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सेबी की जांच के पहले ही सुप्रीम कोर्ट की कमेटी ने अदाणी को क्लीन चिट कैसे दे दी?
गौतम अदाणी की कंपनियों पर अमेरिकी शॉर्टसेलर फर्म हिंडनबर्ग के लगाए अनियमितताओं के आरोप की जांच के लिए भारत के प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने केवल चार दिन पहले ही सुप्रीम कोर्ट से कुछ और समय मांगा था, लेकिन शुक्रवार सुबह एक अप्रत्याशित घटनाक्रम में सुप्रीम कोर्ट ने इस जांच के लिए अपनी बनाई कमेटी की रिपोर्ट को सार्वजनिक कर दिया। प्रत्यक्ष रूप से इस जांच रिपोर्ट में अदाणी प्रकरण में सेबी को और उसके रास्ते खुद अदाणी को क्लीन चिट दे दी गई है।
इस संबंध में वरिष्ठ वकील और सरकार के प्रतिनिधि मुकुल रोहतगी ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हुए कहा, ‘रिपोर्ट ने पाया है कि अदाणी समूह द्वारा शेयरों की कीमत में कोई हेरफेर नहीं किया गया है और संबद्ध पक्षों के विनिमय में कोई उल्लंघन नहीं हुआ है।‘
#WATCH | "The report has found that there is no stock price manipulation by Adani Group and no violation of related party transaction," says senior advocate Mukul Rohatgi on SC panel report on Adani group after Hindenburg row pic.twitter.com/iSejU1zT3b
— ANI (@ANI) May 19, 2023
सुप्रीम कोर्ट ने अदाणी समूह की कंपनियों की जांच के लिए एक एक्सपर्ट कमेटी गठित की थी। इसकी अध्यक्षता अवकाश प्राप्त न्यायाधीश एएम स्रप्रे रहे थे। इस कमेटी ने अदाणी की जांच के संबंध में प्रत्यक्ष रूप से सेबी के तईं किसी भी ढिलाई को नहीं पाया है। कमेटी ने अपनी अंतरिम रिपोर्ट शीर्ष अदालत के समक्ष रखते हुए यह भी कहा है कि सेबी अपनी शंकाओं को ठोस आरोपों और मुकदमे में तब्दील नहीं कर सका है:
‘इस चरण में सेबी द्वारा दी गई दलीलों को संज्ञान में लेते हुए और आंकड़ों के सहारे प्रत्यक्षत: इस कमेटी के लिए यह निष्कर्ष निकालना मुमकिन नहीं होगा कि शेयरों की कीमतों में हेरफेर संबंधी आरोपों के इर्द-गिर्द कोई नियामक विफलता हुई है।‘
दिलचस्प है कि ठीक दो दिन पहले संसद सदस्य महुआ मोइत्रा ने अदाणी पर हो रही जांच के संबंध में सेबी के ऊपर सुप्रीम कोर्ट में गलत जानकारी देने के आरोप लगाए थे। साथ ही उन्होंने वित्तमंत्री के ऊपर भी संसद में झूठ बोलने के आरोप लगाए थे।
मोइत्रा ने दो कागजात ट्विटर पर डाले थे। एक कागज संसद में वित्तमंत्री द्वारा उन्हें दिया गया जवाब था जिसमें कहा गया था कि सेबी के नियमों के अनुपालन के संबंध में सेबी अदाणी समूह की कुछ कंपनियों की जांच कर रही है। दूसरे कागज में सेबी का सुप्रीम कोर्ट को दिया हलफनामा था जिसमें कहा गया था कि ग्लोबल डिपॉजिटरी रिसीप्ट के संबंध में सेबी ने 51 कंपनियों की जांच की थी लेकिन उनमें अदाणी समूह की कोई कंपनी शामिल नहीं थी। इस हलफनामे में साफ लिखा है कि ‘’यह आरोप कि सेबी 2016 से अदाणी की जांच कर रही है, तथ्यात्मक रूप से निराधार है’’।
So @SEBI_India so complicit w/Adani that it lied to me & said it is investigating, FinMin lied in Lok Sabha said the same.
