राहुल गांधी के खिलाफ कॉरपोरेट मीडिया और सांप्रदायिक ताकतों की मिली भगत से रची गई तमाम साजिशों का पर्दाफाश करती है, जिसके जरिए राहुल गांधी को बदनाम करने की साजिशें रची गई हैं. चाहे वह अन्ना आंदोलन हो या गोदी मीडिया के न्यूजरूम में रची गई साजिशें, हर साजिश का धागा खोलती है ये किताब. हर साजिश को सिरे से समझाती है और राहुल गांधी को उनके विचारों के आलोक में प्रदर्शित करती है.
दूसरे शब्दों में कहूं तो किताब, पाठकों के सामने एक कैनवास पर उकेरी गई वह तस्वीर है, जो राहुल को उनके सच्चे स्वरूप में आपके सामने रखती है. अभी इतना ही बाकी सब आपके पढ़ने के लिए -
ये किताब 24 घंटे के अंदर अमेजन और फ्लिपकार्ट जैसी वेबसाइटों पर आपके पढ़ने के लिए उपलब्ध होगी. पाठकों को बता दूं कि ये किताब आपको राहुल गांधी के संघर्ष में सहभागी बनाएगी और सांप्रदायिक ताकतों के खिलाफ लड़ने का हौसला देगी. गारंटी वाली सियासत के दौर में ये मेरी गारंटी है.