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तेजी से फैलते नशे के कारोबार पर कैसे लगेगा अंकुश, वरिष्ठ पत्रकार ज्ञानेन्द्र रावत की यह चौंका देने वाली रिपोर्ट
इन दिनों दिल्ली में दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने जनकपुरी, राजेन्द्र नगर और विकासपुरी मे ब्रिटिश नागरिक सहित पांच लोगों को गिरफ्तार कर उनसे अबतक की सबसे बड़ी ड्र्ग्स की खेप पकड़ी है। पुलिस ने गिरफ्तार आरोपियों यथा- सुनील कुमार उर्फ राजू, लोकेश मेहता, सतीश साहू, नीरज अरोड़ा और यू के निवासी राजेश दत्ता के पास से 13.5 लाख पार्टी ड्र्ग्स की टेबलेट, 10 किलो से ज्यादा म्याउं-म्याउं ड्र्ग्स, 5.1 किलो ट्र्माडोल पाउडर सहित आधा किलो केटामाइन और 100 केटामाइन हाइड्र्ोक्लोराइड व 10 लिंगनोकेन हाइड्र्ोक्लोराइड के नशे के इंजेक्शंस को बरामद किया है। इसकी कुल कीमत 90 करोड़ के करीब आंकी गई है। पुलिस की मानें तो यह गिरोह भारत में दिल्ली और मुंबई के जरिये नेपाल, पाकिस्तान, मलेशिया और श्रीलंका के रास्ते योरोप के बहुतेरे देशों में ड्र्ग्स की तस्करी करता था।
यदि बीते दो सालों का ही जायजा लें, तो साल 2017 में गुजरात में जुलाई महीने में 3,500 करोड़ की 1,500 किलोग्राम हेरोइन पकड़ी गई थी। दिल्ली में भी जुलाई 2017 में 16 करोड़ कीमत की 4 किलोग्राम और अगस्त महीने में एक महिला और एक नाइजीरियन से डेढ़ करोड़ कीमत की 740 ग्राम हेरोइन पकड़ी थी। इसके अलावा नवम्बर माह में तकरीब 50 करोड़ की 438 किलो प्रतिबंधित ड्र्ग्स 'सूडो एफिड्र्नि' पुलिस ने पकड़ी थी। बीते साल भी दिल्ली पुलिस ने दिल्ली के कई इलाकों में छापेमारी कर जुलाई में 10 करोड़ की अफीम के साथ दो अंर्तराष्ट्र्ीय ड्र्ग तस्करों को गिरफ्तार किया था, सितम्बर में 15 करोड़ की हेरोइन के साथ एक अफ्रीकी को गिरफ्तार किया था। यह तो केवल कुछ ही मामले हैं।
कुछ बरस पहले भोजपुरी फिल्मों की एक अभिनेत्री को चार करोड़ कीमत की लगभग चार किलो हेरोइन सहित एक नाइजीरियन के साथ पकड़ा गया था। नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो की मानें तो यह गिरोह पाकिस्तान से हेरोइन भारत लाता है। असलियत यह है कि देश में कोई ही दिन या महीना ऐसा जाता हो जब करोड़ंों रूपये मूल्य की चरस हेरोइन या हशीश न पकड़ी जाती हो और उसमें नाईजीरियन शामिल न हो। इससे खुलासा होता है कि ड्रग्स के कारोबार ने किस कदर देश को अपनी चपेट में ले लिया है। हमारे यहां म्यांमार के रास्ते पहाड़ों के जरिये ड्र्ग्स की तस्करी का धंधा बेरोकटोक जारी है और यह सब अधिकारियों और पुलिस की मिलीभगत के चलते दिनोंदिन परवान चढ़ रहा है।
सच तो यह है कि अकेले हमारे देश में ही नहीं, समूची दुनिया में नशे का कारोबार सुरसा के मुंह की तरह बढ़ता ही जा रहा है और अब यबीते ह कोढ़ का रुप ले चुका है। अमरीकी विदेश विभाग की रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है कि भारत और पाकिस्तान दुनिया के नशीले पदार्थो के सर्वाधिक उत्पादन और अवैद्य कारोबार करने वाले 20 देशों में शामिल हैं। रिपोर्ट में अफगानिस्तान और कोलंबिया को अफीम और कोकीन की अवैध पैदावार करने वाला सबसे बड़ा मुल्क बताया गया है। अफगानिस्तान दुनिया का सबसे बड़ा अफीम उत्पादक है और तमाम प्रतिबंधों के बावजूद वहां अफीम उत्पादन में बढ़ोतरी हो रही है। पड़ोसी देशों में तेजी से बढ़ता अफीम का उत्पादन एक तरफ जहां लगातार लोगों को नशाखोरी की गिरफ्त में ले रहा है, वहीं इसका अवैध व्यापार तंत्र अपराधियों और आतंकियों को आर्थिक तौर पर मजबूती प्रदान कर रहा है।
