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सेना प्रमुख जनरल नरवणे बोले- पीओके पर संसद आदेश देगी तो उसे हासिल करने के लिए उचित कार्रवाई करेंगे
कश्मीर घाटी में तैनात सैन्य अधिकारियों के खिलाफ मिलने वाली शिकायतों पर सेना प्रमुख ने कहा- सीमाओं पर तैनात कमांडर के फैसले का सम्मान करना होगा। जो भी शिकायतें दर्ज हुईं, वे निराधार साबित हुईं। सियाचिन हमारे लिए महत्वपूर्ण है। उसकी निगरानी के लिए पश्चिमी और उत्तरी मोर्चे का गठन किया गया है। यह क्षेत्र हमारे लिए रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है।
100 महिलाओं के दल का प्रशिक्षण शुरू हुआ- जनरल
सुरक्षा बल में अधिकारियों की कमी पर सेना प्रमुख ने कहा- अधिकारियों की कमी है, लेकिन ऐसा नहीं है कि इसके लिए आवेदन करने वाले लोगों की कमी है। हमने बल में अधिकारियों के चयन मानक के स्तर को कम नहीं होने दिया है। सेना में महिला जवानों के सवाल पर उन्होंने कहा- 6 जनवरी से 100 महिला बलों के एक दल ने प्रशिक्षण शुरू कर दिया है।
जनरल नरवणे ने कहा- तीनों सेनाओं के भीतर तालमेल बेहद जरूरी है। चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) इस क्षेत्र में एक बड़ा कदम है। सेना बदलाव की प्रक्रिया में है। हम हमेशा यह तय करने की कोशिश करेंगे कि हमें बेस्ट मिले। हमारे सामने जो भी चुनौतियां आएं भविष्य में हम उनके लिए तैयार रहें। यही हमारा फोकस है।
उन्होंने कहा- अभी हम भविष्य में काम आने वाली ट्रेनिंग दे रहे हैं। हमारा जोर संख्याबल पर नहीं, गुणवत्ता पर है। हम तय करेंगे कि हमारे लोग अपना सर्वश्रेष्ठ दें। संविधान के प्रति निष्ठा ही हर वक्त हमारी मार्गदर्शक होनी चाहिए। हम संविधान में निहित न्याय, स्वतंत्रता, समानता और भाईचारे को आधार बनाकर ही आगे बढ़ेंगे।
सेना की संचालन के मुद्दे पर सेना प्रमुख ने कहा- जहां तक भारतीय सेना का संबंध है, हमारे लिए कम समय का खतरा उग्रवादियों के खिलाफ अभियान चलाना है और लंबे समय का खतरा पारंपरिक युद्ध है। हम इसी तैयारी में जुटे हैं। उन्होंने कहा- पाकिस्तान और चीन सीमा पर सुरक्षा बल को फिर से संतुलित करने की आवश्यकता है। हमें उत्तरी और पश्चिमी दोनों सीमाओं पर समान ध्यान देने की आवश्यकता है।
31 दिसंबर को नरवणे सेना प्रमुख बनाए गए
पूर्व सेना प्रमुख बिपिन रावत के इस्तीफा देने के बाद लेफ्टिनेंट जनरल नरवणे ने 31 दिसंबर को 28वें सेना प्रमुख का पदभार संभाला। जनरल बिपिन रावत देश के पहले चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ बनाए गए। इससे पहले, जनरल नरवणे गुरुवार को दुनिया के सबसे ऊंचे युद्धक्षेत्र सियाचिन पहुंचे थे।