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राज्ससभा में सामने बैठे थे पीएम मोदी, आजाद ने 'बड़े टिकैत' की मिशाल देकर किसानों की ताकत पर क्या-क्या सुनाया
मौका राज्यसभा का था। PM मोदी सदन में मौजूद थे। किसान आंदोलन पर सरकार को घेरने की जुगत में जुटी कांग्रेस के पास यह सुनहरा मौका था। नफीस अंदाज में अपने धारदार भाषण के मशहूर कांग्रेस के नेता गुलाम नबी आजाद ने मोर्चा संभाला। 1900 से 1988 तक किसान आंदोलन पर मिसालें देकर उन्होंने पीएम मोदी को खूब सुनाया। सामने बैठे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चुपचाप आजाद की बातों को सुनते रहे। आइए जानते हैं कश्मीर से कांग्रेस के दिग्गज नेता गुलाम नबी आजाद ने मोदी को क्या-क्या सुनाया...
गुलाम नबी आजादी ने भाषण की शुरुआत 1900 से शुरू की। उन्होंने ब्रिटिशकाल का जिक्र कर कहा कि सरकार को किसानों की ताकत के आगे हर बार झुकना पड़ा है। उन्होंने कहा कि 1900 से 1906 के बीच अंग्रेज सरकार तीन कानून लेकर आई थी। कानून में था कि जमीन की मालिक ब्रिटिश सरकार होगी और मालिकाना हक से किसानों को वंचित रखा जाएगा। किसानों का अपने घर और पेड़ पर भी हक नहीं होगा। इस पर बवाल मच गया और 1907 में आंदोलन हुआ। इसका आंदोलन का संचालन शहीद भगत सिंह के बड़े भाई सरदार अजीत सिंह और अन्य कर रहे थे। पूरे पंजाब में प्रदर्शन हुए। पगड़ी संभाल जट्टा पगड़ी संभाल जट्टा... गीत बन गया। उस समय का यह गीत बड़ा मशहूर हुआ। इस गीत ने किसानों में जोश भरा। लाला लाजपत राय ने भी आंदोलन का समर्थन किया। सरकार ने संशोधन किया, लेकिन किसान और भड़क गए। इसके बाद तीनों बिल वापस लिए गए। आजाद यहीं नहीं रुके...
आजाद ने इसके बाद चंपारण सत्याग्रह का जिक्र किया। उन्होंने कहा 1917 में चंपारण सत्याग्रह हुआ गांधी जी के नेतृत्व में। अंग्रेज जबरन नील की खेती करवा रहे थे। गांधी जी पहुंचे और सरकार को मजबूर किया कि नील की खेती के कानून को खत्म करने के लिए बिल लाया जाए। बिहार और ओडिशा तब एक ही प्रांत था। वहां नील की खेती को खत्म करने के लिए बिल लाया गया। लेकिन मेंबर्स ने यह मांग की कि इस बिल को सिलेक्ट कमिटी को भेजा जाए। ब्रिटिश सरकार ने बिल को सिलेक्ट कमिटी में भेजा। अंग्रेजों ने एक कॉपी गांधी जी को भी दी कि आप भी अपने सुझाव दीजिए। इस तरह गांधी जी के सुझाव के बाद नील की खेती बंद हो गई। आजाद ने आगे कहा..
आजाद ने अगला किस्सा गुजरात राज्य का सुनाया जहां मोदी लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहे। उन्होंने कहा, माननीय प्रधानमंत्री मुझसे ज्यादा जानते हैं यह उनके राज्य की बात है। 1918 में खेड़ा सत्याग्रह हुआ, जिसमें महात्मा गांधी जुड़े और फिर बाद में सरदार वल्लभ भाई पटेल और उनके साथियों ने उसको चलाया। गांधी और पटेल ने कहा था कि देशभर के लोग नहीं आएंगे, सिर्फ यहां के लोग ही इस आंदोलन को चलाएंगे। ज्यादा से ज्यादा गुजरात के लोग आंदोलन में आ सकते हैं। बंबई कमिश्नरी को पिटिशन देकर टैक्स खत्म करने की मांग की गई। आजाद ने आगे की बात बताते हुए कहा कि पिटिशन रद्द कर दी गई।आंदोलनकारियों को जमीन और जेल जाने की धमकी दी गई। लेकिन विद्रोह इतना बढ़ा कि लोगों ने परवाह नहीं की। लोगों ने गिरफ्तारियां दीं और फिर आंदोलन इतना भड़का कि उस साल के लिए टैक्स माफ कर दिए गए। जो जमीन और घर सरकार ने जब्त किए थे, वह वापस दे दिए गए।
आजाद आगे बढ़े और फिर से गुजरात का ही एक किस्सा सुना दिया। उन्होंने कहा, '1925 में बंबई प्रेजिडेंसी ने 22 फीसदी टैक्स बढ़ाए गए। सरदार बल्लभाई पेटल ने टैक्स कम करने के लिए लिखा, लेकिन गवर्नर ने नहीं माना। 1928 में गुजरात में सबसे बड़ा सिविल विद्रोह हुआ। इसके बाद टैक्स वापस और जमीन मकान वापस मिला और किसानों की फिर जीत हुई।
आजाद ने तेलंगाना का जिक्र करते हुए कहा कि 1950 के आसपास एक गरीब महिला की जमीन हड़पी गई। जमींदारों के खिलाफ आंदोलन शुरू हुआ। यह इतना बढ़ा कि जमीनदारों की अपनी जमीनें गंवानी पड़ीं। ताकत को हमेशा किसानों के आगे सिर झुकाना पड़ा।
आजाद ने इसके बाद महेंद्र सिंह टिकैत के आंदोलन का जिक्र कर पीएम मोदी को किसानों के प्रति नरमदिल होने की सलाह दी। उन्होंने कहा, 'अक्टूबर 1988 में कांग्रेस की पार्टी एक रैली करना चाहती थी बोट क्लब में। राजीव गांधी तब प्रधानमंत्री थे। मैं संगठन मंत्री था। मैं रैली का इंचार्ज था। पूरे देश से ट्रेनें आने वाली थीं। हमारी बड़ी तैयारी थी। कई दिनों से टिकैत जी का आंदोलन यूपी में चल रहा था। वह राकेश टिकैत के पिता थे। कई दिनों से उनका आंदोलन चल रहा था। पेपरों में जब आया कि हमारी रैली हो रही बोट क्लब में, तो हमने देखते हैं कि एक दिन पहले टिकैत 50 हजार लोगों के साथ बिस्तरे, खाट और अनाज लेकर बोट क्लब में बैठ गए। हम हैरान हो गए थे। एक दिन था बीच में। सरकारी कर्मचारी आए। मैं पीएम के पास बैठा था। उन्होंने सलाह दी कि किसानों को निकाला जाए। राजीव ने कहा कि किसानों के साथ लड़ाई नहीं करेंगे। हमने अपना वेन्यू बदल दिया। उसे लाल किले में शिफ्ट कर दिया। फैसला बदला गया कि बोट क्लब में नहीं जाना है, लालकिले में जाना है। टिकैत को पता नहीं चल पाया कि लालकिले में जाना है। हम अटैक करते तो कितने लोग जख्मी होते। दो दिन बाद टिकैत ने अपना धरना खुद ही उठा लिया।