भारत में मुख्य समस्या यह है कि रसायनों तथा अफीम उत्पादन में यहां भेद कर पाना टेड़ी खीर है। इससे वैध तरीके से उगाई गई कुल अफीम में से 30 फीसदी अफीम आज भी अवैध बाजार में पहुंच जाती है। देश में हजारों हेक्टेअर क्षेत्र में अफीम की गैर कानूनी खेती बरोकटोक जारी है। कानूनी तौर पर देश में अफीम की खेती करवाने के लिए जिम्मेदार सरकारी संस्था सीबीएन इसकी पुष्टि करती है। उसके अनुसार इसमें यूपी, एमपी, अरूणाचल, झारखण्ड और जम्मू कश्मीर ये पांच राज्य शीर्ष पर हैं। जबकि कानूनन अफीम की खेती के लिए यूपी, एमपी और राजस्थान ये तीन राज्य ही जाने जाते हैं। कुछ बरस पहले की ही बात है जब ग्वालियर और लखनऊ में बरामद 1.5 टन एसिटिक एनहाइट्राइड जिससे 1.500 किलोग्राम हेरोइन तैयार होती और जिसकी कीमत अन्र्तराष्ट्रीय बाजार में 1.500 करोड़ से भी ज्यादा होती, से जाहिर है कि देश के दो राज्यों यथा यूपी-एमपी में ड्रग माफिया किस सीमा तक फैले हुए हैं। असलियत यह है कि अफीम की गैर कानूनी खेती के चलते देश में हेरोइन की तस्करी में बेतहाशा बढ़ोतरी हो रही है।
गौरतलब है कि अफीम के फूल यानी पाॅपी से हेरोइन बनाई जाती है और हमारा देश ऐसा देश है जिसे पाॅपी से गम बनाने की अनुमति मिली हुयी है। इस वजह से भी अफीम की गैरकानूनी खेती को बढ़ावा मिला है और इसलिए बहुतेरे उत्पादक बिना लाइसेंस के अफीम की खेती में लगे हुए हैं। यूएनओडीसी के अध्ययन और उसकी वल्र्ड ड्रग्स की रिपोर्ट की मानें तो दक्षिण एशिया में ड्रग्स का सेवन करने वालों में भारतीयों की तादाद साठ फीसदी से ज्यादा है। इनमें अधिकतर युवा हैं। पंजाब में लगभग 50 फीसदी से ज्यादा युवा ड्रग्स की चपेट में हैं। वहीं देश में नशीले पदार्थ लेने वाले की दिन-ब-दिन तेजी से बढ़ती तादाद चिंता का विषय है।
जबसे विश्व स्वास्थ्य संगठन ने वर्षों के अनुसंधान के बाद यह खुलासा किया है कि नशीले पदार्थों पर निर्भरता ठीक उसी प्रकार का मानसिक रोग है जैसाकि कोई अन्य मस्तिष्क सम्बन्धी रोग या फिर मनोरोग सम्बन्धी विकार, ने मनोचिकित्सकों के सामने गंभीर चुनौती पैदा कर दी है। अब तो यह तथ्य भी खुल कर सबके सामने आ चुका है कि पर्यावरण सम्बन्धी कारकों के अलावा व्यक्ति के जीन भी नशीले पदार्थों पर उसकी निर्भरता को बनाये रखते हैं। संयुक्त राष्ट्र कार्यालय-यूएनओडीसी और भारत सरकार के केन्द्रीय सामाजिक न्याय मंत्रालय के सर्वेक्षण में यह तथ्य सामने आया है कि भारत में 6 करोड़ 25 लाख शराबी, 87.5 लाख चरसिये, 20 लाख अफीमची, 6 लाख नशे की दवाई लेने वाले, 1 करोड़ 68 लाख तम्बाकू पीने वालों के अलावा अन्य नशेड़ियों की तादाद 30 लाख से भी ज्यादा है।
