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'हर्ड इम्यूनिटी यानी सामूहिक रोग प्रतिरोधक क्षमता'

Shiv Kumar Mishra
24 April 2020 7:45 PM IST
हर्ड इम्यूनिटी यानी सामूहिक रोग प्रतिरोधक क्षमता
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हर्ड इम्यूनिटी एक ऐसा शब्द है जिसे आज से महीने भर पहले कही बोल दिया जाता तो पढ़े लिखे लोग तलवारें भांजते हुए निकल पड़ते थे कि कोरोना से लड़ने के लिए आपको इसके अलावा कुछ नही सूझा..... आज उसी शब्द चर्चा हो रही है बड़े बड़े लेख छप रहे हैं कुछ विशेषज्ञ भी अब स्वीकृति में सिर हिलाने लगे है........

कल एक बड़ी खबर आयी है अमेरिका स्थित सेंटर फॉर डिसीज, डायनामिक्स एंड इकोनॉमिक पॉलिसी (CDDEP) ने 20 अप्रैल को जारी अपनी रिपोर्ट में कहा कि 'सितंबर तक भारत में कोविड -19 संक्रमण के कुल 111 करोड़ मामले हो सकते है, ये लगातार लॉकडाउन और सोशल डिस्टेंसिंग के बाद भी संभव है'.इसलिए हमें इस शब्द को सही तरह से समझने की आज जरूरत है आखिर क्या होती हैं हर्ड इम्युनिटी? लेख लंबा जरूर है लेकिन यह सब्जेक्ट ही इतना बड़ा है कि कम शब्दों में ठीक से समझ नही आ पाएगा.

देखिए कोरोना से लड़ने के तीन ही उपाय है पहला है लॉक डाउन।........ आप जिसे लॉक डाउन कहते हैं वैज्ञानिक इसे अग्रेसिव सेपरेशन (Aggressive separation) कहते हैं, लोगो को अलग थलग कर देना लॉक डाउन का मूल तत्व है इसके लिए सोशल डिस्टेंसिंग की बात की जाती हैं इस प्रक्रिया में संक्रमण की रफ्तार को धीमा कर दिया जाता है फिर इसके जरिए इस वायरस का संक्रमण रोका जाता है। साथ ही देश में स्वास्थ्य सुविधाओं की उचित व्यवस्था की जाती है, लेकिन अग्रेसिव सेपरेशन सफल जब होगा जब अग्रेसिव टेस्टिंग होगी विदेशों में यही किया जा रहा है और भारत के हाल अग्रेसिव टेस्टिंग के विषय मे क्या है बताने की जरूरत नही है ओर हमे यह भी सोचना है कि अग्रेसिव टेस्टिंग नही हो रही है तो लॉक डाउन जैसे आर्थिक रूप से महंगे उपायों को कई महीनों तक कैसे जारी रखा जा सकता है।......

दूसरा तरीका है टीका यानी वैक्सीन, एक कामयाब वैक्सीन को बनाना और उसे हर आदमी को लगाना यह अभी भविष्य की गर्त में है इसलिए अब जल्दी से तीसरे उपाय पर आते हैं.........

तीसरा उपाय है हर्ड इम्यूनिटी

यदि यह वायरस फैलता रहता है, तो निश्चित ही है अंततः बहुत से लोग संक्रमित हो जाएंगे और वे अपने शरीर मे वायरस के विरुद्ध एंटीबॉडी विकसित कर लेंगे जब बड़ी आबादी में कोरोना का संक्रमण होगा तो उनमे वायरस के प्रति प्रतिरोधक क्षमता का भी विकास होगा तो इसका प्रकोप अपने आप ही खत्म हो जाएगा क्योंकि वायरस के लिये एक अतिसंवेदनशील मेजबान को खोजना कठिन और कठिन हो जाता है। इस घटना को हर्ड इम्यूनिटी के रूप में जाना जाता है।

हर्ड इम्युनिटी एक प्रोसेस या एक प्रकिया है जिसे अपना कर किसी समाज या समूह में रोग के फैलने की शृंखला को तोड़ा जा सकता है और इस प्रकार रोग को उन लोगों तक पहुँचाने से रोका जा सकता है, जिन्हें इससे सबसे अधिक खतरा हो या जिनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता (Immune System) कमजोर है।........

सबसे पहले ब्रिटिश सरकार के प्रमुख वैज्ञानिक सलाहकार ने COVID-19 से निपटने के लिये हर्ड इम्युनिटी (Herd Immunity) की बात करना शुरु की थी, ब्रिटेन के स्वास्थ्य मंत्रालय के प्रवक्ता मैट हैनकॉक ने कहा भी है कि हर्ड इम्युनिटी किसी भी महामारी का स्वाभाविक बाय प्रोडक्ट है. यानी महामारी के फैलने के साथ ही अपने आप हर्ड इम्युनिटी विकसित हो जाती है.

