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कैसा यह खतरे का पहर है, मौत के साए में हर घर है
कोरोना की वैक्सीन जब तक हम सभी को नहीं मिलती, तब तक हममें से कौन इस आपदा में बचा रह जायेगा और कौन नहीं, यह फिलहाल कोई नहीं बता सकता। धन-दौलत, रसूख या सम्पति, कुछ भी ऐसा नहीं है अब इस दुनिया में, जो किसी व्यक्ति को यह गारंटी दे सके कि कोरोना के वायरस की चपेट में वह नहीं आएगा या आने के बाद वह बच ही जायेगा।
चीन से ज्यादा रफ्तार से भारत में कोरोना के मरीज मिलने लगे हैं और वह भी तब, जबकि हमारे यहां टेस्ट चीन या बाकी देशों की तुलना में कई गुना कम हो रहे हैं। सोचते हुए भी डर लगता है कि क्या होता अगर टेस्ट उसी रफ्तार में भारत में भी होते, जैसे बाकी देशों में हो रहे हैं।
क्या तब यही आंकड़ा, जो एक लाख के करीब पहुंचा है, वह कई लाख कोरोना मरीज होने की पुष्टि करता? अगर एक बार को भी इसे सच मान लें तो इसका अर्थ यह है कि इस वक्त देश के ज्यादातर शहरों में कोरोना के मरीज टहल रहे हैं। भले ही लॉक डाउन हो मगर जरूरी कामकाज के बदस्तूर जारी रहने के कारण ये कोरोना करियर्स हर जगह मौजूद ही होंगे।
दुनिया में कई रिसर्च हमें बराबर आगाह कर रही हैं कि कोरोना की वैक्सीन जब तक न आये, लोग अपने शरीर में इम्युनिटी मजबूत करने वाले विटामिन डी, विटामिन सी, जिंक, विटामिन ई और विटामिन बी6 की कमी दूर करने का इंतजाम सप्लीमेंट लेकर करते रहें। क्योंकि मजबूत इम्युनिटी और इन विटामिनों की कमी न होने वाले ज्यादातर लोग कोरोना का शिकार होकर भी ठीक हो जा रहे हैं।
लेकिन इन विटामिन से या मजबूत इम्युनिटी से कोरोना वायरस का शिकार होने से सभी बच जा रहे हैं या ठीक हो जा रहे हैं, ऐसी गारंटी भी अभी मेडिकल संस्थानों ने नहीं दी है। यानी धन-दौलत, रसूख, सम्पति या ये विटामिन... कोई भी यह शील्ड आपको नहीं दे रहा है कि बाहर फैलते कोरोना में आप जाएं और शिकार होने से बच जाएं या शिकार होकर भी ठीक हो जाएं।
मई खत्म होते-होते और जून-जुलाई में भारत में कोरोना के मरीज लाखों में होंगे या करोड़ों में, यह अंदाजा अभी से नहीं लगाया जा सकता लेकिन लॉक डाउन खत्म हुआ और नार्मल जिंदगी जीने की कोशिश भी हुई तो एक लाख से कम का यह आंकड़ा कब 10 लाख या एक करोड़ में बदल जायेगा, यह भी कोई जान नहीं पायेगा। उसी तरह, जिस तरह लॉक डाउन किये जाते वक्त जहां देश में बमुश्किल 500 कोरोना मरीज थे तो आज डेढ़ महीने के लॉक डाउन के बावजूद यह संख्या एक लाख छूने को आतुर है।
