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जासूसी के इस मुश्किल समय में सरकार, केंद्रीय मंत्री, पत्रकार, विपक्ष के नेता सब शिकार हैं
1. भाजपा का अपना वेबसाइट हैक हो चुका है
2. केंद्रीय मंत्री, पत्रकार, विपक्ष के नेता सब शिकार हैं
3. उद्योगों कारोबारों को सुरक्षा के लिए करोड़ों खर्चने पड़ रहे हैं
4. फिर भी सेंधमारी हो रही है, लाखों लुटे-ठगे जा रहे हैं
5. सरकार ने जो स्थिति बना रखी है उससे किसे फायदा है?
यहां यह स्पष्ट होना चाहिए कि फोन टैप करना और फोन में बग या मालवेयर लगाने में अंतर है। पेगासुस टैप करने का यंत्र नहीं मालवेयर है। इसलिए पेगासुस से जासूसी कानून सम्मत नहीं हो सकता है। इसीलिए, सरकार न तो यह बता रही है कि उसने पेगासुस खरीदा है कि नहीं और खरीदा है तो कानून सम्मत तरीके से किन लोगों की जासूसी हुई है? दूसरी ओर, कर्नाटक की सरकार गिराने में इसका प्रयोग किए जाने की संभावना है, बंगाल में ऐसा दावा किया गया और इसके लिए सुभेन्दु अधिकारी के खिलाफ एफआईआर हो चुकी है। सरकार डरी हुई है, अपने काम नहीं कर (पा) रही है और शासन का बुरा हाल है।
सरकार के पास बचाव में कुछ नहीं है और वह जांच नहीं करवा रही है। उसे पता है कि अपराधी कौन है। उधर फ्रांस ने रफाल के बाद पेगासुस मामले की जांच शुरू कर दी है। हमारे यहां, कुतर्क प्रस्तुत करने वाले मंत्रियों का पूरा समूह बदल गया है। नया समूह वैसे ही कुतर्क गढ़ रहा है। कुल मिलाकर जासूसी के इस मुश्किल समय में ना सरकार सुरक्षित है और ना जनता। अपराधियों की मौज है। पर वह अलग बात है हालांकि, वे सरकार या सत्तारूढ़ दल द्वारा संरक्षित भी हो सकते हैं।
पेगासुस से सरकारी जासूसी की गंभीरता कुछ लोगों को समझ नहीं आ रही है। डिजिटल इंडिया का दंभ भरने वाले प्रधानसेवक के राज में जासूसी की खबरों से भले इनकार किया जा रहा है पर मुद्दा साइबर सुरक्षा का तो है ही। आम आदमी की सुरक्षा (निजता) बहुत महत्वपूर्ण है और इसे सुनिश्चित करना सरकार का काम है। ऐसे में जब सरकार पर ही जासूसी का आरोप है तो आम आदमी की क्या औकात। ऐसा पहली बार हुआ है कि इतने बड़े पैमाने पर, इतने विस्तृत क्षेत्र के लोगों की जासूसी इतनी बेशर्मी से की गई है। अब तो कारण और मकसद भी साफ नजर आने लगे हैं। दूसरी ओर, सरकार ने कहा है कि जो भी जासूसी हुई कानून सम्मत हुई।
इमरजेंसी में अगर लोगों के अधिकार कम किए गए थे तो उसका कारण बताया गया था और सब कुछ एलानिया था और बहुत कम समय चला। उसका विरोध करने वाले खुद वही सब कर रहे हैं और विरोध से तिलमिला जा रहा है। आम आदमी के लिए हालत यह हो गई है कि खत्म किए जा चुके कानून के तहत देश भर में 1300 से ज्यादा मामले दर्ज थे जबकि सुप्रीम कोर्ट ने जनवरी 2019 में कहा था, आईटी क़ानून की ख़त्म धारा में गिरफ़्तारी का आदेश देने वालों को जेल भेज देंगे। मुझे नहीं पता इसके बाद कितने लोग जेल भेजे गए लेकिन याचिकाकर्ताओं का आरोप था कि उस समय क़ानून ख़त्म होने के बावजूद 22 से ज़्यादा लोग गिरफ़्तार थे। इसी तरह, कोराना का इलाज गोबर से नहीं हो सकता जैसा पोस्ट करने के लिए महीनों जेल में रहना पड़ा और जमानत सुप्रीम कोर्ट से मिली।
ऐसे समय में पेगासुस से जासूसी की खबरों का जिस ढंग से बचाव किया जा रहा है उससे लगता है कि यह जासूसी खास लोगों की ही हो रही है और वही परेशान हैं। जबकि स्थिति यह है कि सरकार लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करने में बुरी तरह नाकाम हैं, लोग ठगे जा रहे हैं, लुट रहे हैं और परेशान हो रहे हैं। सरकार उनके बचाव की व्यवस्था करने की बजाय अपना भी बचाव नहीं कर पा रही है और मंत्री की भी जासूसी हो रही है जो पेगासस खरीदने में शामिल था वह भी पेगासस का शिकार हो गया और जो बचाव कर रहा है उसकी भी जासूसी हो चुकी है।
