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देश भर के गांधीयन संगठन अब चुप नहीं बैठेंगे, करेंगे निरन्तर सत्याग्रह
प्रसून लतांत
नई दिल्ली। देशभर के गांधी जनों ने फैसला किया है कि वे साबरमती आश्रम सहित स्वतंत्रता आंदोलन के धरोहरों को बचाने के लिए आंदोलन छेड़ेंगे। यह फैसला पिछले दिनों राष्ट्रीय गांधी संग्रहालय में देशभर के गांधी जनों ने सघन विमर्श के बाद तय किया गया है। सभी गांधी जन इस बात पर सहमत हुए कि वे अब देश और दुनिया में हो रही दुखद घटनाओं को तमाशबीन की तरह देखते रहने के बजाय संघर्ष के रास्ते पर उतरेंगे। इसी क्रम में उन्होंने तय किया है कि वे स्वतंत्रता के धरोहरों और गांधी जी के साबरमती आश्रम को बचाने के लिए सबसे पहले देश भर में जगह जगह गांधी जयंती पर उपवास करेंगे और जनता को जागरुक करते हुए सरकार को भी विवश करेंगे।
गांधी जनों के विमर्श में सर्व सेवा संघ के अध्यक्ष चंदन पाल ने कहा कि गांधी, विनोबा और जेपी ने समाज, देश और दुनिया को जोड़ने की कोशिश की लेकिन आज कई राजनेता धर्म के नाम पर, जाति के नाम पर भाषा, संप्रदाय, संस्कृति के नाम पर समाज और देश को तोड़ने में लगे हैं। उन्होंने कहा कि भारत की आजादी के संघर्ष में जिनकी भूमिका संदेह से परे नहीं है उनको महान देशभक्त बताने की कोशिश चल रही है।
दूसरी ओर जिन लोगों का नाम आना चाहिए था ऐसे कई नाम हटाए जा रहे हैं। चुनाव आयोग, रिजर्व बैंक, सीबीआई आदि संस्थाओं की विश्वसनीयता पर भी सवाल खड़ा हो गया है। लोकतांत्रिक संस्थाएं आज कटघरे में खड़े हैं। उन्होंने कहा कि हाल ही में न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ ने एक सेमिनार में आम जनता का आह्वान करते हुए कहा है कि कोई भी सरकार या राष्ट्र के प्रतिनिधि जो बोलते हैं , उसी को सच मानकर विश्वास नहीं करना चाहिए। जो सरकार स्वेच्छाचारी होती है, वह सारी सत्ता को अपनी मुट्ठी में रखने के लिए लगातार झूठी बातें और झूठे आश्वासन के बल पर आम जनता को गुमराह करती है।
सत्य पर आस्था और आग्रह रखने वाले गांधी जनों को इस झूठ के जंजाल को बेनकाब करना है । हमें सोचना चाहिए और सोच कर कदम उठाना जरूरी है। नहीं तो बड़ी-बड़ी इमारतें बनाने के चक्कर में साबरमती आश्रम की तरह आने वाले दिनों में सेवाग्राम आश्रम, साधना केंद्र, वाराणसी सहित अन्य संस्थाओं पर भी सरकार का कब्जा हो सकता है। ये आश्रम और केंद्र गांधी मूल्यों के प्रतीक हैं,धरोहर हैं।
वरिष्ठ गांधीवादी नेता चंदन पाल ने बताया कि तीन दिनों के सघन विमर्श में सर्व सेवा संघ के अतीत में झांकने की कोशिश की गई। साथ में यह भी समझने की कोशिश की गई कि गांधी संस्थाओं से जुड़े विचारों के साथ संपर्क कमजोर क्यों हुआ। खादी और नई तालीम के साथ महत्वपूर्ण रचनात्मक कार्यक्रम में जुड़े समूह के साथ मजबूत संबंध बनाने और एक साथ चलने के बारे में भी विचार किया गया।
उन्होंने कहा कि कुछ संस्थाएं लोगों के बीच में अच्छा काम कर रही हैं लेकिन हम उन व्यक्तियों तथा संस्थाओं को एनजीओ के नाम पर दूर रखना चाहते हैं जो लोग अच्छे काम कर रहे हैं उनको भी साथ लेना है। ऐसे लोग और संस्थाएं वैकल्पिक शिक्षा, स्वास्थ्य, पर्यावरण, कृषि आदि विषयों को लेकर आदिवासी एवं दलितों के बीच बेहतर काम कर रहे हैं। पानी, नदी, किसानों के अधिकार, मछुआरों की समस्याओं को लेकर भी काम हो रहा है। उन को जोड़ने के बारे में विचार किया गया।
उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में स्थानीय, राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय मुद्दों के बारे में खासकर हिंसा और ग्लोबल वार्मिंग पर चर्चा हुई । चंदन पाल ने गहरी चिंता जताते हुए कहा कि भारत की आजादी का अमृत महोत्सव मनाने के लिए जब हम लोग प्रस्तुत हैं, उसी समय कहीं न कहीं हमारे अस्तित्व पर भी संकट आ रहा है। जिस प्रकार आज मार्क्सवादी, लेनिन वादी, माओ वादी, समाजवादी, लोहियावादी और अंबेडकरवादी के रूप में हमारा समाज बिखरा हुआ है। ठीक गांधीवादियों के बीच भी विनोबा वादी और जयप्रकाश वादी भावना भी काफी सक्रिय है। ये विचार हमें कमजोर करते हैं।
आज हमारे सामने सबसे बड़ा खतरा हिंदुत्ववादी भावना का है, जो समाज को टुकड़ों में बांट रही है। देश में निजी करण और विनिवेशीकरण का महोत्सव चल रहा है। इसके पीछे गहरी साजिश है। यह बात सही है कि इन कार्रवाई से कुछ राजनीतिक तत्व को फायदा मिल सकता है लेकिन ये आम जनता, ग्राम समाज , नगर समाज और देश के लिए अत्यंत खतरनाक संकेत है।
उन्होंने कहा कि अहिंसक समाज रचना के लिए जो संस्थाएं गठित हुई थीं, वह काम फीका पड़ गया है। लक्ष्य की ओर जाने में विफल रह गए तो इन सभी संस्थाओं की जरूरत क्या है यह सवाल बार-बार उठता है । काफी संस्थाएं गांधी जी का जीवन दर्शन लेकर उच्च शिक्षा की डिग्री देने का काम करती हैं चलिए, यह काम भी चले लेकिन अभी गांधियन अकैडमिशियन की ज्यादा जरूरत नहीं है जितनी ज्यादा गांधियन एक्टिविस्ट की है। ये अकेडमिक लोग गांधियन एक्टिविस्ट बन जाए तो यह और भी अच्छी बात होगी।
चंदन पाल ने कहा कि शांति सैनिक का काम घर में बैठकर पुस्तक पढ़ना या सोशल मीडिया पर चर्चा करना ही नहीं है उन्हें मैदान में उतरना भी है और चुनौतियों को स्वीकार भी करना है। युवा यही चाहते हैं । हम लोगों को आत्मदर्शन चाहिए। हम कहते हैं कि सब को साथ में लेकर चलना है। यह बोलने और सुनने में बहुत अच्छा लगता है लेकिन सच्चाई अलग है। क्या हम कभी सोचते हैं कि हमारे साथ कितने आदिवासी, दलित अल्पसंख्यक ,युवा, महिला और थर्ड जेंडर हैं। हमें इनको भी अपने अभियानों से जोड़ने के बारे में सोचना चाहिए।
इस विमर्श में गांधी स्मारक निधि के अध्यक्ष रामचंद्र राही, गांधी शांति प्रतिष्ठान के अध्यक्ष कुमार प्रशांत, सर्व सेवा संघ के अध्यक्ष चंदन पाल सर्वोदय समाज सम्मेलन के संयोजक राजगोपाल पीवी, सर्व सेवा संघ के पूर्व अध्यक्ष अमरनाथ भाई, सेवाग्राम आश्रम प्रतिष्ठान के अध्यक्ष टीआरएम प्रभु, अशोक शरण, सुगन बरांथ, डॉ सच्चिदानंद,रामधीरज,आशा बोथरा, सवाई सिंह,सोमनाथ रो डे, रामशरण,अरविंद अंजुम, संजय सिंह, राजेंद्र सिंह,प्रसून लतांत,अजय सहाय, संतोष द्विवेदी, सोपान जोशी, विपिन त्रिपाठी, शुभा प्रेम, अशोक भारत, लक्ष्मण सिंह डॉक्टर विश्वजीत, मणि माला , शुभा आरएम, गौरांग महापात्र , रविंद्र सिंह चौहान, भगवान सिंह, शंकर नायक, शेख हुसैन, खम्मनलाल शांडिल्य, सुखपाल सिंह प्रदीप खेलुलकर अविनाश काकड़े , राकेश रफीक,मनीष राजपूत और जोहरीमल वर्मा आदि अनेक गांधी वादियों ने भाग लिया।