लाखों-करोड़ों के आंकड़ें छूने को आतुर कोरोना और उससे बचने की कोई गारंटी न होने के ऐसे बेहद जानलेवा माहौल में भी जिनके पास भूख मिटाने, दवाई- इलाज, किराए, ईएमआई, बिजली बिल आदि के पैसे नहीं बचे, उनकी मजबूरी है कि वे बाहर निकलेंगे ही। उन्हें तो सरकार भी तभी रोक पाएगी, जब वह ऐसे लोगों की भूख मिटाने, दवाई- इलाज, किराए, ईएमआई, बिजली बिल का इंतजाम तब तक करती रहे, जब तक कोरोना की वैक्सीन न मिल जाये।
लेकिन दुविधा में तो वे पड़े हैं, जिनके पास दो चार महीने नहीं बल्कि साल दो साल या जीवन भर घर में बैठकर खाने और अन्य खर्च करने लायक धन है। यानी मजबूत सेविंग्स या धन संपदा रखने वाले नौकरीपेशा अथवा अथवा अन्य वर्ग के लोग। इनके सामने दिक्कत यह है कि इनकी धन-संपदा भी कोरोना से बचाने की गारंटी इन्हें दे नहीं रहा है इसलिए ये इस पसोपेश में हैं कि ये अपनी नौकरी या काम धंधे पर जाने की शुरुआत करें या नहीं। यदि ये ऐसे माहौल में शुरुआत करते हैं तो न सिर्फ इनकी जान को खतरा है बल्कि इनके परिजन भी इससे खतरे में आ जाएंगे। अगर ये खुद नहीं जाते हैं तो ज्यादातर व्यापार इन्हें दूसरों के भरोसे चलाना पड़ेगा, जिसके चलते इन्हें गहरा नुकसान भी होने की आशंका होने लगती है।
लिहाजा इस बात की सम्भावना कम ही है कि मझोले या सम्पन्न व्यापारी कोरोना के फैलने के इस दौर में अगले कुछ माह तक अपनी व अपने परिवार की जान खतरे में डालकर व्यापार/काम- धंधे या ऊंची नौकरियों में सर खपाएँगे। अब ऐसे में जो मजबूर या गरीब लोग हैं, उनके जान हथेली पर लेकर निकलने से भी उन्हें रोजगार भी मिल पाने की उम्मीद कम ही है।
कुल मिलाकर यह कि खरबूजा चाकू पर गिरे या चाकू खरबूजे पर, कटना खरबूजे को ही है। इसलिए कोरोना के तेजी से फैलने और कोई वैक्सीन न मिल पाने की दशा में बर्बादी या मौत गरीबों, मध्यम वर्ग के लोगों, छोटे व्यापारियों, नौकरीपेशा लोगों आदि के सर पर ही मंडराती रहेगी। इसका शिकार हो गए तो मरना इन देश के रसूखदारों, नेताओं, बड़े उद्योगपतियों को भी हैं। लेकिन वे इस खतरे से भलीभांति वाकिफ हैं इसलिए अपने अभेद्य दुर्ग में बैठकर अपने परिवार के साथ वे तब तक बाकी लोगों की बर्बादी और मौत की खबरों से भी दूर रहेंगे, जब तक कोरोना की वैक्सीन उन्हें मिल नहीं जाती...
बहरहाल, किसी चमत्कार की आशा में जल्द से जल्द कोरोना वैक्सीन मिल जाने की प्रार्थना ईश्वर से करते हुए कवि प्रदीप के एक गीत " आज के इस इंसान को ये क्या हो गया है" की कुछ पंक्तियां लिखकर अपनी बात खत्म करता हूँ...
कैसा यह खतरे का पहर है,
आज हवाओं में भी ज़हर है।
कहीं भी देखो बात यही है,
हाय भयानक रात यही है।
मौत के साए में हर घर है,
कब क्या होगा किसे खबर है।
बंद है खिड़की, बंद है द्वारे,
बैठे हैं सब डर के मारे।
क्या होगा इन बेचारों का,
क्या होगा इन लाचारों का।
इनका सब कुछ खो सकता है,
इनपे हमला हो सकता है।
कोई रक्षक नज़र ना आता,
सोया है आकाश पे दाता
यह क्या हाल हुआ अपने संसार का...