— Mahua Moitra (@MahuaMoitra) May 16, 2023
Now SEBI in SC affidavit says not investigating. Lying to SC is perjury. Lying to LS is perjury
Adani cover up will be death of SEBI & BJP. Mark my words. pic.twitter.com/JreUnGeimY
कमेटी के निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित कमेटी ने जो निष्कर्ष दिए हैं उन्हें संक्षेप में बिंदुवार ऐसे समझा जा सकता है:
अदाणी समूह के प्रवर्तकों से संदिग्ध रूप से जुड़ी 13 विदेशी इकाइयों ने अपने लाभार्थी स्वामियों के विवरण दे दिए हैं।
अदाणी एनर्जी के शेयरों की दरों में उछाल में किसी प्रत्यक्ष हेरफेर का कोई साक्ष्य नहीं है।
संबद्ध पक्षों के बीच लेनदेन या सेबी के नियमों के उल्लंघन पर कोई केस नहीं बनता।
सेबी कुछ समय से आरोपों की जांच कर रही थी, उसके तईं कोई नियामक विफलता सामने नहीं आई है।
फिलहाल कोई साक्ष्य नहीं है लेकिन हिंडनबर्ग की रिपोर्ट ने सेबी की शंकाओं को मजबूत किया है।
दिलचस्प है कि कमेटी ने अदाणी के शेयरों में गिरावट के लिए हिंडनबर्ग को ही जिम्मेदार ठहराया है क्योंकि उसने सार्वजनिक रूप से उपलब्ध सूचना के आधार पर आरोप लगाए। इसका अर्थ यह नहीं लगाया जाना चाहिए कि कानून का कोई उल्लंघन वास्तव में हुआ था।
कमेटी ने स्पष्ट किया कि उसकी भूमिका सिर्फ यह पता लगाने की थी कि नियामक के स्तर पर कोई नाकामी हुई है या नहीं, उसे यह नहीं पता लगाना था कि शेयरों की दरों में उछाल सही है या नहीं। इस लिहाज से कमेटी इस नतीजे पर पहुंची है कि सेबी बाजार की दरों में उछाल पर करीबी नजर रखे हुए थी और सक्रिय थी।
पीछे की कहानी
हिंडेनबर्ग एक ‘एक्टिविस्ट’ मंदडि़या है जो न सिर्फ शेयरों की मंदी से मुनाफा कमाता है बल्कि अतिमूल्यांकित कंपनियों के फर्जीवाड़े का परदाफाश भी करता है। अदाणी समूह के साथ जनवरी में इसने यही किया था। जैसे ही हिंडेनबर्ग ने अदाणी समूह को ‘कॉरपोरेट इतिहास के सबसे बड़े फर्जीवाड़े’ का दोषी ठहराते हुए अपनी रिपोर्ट निकाली, भारत के शेयर बाजार में भगदड़ मच गयी। अचानक निवेश का माहौल बिगड़ गया। इस उद्घाटन की टाइमिंग की गजब की थी। अदाणी समूह की अग्रणी कंपनी अदाणी एंटरप्राइज लिमिटेड के 2.5 अरब डॉलर की कीमत वाले शेयरों की बिक्री एक फॉलो ऑन पब्लिक ऑफरिंग (एफपीओ) के माध्यम से होने वाली थी। हिंडेनबर्ग के खड़े किए बवाल के चक्कर में अदाणी का एफपीओ दूसरे दिन भी जोर नहीं पकड़ सका और समूह के निवेशकों को उसकी छह कंपनियों में के शेयरों में डेढ़ लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का चूना लग गया।
पहले तो अदाणी समूह ने हिंडेनबर्ग की रिपोर्ट को निराधार, गलत और बिना किसी शोध का करार दिया। उसके बाद एक विस्तृत जवाब में 29 जनवरी को अदाणी समूह के मुख्य वित्तीय अधिकारी ने भारत के राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे को बगल में लगाकर एक वीडियो जारी किया और चार सौ से ज्यादा पन्ने का जवाब सार्वजनिक किया। उनके मुताबिक इन पन्नों में हिंडेनबर्ग के लगाए 88 आरोपों का बिंदुवार खंडन था। संक्षेप में इस जवाब का लब्बोलुआब यह था कि अदाणी पर हमला भारत पर हमला है। इसका जवाब भी हिंडेनबर्ग ने तत्काल यह कहते हुए दिया कि फर्जीवाड़े का बचाव राष्ट्रवादी मुहावरे में लपेट कर नहीं किया जा सकता और अदाणी समूह खुद को तिरंगे में लपेट कर भारत को व्यवस्थित तरीके से लूट रहा है। हिंडेनबर्ग ने अदाणी को अमेरिकी अदालत में अपने ऊपर मुकदमा करने की चुनौती भी दी।
