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अनेक लोगों का आग्रह रहता है कि हमें बोलचाल , व्यवहार तथा व्यवसाय में हिंदी का ही प्रयोग करना चाहिए । कई तो ऐसे देखे जिनके यदि विवाह आदि में भी किसी अन्य भाषा का कार्ड आ जाए तो वे शामिल नही होते । दस्तखत (दस्तक) तो हिंदी में ही होने चाहिए ऐसा उनका मानना है ।
जबकि हमने पाया है कि वे केशों को बाल, नासिका को नाक, कर्ण को कान, वस्त्रों को कपड़े सहित रोजमर्रा के इस्तेमाल में लगभग 80 प्रतिशत शब्द गैर हिंदी के ही बोलते हैं ।
हिंदी की विशेषता ही यह है कि यह संस्कृत, फ़ारसी-अरबी औऱ अंग्रेज़ी के अनेक शब्दों को बहुत ही खुलापन में अपने मे समाए है। हमारे अनेक प्रांतों में प्रयोग उर्दू, पंजाबी, मराठी, गुजराती की लिपि बेशक अलग है पर वे हैं हिंदी ही ।
अनेक बार मुझे पाकिस्तान जाने का भी मौका मिला । जब वहां मैं बातचीत करता तो लोग कहते कि आप उर्दू ही बोलते है ,हिंदी क्यो नही ? अब मैं उन्हें कैसे समझाऊं कि यही तो हमारी हिंदी है ।
सन्त विनोबा जी बहुभाषी थे । उनका आग्रह था कि हम हिंदुस्तानी देश की सभी भाषाएं सींखे । इसके लिए उनका सूत्र था कि नागरी लिपि से अन्य भाषाओं को जाने । यानी तमिल सीखने के लिए तमिल नागरी । इस तरह से एक ही लिपि से हम अनेक भाषाएं सीख जाएंगे ।
अपनी उस्ताद निर्मला देशपांडे जी के साथ कई बार तमिलनाडु जाने का अवसर मिला । वे स्कूलों में बच्चों को सम्बोधित करते हुए सवाल करती कि वे एक आंख वाले बनना चाहते है या दो आंख वाले, तो जवाब मिलता दो आंख वाले । वे फिर मेरी ओर इशारा करके कहती देखो राम मोहन जी एक आंख वाले है । वे हिंदी तो जानते है पर तमिल नही जानते । ऐसा सुन कर बच्चे खुशी से ताली बजाकर कहते कि वे भी एक ही आंख वाले है क्योंकि वे तमिल तो जानते है पर हिंदी नही जानते ।
भारत में विविधता में एकता है । कोई भी एक भाषा यहां की संपूर्ण नहीं है। तमिलनाडु की भाषा तमिल है तो कश्मीर की भाषा उर्दू, केरल की मलयालम और नागालैंड की अंग्रेजी । अनेक तरह के खूबसूरत फूलों से यह गुलदस्ता सजा है ।
तभी तो अल्लामा इकबाल को कहना पड़ा :
सारे जहां से अच्छा हिंदोस्तां हमारा ।
हिंदी दिवस की सभी को मुबारक़ ।
राम मोहन राय