सर्वेक्षण के मुताबिक देश में कुल नशा करने वालों की तादाद तकरीब 9 करोड़ 36 लाख है जबकि इसमें भांग व तम्बाकू खाने वालों की तादाद शामिल नहीं है। यदि यूएनओडीसी व अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन द्वारा किए गए एक साझे सर्वेक्षण रिपोर्ट की मानें तो पता चलता है कि देश की ग्रामीण एवं शहरी कुल आबादी का 21.4 फीसदी हिस्सा यानी 21 करोड़ 68 लाख लोग नशीले पदार्थों का उपभोग करते हैं। मौजूदा हालात स्थिति की गंभीरता की ओर इशारा करते हैं। असलियत यह है कि वेश्याएँ, परिवहनकर्मी, बेसहारा बच्चों, उत्तरी-पूर्वी राज्यों और अफीम उत्पादक क्षेत्रों में लोग अधिक मात्रा में नशीले पदार्थों के सेवन के आदी हैं।
इंजेक्शन द्वारा नशे के आदी लोगों की तादाद मणिपुर में सबसे ज्यादा पायी जाती है। वहाँ पर स्थिति दिन-ब-दिन इसलिए और भयावह होती जा रही है क्योंकि वहां पर नशीले पदार्थों को इंजेक्शन द्वारा लिए जाने से एड्स की बीमारी ने अपने पैर पसारने शुरू कर दिए हैं। सर्वेक्षण के अनुसार कुल 21.4 फीसदी नशेड़ियों में से 17 से 26 फीसदी ऐसे हैं जिन्हें तत्काल उपचार की आवश्यकता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस बात पर चिंता व्यक्त की है कि विकासशील देशों में अल्कोहल की खपत लगातार तेजी से बढ़ती जा रही है जो दिन-ब-दिन स्थिति की भयावहता का प्रतीक है।
देश में सबसे ज्यादा नशीले पदार्थों का इस्तेमाल हरियाणा, हिमाचल, मणिपुर, नागालैण्ड और अरूणाचल प्रदेश में होता है। इनमें तकरीब 60 से 98 फीसदी तक लोग नशीले पदार्थों का इस्तेमाल करते हैं। देखा जाये तो सबसे कम नशीले पदार्थों का उपयोग कर्नाटक में होता है। कैनाबीस नामक नशीले पदार्थ का सबसे ज्यादा उपयोग यानी 11 फीसदी बिहार व 24.6 फीसदी मणिपुर में होता है। इस तरह देश में कुल 12 लाख के करीब लोग कैनाबीस का इस्तेमाल करते हैं। अध्ययन इस बात के प्रमाण हैं कि एल्कोहल व तम्बाकू सहित सभी नशीले पदार्थों के उपयोग से उत्पन्न बीमारियों के 8.9 फीसदी लोग शिकार होते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार बीमारियों में 4.1 फीसदी योगदान तम्बाकू और 4 फीसदी एल्कोहल का है जबकि अन्य नशीले पदार्थों का योगदान 0.8 फीसदी है।
गौरतलब यह है कि दक्षिणी एशियाई देशों की हालत सबसे बुरी है क्योंकि यहां पर नशीले पदार्थों से प्रभावित विश्व आबादी में इनका हिस्सा 18 फीसदी है। विडम्बना यह है कि सवा अरब से भी ज्यादा आबादी वाले देश भारत में एल्कोहल, चरस, अफीम और हेरोइन का इस्तेमाल बहुत बड़ी मात्रा में होता है। यूएनओडीसी के अनुसार समूचे विश्व में 20 करोड़ 50 लाख से भी अधिक तादाद में लोग किसी न किसी नशीले पदार्थ का इस्तेमाल करते हैं और इनमें सबसे अधिक इस्तेमाल चरस, उसके बाद एम्फेटेमीन, कोकीन और अफीम का होता है। नशीले पदार्थों का उपयोग करने में पुरुष महिलाओं की अपेक्षा बहुत अधिक आगे हैं जबकि महिलाएँ भी कम नहीं हैं। पुरुषों में अधेड़ों की तुलना में युवकों का प्रतिशत बहुत ज्यादा है। इस तथ्य को नकारा नहीं जा सकता।
अब जबकि यह स्पष्ट हो चुका है कि सामाजिक-आर्थिक स्थिति के साथ नशीले पदार्थों और आबादी के गति-विज्ञान का आपस में घनिष्ठ सम्बन्ध है, मनोवैज्ञानिकों को इसे सामाजिक चिकित्सा समस्या मानकर इस गंभीर समस्या से निपटने का प्रयास करना चाहिए। नशे के आदी लोग समाज और परिवार के अभिन्न अंग हैं। यह जान-समझ कर उनके साथ हमें सहयोगात्मक रूख अख्तियार करना चाहिए और सरकार को उनके समुचित इलाज की व्यवस्था करनी चाहिए। लेकिन लगता है जानते-बूझते हुए भी सरकार इनकी अनदेखी कर रही है। सरकार का रवैय्या तो इसकी ही पुष्टि करता है।