अदाणी के कारोबारी तरीकों के ऊपर हिंडेनबर्ग के आरोप पहले नहीं हैं। अगस्त 2022 में न्यूयॉर्क स्थित वित्तीय और बीमा कंपनी फिच ग्रुप की क्रेडिटसाइट्स यूनिट ने चेताया था कि अदाणी समूह बहुत ज्यादा कर्जे में डूबा है और बहुत बुरी स्थिति में वह दिवालिया भी हो जा सकता है। इसी रिपोर्ट में हालांकि यह भी कहा गया था कि अदाणी समूह इसलिए राहत मे है क्योंकि बैंकों और भारत की सरकार के साथ उसके रिश्ते मजबूत हैं।
इससे पहले जुलाई 2021 में भारत के वित्त राज्यमंत्री पंकज चौधरी ने संसद में कहा था कि सेबी और राजस्व गुप्तचर निदेशालय (डीआरआइ) नियमों के उल्लंघन के मामले में अदाणी समूह की कुछ कंपनियों की जांच कर रहे हैं। इसी के आसपास ब्लूमबर्ग ने लिखा था कि अदाणी की कपनियों में अपना 90 प्रतिशत पैसा लगाने वाली चार कंपनियां ऐसी हैं जिनकी जांच चल रही है और इन कंपनियों का फर्जीवाड़ा करने वाली कंपनियों में निवेश का इतिहास रहा है। अब खुद सेबी ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देकर 2016 से चल रही अदाणी की जांच वाली बात को निराधार ठहरा दिया है, जो अपने आप में आश्चर्यजनक है।
राहुल गांधी का ‘बीस हजार करोड़’!
अदाणी पर लगातार अगर किसी नेता ने सवाल उठाया है तो वे हैं कांग्रेस के राहुल गांधी। उन्होंने बार-बार अदाणी की कंपनियों में आई रकम को बीस हजार करोड़ बताकर सरकार से सवाल पूछा है। इस बीस हजार करोड़ की पहेली पर संसद में वित्त राज्यमंत्री का दिया गया जवाब भी अपने आप में रहस्यमय है।
भारतीय रिजर्व बैंक के आधिकारिक आंकड़ों के आधार पर फाइनेंशियल टाइम्स ने एक लंबी रिपोर्ट मार्च में की थी। रिपोर्ट का सार यह है कि अदाणी ने प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआइ) में जो 5.7 अरब डॉलर से ज्यादा की रकम हासिल की उसका तकरीबन आधा हिस्सा संदिग्ध विदेशी इकाइयों से आया है जो अदाणी से ही जुड़ी हुई हैं। भारत में आए एफडीआइ के आंकड़ों के विश्लेषण के आधार पर रिपोर्ट कहती है कि अदाणी को मिले कुल निवेश का आधा यानी 20,000 करोड़ (2.6 अरब डॉलर) के आसपास बनता है, जो अदाणी से जुड़ी ऑफशोर कंपनियों से संबंधित है जिसके स्रोत अपुष्ट हैं।
यह रकम 2017 से 2022 के बीच अदाणी की कंपनियों में लगाई गई है। बीस हजार करोड़ न्यूनतम अनुमान है, रकम ज्यादा भी हो सकती है। सितंबर 2022 तक देश में आए कुल एफडीआइ का 6 प्रतिशत अकेले अदाणी को मिला। जिस बीस हजार करोड़ की बात हो रही है, उसमें 526 मिलियन डॉलर मॉरीशस की दो कंपनियों से आया जो अदाणी के परिवार से जुड़ी हुई हैं जबकि 2 अरब डॉलर अबू धाबी की एक होल्डिंग कंपनी से आया था। जानकार मॉरीशस से आए निवेश पर ज्यादा चिंता जता रहे हैं कि यह अदाणी की कंपनियों में कहीं ‘राउंड ट्रिपिंग’ यानी पैसे को घुमा-फिरा के अपने पास ही रखने का मामला न हो।
adani cfo response.