और तो और भाजपा का अपना वेबसाइट (कुछ साल पहले) हैक करके खराब कर दिया गया और पार्टी को ठीक करने में कई हफ्ते लग गये। खर्चे और परेशानी की बात तो छोड़ दीजिए। पिछले दिनों मेरा, मेरे कुछ मित्रों का वेबसाइट खराब कर दिया गया। ऐसे में छोटे-मोटे कारोबारी की समस्या का अनुमान लगाइए और बड़े कारोबारियों के खर्चों तथा जोखिम के बारे में सोचिए। बैंक खाते से पैसे निकाल लिया जाना आम है, कभी किसी नाम पर और कभी किसी तरह पैसे ठगने के किस्से रोज सुनने को मिलते हैं। आम आदमी को इससे राहत दिलाने की बजाय सरकार खुद ही न सिर्फ गैर कानूनी काम कर रही है बल्कि अजीबो गरीब कानून बना दे रही है। खासतौर से उत्तर प्रदेश में।
फिर भी कुछ लोग कह रहे हैं कि कंप्यूटर में कुछ भी सुरक्षित नहीं है इसलिए संभल कर रहना आपका काम है। अगर इसे मान भी लिया जाए तो ऐसे डरे हुए लोग अपना काम कैसे और कितना कर पाएंगे? मैं संभल कर रहता हूं, मेरी जासूसी नहीं हो रही है यह सुनिश्चित नहीं है इसलिए मैं बहुत सारे लोगों से मिल नहीं पा रहा हूं, बहुत सारा काम नहीं कर पा रहा हूं. बाहुत सारी बातें नहीं कर पा रहा हूं और जो काम फोन पर हो सकता है उसके लिए लोगों से मिलना पड़ रहा है। यह सब तब जब देश का जीडीपी नीचे जा रहा है (जारा रहा है) अर्थव्यवस्था की हालत खराब है, बेरोजगारी चरम पर है और महंगाई बेलगाम है। सरकार के नियंत्रण में कुछ भी नहीं है। जासूसी भी नहीं।
कल्पना कीजिए कि सुप्रीम कोर्ट में काम करने वाली जिस महिला ने पूर्व मुख्य न्यायाधीश (और अब राज्य सभा के मनोनीत सदस्य) रंजन गोगोई पर आरोप लगाए थे उसका और उसके परिवार के लोगों के 11 फोन भी टैप किए जाने का अंदेशा है। द वायर ने जितनी जांच की उससे इसपर यकीन करने के पर्याप्त आधार है। इस मामले में दिलचस्प यह भी है कि उसे नौकरी से निकाल दिया गया था और फिर काम पर रख लिया गया। कोई ढंग की जांच नहीं हुई और जैसे हुई उसमें उसने शामिल होने से इनकार कर दिया था। यह मामला ऐसे समय में हुआ था जब अयोध्या में राम मंदिर-बाबरी मस्जिद का फैसला आना था। रफाल घोटाले की जांच का मामला सुप्रीम कोर्ट में था। जाहिर है, फैसला दबाव में दिया गया लगता है और सरकार भले न माने फैसले की विश्वसनीयता तो संदिग्ध हो ही गई है।
जो सरकार मुख्य न्यायाधीश को ब्लैकमेल कर सकती है (तमाम संकेत सार्वजनिक होने से नहीं रोक पाई) वह काम कब और कैसे करेगी। ऐसी सरकार से किसका फायदा है? पर सरकार बिल्कुल बेपरवाह है। निजता का जुलूस निकल गया है। आपको याद होगा, पिछले दिनों खबर छपी थी कि (उत्तर प्रदेश में) पोर्न साइट देखने वालों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। मुझे इसपर यकीन नहीं हुआ पर सरकार की तरफ से कोई स्पष्टीकरण नहीं है। मुझे मेरे मित्र ने बताया कि आप इंटरनेट कहां देख रहे हैं इसे बदला जा सकता है। मैंने बदलकर देखा और सब देख पाया कोई चेतावनी नहीं कोई कार्रवाई नहीं। इसके बाद मैंने लोकेशन बदले बिना देखना शुरू किया। थोड़ी देर में चेतावनी आ गई और मुझे 29,000 रुपए जुर्माना मांगा गया जिसका लिंक आ गया औऱ कहा गया कि जुर्माना नहीं देने पर ब्राउजर बंद रहेगा।
मैंने फिर मित्र को फोन किया। उसने कहा कि ऐसे ब्राउजर बंद होने लगे तो सरकारी दफ्तरों में काम कैसे होगा? यह सही है कि लोग विधानसभाओं में अश्लील फिल्में देखते रहे हैं पर यहां घर में देखने पर जुर्माना वसूलने की कोशिश चल रही है। इससे पहले कोई डेढ़ दो साल पहले मेरे पास एक मेल आया था जिसमें कहा गया था कि उसने मेरा कंप्यूटर हैक करके, कैमरा ऑन करके मेरा अश्लील वीडियो बना लिया है और मैं उसे एक निश्चित राशि नहीं दूंगा तो वह मेरा वीडियो मेरे सभी संपर्कों को भेज देगा। मैंने पैसे नहीं दिए पर ऐसा कुछ नहीं हुआ। जाहिर है वह अंधेरे में तीर चला रहा था और मैं डर जाता तो फंस जाता। इसी तरह हॉटमेल का मेरा पुराना अकाउंट अक्सर ही 24 घंटे में बंद कर दिए जाने की धमकी दी जाती है। मैं तो निपट लेता हूं लेकिन आम आदमी का क्या हाल होगा। वह कथित बड़े लोगों की परेशानी देखकर खुश है जबकि उसमें भी उसका ही नुकसान है। जनहित की खबरें न होने से किसी पत्रकार का नुकसान होता है क्या?