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गुरुधर्म : शिक्षकों के प्रयासों से रुका मेधावी महुआ का बाल विवाह
कोलकाता के बेहाला के एक स्कूल की छात्रा महुआ (बदला हुआ नाम) की एक खासियत के उसके शिक्षक और सहपाठी, सभी कायल थे। आंधी हो या तूफान, महुआ एक भी दिन स्कूल से गैरहाजिर नहीं होती थी। लेकिन अचानक उसका स्कूल आना बंद हो गया। तीन दिन बीत गए तो उसके शिक्षकों और सहपाठियों को लगने लगा कि कुछ गड़बड़ है। बिना वजह वो तीन दिन स्कूल से गायब नहीं रह सकती।
उनकी चिंता बेवजह भी नहीं थी। जब एक चिंतित शिक्षक ने महुआ की दोस्त से उसके बारे में पूछा तो झिझकते हुए उसने कहा, “मेरा ख्याल उसकी शादी होने वाली है।” शिक्षक को इस खबर से गहरा आघात लगा। वे तुरंत छात्रा के घर पहुंचे और उसके माता-पिता से इस बारे में पूछा। लेकिन माता-पिता ने शिक्षक को बरगलाने की कोशिश करते हुए कहा कि कोई शादी नहीं होने जा रही है, महुवा की तबीयत ठीक नहीं है और जल्द ही वह स्कूल जाने लगेगी।
अगले दिन से महुआ स्कूल जाने लगी लेकिन अब वह कुछ बुझी-बुझी और खोयी-खोयी सी थी। उसे देखते ही स्कूल के शिक्षक-शिक्षिकाएं समझ गए कि सब कुछ ठीक नहीं है। वे हर हाल में उसकी मदद करना चाहते थे लेकिन उन्हें ये समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करें। उन्होंने एक गैरसरकारी संगठन बितान से संपर्क करने का फैसला किया जिसने हाल ही में स्कूल में बाल विवाह के खिलाफ एक जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन किया था। यह एक समझदारी भरा फैसला था।
बितान की कार्यकर्ता सुजाता भट्टाचार्य कहती हैं, “उन्होंने हमसे संपर्क किया और महुआ के बारे में बताया। वे छात्रा की सहायता के लिए दृढ़प्रतिज्ञ थे लेकिन समझ नहीं पा रहे थे कि मदद की कैसे जाए। हमने उन्हें आश्वस्त किया कि अब आगे हम इस मामले को देखेंगे और किसी भी हाल में महुआ का बाल विवाह नहीं होने देंगे।”
बितान जागरूकता कार्यक्रमों, काउंसलिंग और कानूनी हस्तक्षेपों के माध्यम से बाल विवाह की रोकथाम के लिए पूरे देश में जमीनी स्तर पर काम कर रहे 200 से ज्यादा गैरसरकारी संगठनों के गठबंधन बाल विवाह मुक्त भारत अभियान (सीएमएफआई) का सहयोगी संगठन है। सीएमएफआई अपने संस्थापक और प्रख्यात बाल अधिकार कार्यकर्ता भुवन ऋभु की बेस्टसेलर पुस्तक ‘व्हेन चिल्ड्रेन हैव चिल्ड्रेन : टिपिंग प्वाइंट टू इंड चाइल्ड मैरेज’ में सुझाई गई रणनीतियों पर अमल के जरिए देश से 2030 तक बाल विवाह के खात्मे के लिए देशव्यापी अभियान चला रहा है।
अर्से से बाल विवाह के खिलाफ जमीनी स्तर पर काम करने के अनुभवों से मिली सीख के नतीजे में बितान के कार्यकर्ता जानते थे कि माता-पिता किस तरह चोरी छिपे नाबालिग बच्चियों की शादी करते हैं। उन्हें पता था कि तुरंत कदम उठाने की जरूरत है। लेकिन इससे पहले यह जानना जरूरी था कि क्या वाकई महुआ की शादी तय कर दी गई है क्योंकि परिवार के लोग इससे इनकार कर रहे थे।
बितान का एक सदस्य बीमा एजेंट बनकर महुवा के मुहल्ले में गया और आस पास के लोगों से उसकी शादी के बारे में पता करने की कोशिश की लेकिन कुछ हाथ नहीं लगा। बितान के एक अन्य कार्यकर्ता ने कहा, “भले से हम कोई जानकारी हासिल करने में विफल रहे लेकिन हमारा कई बार इस तरह की चीजों से वास्ता पड़ चुका है जब लोग चीजों को छिपाने की कोशिश करते हैं या कुछ बताने से कन्नी काटते हैं। हमें मालूम था कि इस विवाह को रुकवाने के लिए हमें ज्यादा मेहनत करनी होगी।”
