- होम
- राष्ट्रीय+
- वीडियो
- राज्य+
- उत्तर प्रदेश
- अम्बेडकर नगर
- अमेठी
- अमरोहा
- औरैया
- बागपत
- बलरामपुर
- बस्ती
- चन्दौली
- गोंडा
- जालौन
- कन्नौज
- ललितपुर
- महराजगंज
- मऊ
- मिर्जापुर
- सन्त कबीर नगर
- शामली
- सिद्धार्थनगर
- सोनभद्र
- उन्नाव
- आगरा
- अलीगढ़
- आजमगढ़
- बांदा
- बहराइच
- बलिया
- बाराबंकी
- बरेली
- भदोही
- बिजनौर
- बदायूं
- बुलंदशहर
- चित्रकूट
- देवरिया
- एटा
- इटावा
- अयोध्या
- फर्रुखाबाद
- फतेहपुर
- फिरोजाबाद
- गाजियाबाद
- गाजीपुर
- गोरखपुर
- हमीरपुर
- हापुड़
- हरदोई
- हाथरस
- जौनपुर
- झांसी
- कानपुर
- कासगंज
- कौशाम्बी
- कुशीनगर
- लखीमपुर खीरी
- लखनऊ
- महोबा
- मैनपुरी
- मथुरा
- मेरठ
- मिर्जापुर
- मुरादाबाद
- मुज्जफरनगर
- नोएडा
- पीलीभीत
- प्रतापगढ़
- प्रयागराज
- रायबरेली
- रामपुर
- सहारनपुर
- संभल
- शाहजहांपुर
- श्रावस्ती
- सीतापुर
- सुल्तानपुर
- वाराणसी
- दिल्ली
- बिहार
- उत्तराखण्ड
- पंजाब
- राजस्थान
- हरियाणा
- मध्यप्रदेश
- झारखंड
- गुजरात
- जम्मू कश्मीर
- मणिपुर
- हिमाचल प्रदेश
- तमिलनाडु
- आंध्र प्रदेश
- तेलंगाना
- उडीसा
- अरुणाचल प्रदेश
- छत्तीसगढ़
- चेन्नई
- गोवा
- कर्नाटक
- महाराष्ट्र
- पश्चिम बंगाल
- उत्तर प्रदेश
- Shopping
- शिक्षा
- स्वास्थ्य
- आजीविका
- विविध+
डॉ. वेदप्रताप वैदिक
1 दिसंबर से भारत जी-20 (बीस देशों के समूह) का अध्यक्ष बन गया है। सुरक्षा परिषद का भी वह इस माह के लिए अध्यक्ष है। भारतीय विदेश नीति के लिए यह बहुत सम्मान की बात है लेकिन यह बड़ी चुनौती भी है। सुरक्षा परिषद आजकल पिछले कई माह से यूक्रेन के सवाल पर आपस में बंटी हुई है। उसकी बैठकों में शीतयुद्ध का-सा गर्मागर्म माहौल दिखाई पड़ता है। लगभग सभी प्रस्ताव आजकल 'वीटो' के शिकार हो जाते हैं, खास तौर पर यूक्रेन के सवाल पर। यूक्रेन का सवाल इस बार जी-20 की बाली में हुई बैठक पर छाया रहा।
एक तरफ अमेरिका और यूरोपीय राष्ट्र थे और दूसरी तरफ रूस और चीन। उनके नेताओं ने एक-दूसरे पर प्रहार करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी लेकिन फिर भी एक सर्वसम्मत घोषणा-पत्र बाली-सम्मेलन के बाद जारी हो सका। इस सफलता का श्रेय खुले तौर पर भारत को नहीं मिला लेकिन जी-20 ने भारत का रास्ता ही अपनाया। भारत तटस्थ रहा। न तो वह रूस के साथ गया और न ही अमेरिका के! उसने रूस से अतिरिक्त तेल खरीदने में जरा भी संकोच नहीं किया, जबकि यूरोपीय राष्ट्रों ने हर रूसी निर्यात का बहिष्कार कर रखा है लेकिन नरेंद्र मोदी ने रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से साफ—साफ कहा है कि यह युद्ध का समय नहीं है। भारत के इस रवैए से अमेरिका खुश है। वह भारत के साथ मिलकर आग्नेय एशिया में चौगुटा चला रहा है और पश्चिम एशिया में भी उसने अपने नए चौगुटे में भारत को जोड़ रखा है।
जी-20 की अध्यक्षता करते हुए भारत को इन पांचों महाशक्तियों को तो पटाए रखना ही होगा, उसके साथ-साथ अफ्रीका, एशिया और लातीनी अमेरिकी देशों की आर्थिक उन्नति का भी मार्ग प्रशस्त करना होगा। जी-20 की अध्यक्षता ग्रहण करते ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम से अखबारों में जो लेख छपा है, उसमें हमारे नौकरशाहों ने जी-20 के घिसे-पिटे मुद्दों को ही दोहराया है। उनमें भी कुछ न कुछ सफलता जरुर मिल सकती है लेकिन ये काम तो किसी भी राष्ट्र की अध्यक्षता में हो सकते हैं। भारत को यह जो अवसर मिला है, उसका उपयोग अगर मौलिक और भारतीय दृष्टि से किया जा सके तो 21 वीं सदी का नक्शा ही बदल सकता है।
'वसुधैव कुटुम्बकम' का मुहावरा तो काफी अच्छा है लेकिन हम पश्चिमी राष्ट्रों के नकलची बनकर इस शक्तिशाली संगठन के जरिए कौनसा चमत्कार कर सकते हैं? क्या हमने भारत में कुछ ऐसा करके दिखाया है, जो पूंजीवाद और साम्यवाद का विकल्प बन सके? भारत और विश्व में फैल रही आर्थिक असमानता, धार्मिक विद्वेश, परमाणु असुरक्षा, असीम उपभोक्तावाद, पर्यावरण-क्षति आदि मुद्दों पर हमारे पास क्या कोई ठोस विकल्प हैं? यदि ऐसे विकल्प हम दे सकें तो सारी दुनिया के विश्व-गुरु तो आप अपने आप ही बन जाएंगे।
(डाॅ. वैदिक, भारतीय विदेश नीति परिषद के अध्यक्ष है)