— Aakar Patel (@Aakar__Patel) January 25, 2023
not sure it needed belligerence.
fpo opens day after tom pic.twitter.com/uc8DRs4LWs
चूंकि एफडीआइ के ये आंकड़े रिजर्व बैंक के हैं और राहुल गांधी इसी के स्रोत पर संसद में सवाल उठा रहे थे, तो केंद्र सरकार से उम्मीद करना जायज था कि वह इस बारे में संसद को बताएगी। सरकार ने संसद को बेशक जवाब दिया है, लेकिन न तो राहुल गांधी को और न ही लोकसभा में। ये जवाब चौंकाने वाले हैं।
वित्त राज्यमंत्री पंकज चौधरी के जवाब
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के राज्यसभा सांसद डॉ. जॉन ब्रिटस ने केंद्रीय वित्त मंत्री से सदन में पांच सवाल लिखित में पूछे थे। पहला सवाल उन ऑफशोर शेल कंपनियों के विवरण पर था जिसके लाभार्थी और स्वामी (अल्टिमेट बेनेफिशरी ओनरशिप- यूबीओ) भारतीय नागरिक हों। दूसरा सवाल करमुक्त देशों में पंजीकृत ऐसी ऑफशोर कंपनियों के भारतीय मालिकान के बारे में विवरण जुटाने के लिए सरकारी कार्रवाई पर था। तीसरा सवाल पनामा पेपर्स, पैंडोरा पेपर्स, पैराडाइज पेपर्स और ऐसे ही उद्घाटनों में सामने आए भारतीयों के ऊपर कार्रवाई के विवरण को लेकर था। चौथा सवाल उन देशों के बारे में था जिन्होंने भारत सरकार को भारतीय नागरिकों की ऑफशोर कंपनियों के बारे में सूचना साझा करने का प्रस्ताव दिया है। पांचवां सवाल साझा की गई सूचना के विवरण पर था।
जवाब वित्त राज्यमंत्री पंकज चौधरी की ओर से आए हैं। पहला ही जवाब बाकी सारे सवालों को अप्रासंगिक बना देता है। सरकार ने जवाब दिया है कि वित्त मंत्रालय के कानूनों में ऑफशोर कंपनियां परिभाषित ही नहीं हैं और भारतीय नागरिकों के स्वामित्व वाली ऑफशोर कंपनियों का कोई डेटा सरकार के पास उपलब्ध नहीं है। लिहाजा, इसके संदर्भ में कार्रवाई का सवाल ही नहीं उठता। इसके बावजूद सरकार कराधान और प्रवर्तन के संदर्भ में एक सूचना प्रणाली को सांसद से साझा किया है। इसके अलावा पनामा और पैराडाइज पेपर्स में लीक नामों के मामले में सरकार ने 31 दिसंबर 2022 तक 13800 करोड़ की बेनामी आय को कर के दायरे में लाने की बात स्वीकारी है और पैंडोरा के मामले में ऐसी 250 इकाइयों का जिक्र किया है जिनके भारत से संबंध हैं। राज्यसभा में सरकार द्वारा दिया गया यह जवाब अपने आप में विरोधाभासी है।
साभार followupstories