यह बहुत ही महत्वपूर्ण बात है कुछ डॉक्टर मित्रों से चर्चा हुई तो उन्होंने कहा कि यह सम्भव है कि हम जानते भी नही हो और इस वायरस का अटैक हम पर हो भी चुका हो और जा भी चुका हो और हमारे शरीर मे इसके विरुद्ध ऐंटीबॉडी मौजूद हो,..............

दुनिया मे कुछ देशों ने इसे लागू करने का प्रयास भी किया है ब्रिटेन ने तो सिर्फ बात की लेकिन स्वीडन हर्ड इम्युनिटी पर काम कर रहा है. स्वीडन अपने देश में हर्ड इम्युनिटी लागू कर रहा है. इसका तरीका ये है कि लोगों को इन्फ़ेक्शन हो और उनका शरीर उसके ख़िलाफ़ इम्यूनिटी डेवलप कर ले..........

कोरोना संक्रमण से ग्रसित हर व्यक्ति दो से ज्यादा लोगों को इंफेक्शन फैलाता है। इसे वैज्ञानिक कोरोना वायरस का रिप्रोडक्शन नंबर यानी R0 कहते है (इसे R-Naught पढ़ा जाता है)जो 2 और 2.5 के बीच है।

कोरोना वायरस अभी 1 से 2,....2 से 4,.....4 से 8 और 8 से 16 लोगों को संक्रमित कर रहा है। लेकिन अगर दुनिया की 50 प्रतिशत जनसंख्या इम्यून हो जाए तो यह इंफेक्शन एक व्यक्ति से एक में ही जाएगा। स्थिति में कोरोना वायरस का रिप्रोडक्शन नंबर 2 से घटकर 1 रह जाएगा।......

अगर यह R0 एक से भी कम हो जाए तो कोरोना वायरस का आउटब्रेक खुद-ब-खुद खत्म हो जाएगा। इसी वजह से वैज्ञानिक कहते हैं कि अगर दुनिया की 60 प्रतिशत आबादी इम्यून हो जाए तो यह वायरस धीरे-धीरे खुद ही खत्म हो जाएगा।........

अब बड़ा सवाल उठता है कि क्या ऐसा पहले किया जा चुका है?... यह स्ट्रेटेजी कितनी कामयाब रहेगी ?....

हर्ड इम्यूनिटी का सबसे बेहतरीन उदाहरण है पोलियो। दुनिया की लगभग पूरी आबादी पोलियो से इम्यून हो चुकी है। जब किसी जगह पर लोगों को किस भयानक बीमारी से लड़ने के लिए बड़ी संख्या में वैक्सीन दी जाती है तो इससे बाकी लोगों में उस महामारी के फैलने का खतरा कम हो जाता है. जिन्हें उस महामारी की वैक्सीन नहीं लगी है या फिर वैक्सीन नहीं दी जा सकती, उन्हें भी यह बीमारी अपनी चपेट में कम ले पाती है. खसरे की भी कुछ ऐसी ही कहानी है .......2015 में आया जीका वायरस जो एक मच्छर जनित बीमारी थी जो जन्म संबंधी असामान्यताओं की कड़ी से उत्पन्न हुआ था, 2017 में उसका प्रकोप कम हो गया ब्राजील के अध्ययन में रक्त के नमूनों की जाँच करके पाया गया कि सल्वाडोर के उत्तरपूर्वी समुद्र तट शहर में 63% आबादी पहले से ही जीका के संपर्क में आ गयी थी शोधकर्ताओं ने अनुमान लगाया कि हर्ड इम्युनिटी ने उस जीका वायरस के प्रकोप को तोड़ दिया.......

भारत मे इसके सफल सिद्ध होने की संभावना इसलिए ज्यादा है क्योंकि भारत मे युवा आबादी ज्यादा है ज्यादातर को वायरस से संक्रमित होने के बावजूद अस्पताल नहीं ले जाना पड़ेगा और उनकी मौत नहीं होगी।

दूसरी बात यह कि यहाँ अधिकतर लोगों को बीसीजी के टीके लगे हुए है भारतीयों की इम्युनिटी पश्चिमी देशों के मुकाबले स्ट्रांग है. आंकड़े बताते हैं कि जिन देशों में मलेरिया फैल चुका है. वहां कोविड-19 का असर या तो नहीं है. या फिर बेहद कम है.

पीपल्स हेल्थ मूवमेंट के ग्लोबल को-ऑर्डिनेटर टी. सुंदररमण कहते है, 'एक तरह से आप यह कह रहे हैं कि हम (60 वर्ष से कम उम्र के) लोगों को संक्रमित होने और फिर बीमारी से खुद ही ठीक होने देंगे। हम सिर्फ बीमार लोगों का ही ध्यान रखेंगे।' हर्ड इम्यूनिटी की यही पॉलिसी है।' इस प्रोसेस में उन्हीं लोगों को शामिल किया जा सकता है जिनके अंदर इम्युनिटी का निरंतर विकास हो सकता है

लेकिन फिर भी भारत मे हर्ड इम्युनिटी जैसे कदम बहुत सोच समझ कर उठाने होंगे पर फिलहाल इसके अलावा कोई चारा भी नजर नही आ रहा........

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