बितान के कार्यकर्ता एक बार फिर महुआ के मुहल्ले गए और वहां एक रेस्टोरेंट वाले को बातों के जाल में उलझा लिया। बातों-बातों में रेस्टोरेंट मालिक ने बताया कि उसके पड़ोस के मैरेज हाल में अगले ही दिन एक शादी है। यह जानने के बाद बितान के कार्यकर्ताओं को एक तरकीब सूझी। उन्होंने हफ्ते भर के कौशल विकास प्रशिक्षण कार्यक्रम के आयोजकों का प्रतिनिधि होने का दावा करते हुए मुहल्ले में घर-घर जाकर किशोरियों से पूछना शुरू कर दिया कि क्या वे इसमें हिस्सा लेना चाहती हैं। इसी दौरान पड़ोसियों ने उन्हें बताया कि महुआ नाम की एक लड़की इस कार्यशाला में हिस्सा लेने के लिए बिलकुल सही उम्मीदवार हैं लेकिन उसकी शादी होने जा रही है, इसलिए वह इसमें शामिल नहीं हो सकती।
इस बीच महुआ रोज स्कूल जाती रही। किसी तरह के शक से बचने के लिए उसके माता-पिता ने उसे उसके विवाह के दिन भी सालाना परीक्षा में बैठने के लिए भेजा।
महुआ के विवाह की खबर की पुष्टि हो जाने के बाद बितान की टीम ने बाल कल्याण समिति, कोलकाता और और जिला बाल संरक्षण अधिकारी, कोलकाता को सूचनी दी जिनकी आगे की तहकीकात ने एक बार फिर विवाह की योजना की पुष्टि की। इसके बाद ये अधिकारी पुलिस टीम और बितान के कार्यकर्ताओं के साथ उसके माता-पिता से मिले।
बातचीत में पता चला कि महुआ के माता-पिता सिर्फ 2000 रुपए किराया बचाने के लिए मकान मालिक के बेटे से उसकी शादी कर रहे थे। बितान की टीम के हस्तक्षेप और स्थानीय अधिकारियों की त्वरित कार्रवाई से महुआ का जीवन नर्क होने से बच गया। बच्ची के माता-पिता ने लिखित हलफनामा दिया कि वे 18 साल की होने से पहले उसकी शादी नहीं करेंगे।
महुआ से जब पूछा गया कि तुम्हारी शादी रुक गई है, अब आगे जीवन में क्या करना चाहती हो तो बालसुलभ मुस्कान के साथ उसने कहा, “जब मां-बाबा (पिता) ने मेरे विवाह का फैसला किया तो मुझे लगा अब जीवन में सब कुछ खत्म हो गया है। लेकिन मुझे उम्मीद नहीं छोड़नी चाहिए थी। मुझे नहीं पता था कि मेरी मदद के लिए इतने हाथ बढ़ेंगे। अब मैं आगे पढ़ना चाहती हूं और शिक्षक बनना चाहती हूं ताकि मैं दूसरी लड़कियों की मददगार बन सकूं। मैं इतना कमाऊंगी की एक दिन मेरे पास खुद का घर होगा ताकि मेरे मां-बाबा (पिता) को किराया भरने की चिंता नहीं करनी पड़े।”
महुआ बच गई लेकिन यह देखना दुखद है कि खुद के बौद्धिक होने का दावा करने वाले कोलकाता जैसे महानगर में आज भी बाल विवाह हो रहे हैं। बालिकाओं की शिक्षा और उनके कल्याण के लिए तमाम योजनाओं के बावजूद पश्चिम बंगाल के नाम एक ऐसा रिकॉर्ड है जिससे वह पीछा छुड़ाना चाहेगा और वह है यहां बाल विवाह की दर का सबसे ज्यादा होना। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे 5 (2019-21) के आंकड़ों के अनुसार देश में बाल विवाह की औसत दर 23.1 प्रतिशत है जबकि पश्चिम बंगाल में यह 41.6 प्रतिशत है। इसके बावजूद महुआ की कहानी उम्मीद जगाती है कि किसी बच्ची से अन्याय के खिलाफ शिक्षक धर्म का पालन करते हुए तमाम अध्यापक आगे आएंगे और उसे बचाएंगे।