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यही आलम रहा 'सरकार' तो कैसे कटेंगे बाकी दिन, आपके शहर में क्या हालात है बताइये?
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- बड़े शहरों में ही अब तक नहीं बन पाई होम डिलीवरी की व्यापक व्यवस्था
- सरकार ने जारी किये जो नंबर, वे या तो उठ नहीं रहे या काम ही नहीं कर रहे
- होम डिलीवरी के भरोसे लोगों को लॉक डाउन कर तो दिया मगर राशन आदि ख़त्म होने पर कैसे रोकेंगे सबको निकलने से
- अगर यही आलम रहा तो मजदूर और गरीबों के बाद सड़कों पर नजर आने लगेगा निम्न या मध्य आय वर्ग का रेला
अभी कल ही मैंने लिखा था कि सबका नंबर आएगा...उनका भी, जो वेतन/सेविंग को ढाल और घरों को दुर्ग समझकर बैठे हैं और सड़कों पर नजर आ रहे उन लाखों मजदूरों को देखकर हिकारत भरे अंदाज में यह नसीहतें दे रहे हैं कि "ये बेवकूफ जहां हैं, वहां रुक क्यों नहीं जाते? सरकार ने सब इंतजाम कर तो रखे हैं।" अब घरों में दुबके ऐसे लोगों को कोई कैसे समझाए कि सरकारें अगर इतनी ही लायक होतीं तो फिर रोना ही किस बात का था?
कैसे इन्हें यकीन दिलाये कि जो- जो देने के लिए मीडिया के जरिये सरकार हमें दिलासा देती है, उसमें से शायद ही कुछ हकीकत में पूरा कर पाती है। वरना किसे शौक है कि मुफ्त में मिल रहे दोनों टाइम के भोजन/ राशन और महीने में भत्ते को छोड़कर हजारों किलोमीटर दूर अपने गांव के लिए यूं सड़कों पर भूख-प्यास से बिलखते हुए पैदल ही अपनी गठरी और बच्चों को लाद कर इस गर्मी में मरने के लिए निकल पड़े...
हालांकि घरों में दुबके लोग भी सरकार के दावों और योजनाओं की हर हकीकत से वाकिफ होते ही हैं, तभी तो उन्होंने सरकार के इस दावे पर यकीन नहीं किया कि किसी को जमाखोरी करने की जरूरत नहीं है। सरकार आवश्यक वस्तुओं की कमी नहीं होने देगी। इसी वजह से ज्यादातर ने अपने अपने घरों में महीने भर का राशन या कुछ ने तो इससे भी ज्यादा भर कर रख लिया और रामायण देखकर लॉक डाउन की लक्ज़री अफोर्ड करने लगे....
बीच-बीच में समाचार देखकर सड़क पर बिलख रहे या कीड़े मकोड़ों की तरह इधर उधर जान बचाने के लिए भागते गरीबों के लिए नसीहतें या घृणा का भाव भी प्रदर्शित करते रहे... या फिर किसी सख्त जरूरत के लिए बेहद मजबूरी में बाहर निकल कर पुलिसिया लठ्ठ खाते या बेइज्जती सहते लोगों पर हंसते भी रहे।
लेकिन शायद वे इससे बेखबर हैं कि गरीबों और जरूरतमंदों का यह दर्दनाक शो तो यूं ही चलता रहेगा मगर जल्द ही इस लॉक डाउन का कहर उनके दुर्ग यानी घर और ढाल यानी वेतन/ सेविंग को भेद कर उनके पास भी पहुंचने वाला है। जिस तरह खोखले सरकारी वादों का शिकार होकर गरीब आज सड़कों पर हैं, उसी तरह घरों में दुबके खाये अघाये लोग भी जल्द ही सड़कों पर निकलने के लिए मजबूर हो सकते हैं। यकीन न हो तो Girish Malviya जी की पोस्ट को ध्यान से पढ़िए।
मालवीय जी ने भले ही अपने इंदौर की दशा दिशा उसमें लिखी है मगर दिल पर हाथ रखकर बताइए कि क्या आपके शहर की दशा दिशा भी ऐसी ही नहीं है? सरकारी वादे और घोषणाएं क्या कह रही हैं, उन्हें एक तरफ रखकर जरा वास्तविक सूरते हाल पर नजर तो डालिये। होम डिलीवरी की सरकारी व्यवस्था ज्यादातर जगहों पर केवल कागजों पर है। ऑनलाइन कंपनियां घबरा कर मैदान छोड़ रही हैं। ऐसे में दुकानों पर सामान लेने के लिए क्या घरों में दुबके लोग भी इन्हीं मजदूरों और गरीबों की तरह नहीं भटकेंगे, अगर यही हाल रहा तो...
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गिरीश मालवीय जी की पोस्ट यह है 👇👇👇👇
चार पाँच दिनों में ही शहरों में राशन की होम डिलीवरी की सुविधा ध्वस्त होने की कगार पर है यह इंदौर जैसे बड़े शहर का हाल है छोटे शहरों कस्बों में जहाँ यहाँ से ही माल सप्लाई होता है वहाँ क्या हालत होगी भगवान ही जानता है, अभी एक मित्र से बात हुई बेस्ट प्राइस जैसा बड़ा होलसेल मार्केट एक दिन छोड़कर खुल रहा है वो भी सिर्फ 4 घण्टे के लिये , सुबह 10 बजे वो लाइन में लगे 12 बजे तक उनका नम्बर नही आया दोपहर 12 बजे स्टोर बन्द कर दिया उन्हें अब परसो आने को बोला गया है..….......
इंदौर में कर्फ्यू के हालात है कर्फ्यू में किराना और अन्य जरूरी सामान लाेगाें तक पहुंचे, इसके लिए प्रशासन ने होम डिलीवरी शुरू करवाई। इसके लिए ऑनडोर, डी-मार्ट, मेट्रो कैश, बिग बाजार, विशाल मेगा मार्ट, रिलायंस फ्रेश कंपनियों के 25 से ज्यादा नंबर जारी किए थे, लेकिन इनमें से ज्यादातार नंबर काम ही नहीं कर रहे, यह इंदौर के हालत है खबर का फोटो सलग्न है
दूसरे शहरो में रहने वाले दोस्तों से बात की है तो वो भी यही बता रहे है कि जिस दिन से यह होम डिलीवरी की व्यवस्था शुरू की गयी थी जो नंबर बताए गए थे वो फोन नंबर काम नहीं कर रहे हैं। कुछ लोगों का कहना है कि ऑर्डर लेने से कंपनियां मना कर रहे हैं। वहीं कुछ हफ्ते भर दिन की वेटिंग की बात कर रहे हैं। स्टोर संचालकों बता रहे है कि इतनी अधिक संख्या में फोन कॉल व्हाट्सएप और ऐप के माध्यम से बुकिंग आ रही है जिनको 24 घंटे में पहुंचाना संभव नहीं है। हजारों की संख्या में ऑर्डर हैं जिस को घर-घर पहुंचाने के लिए कर्मचारियों की संख्या सीमित है। ऐसे में हमारे पास इसके अलावा कोई चारा नहीं है जहां तक संभव हो पा रहा है कर्मचारी लगातार सामान पहुंचा रहे हैं।कुछ स्टोर कह रहे है कि डिलीवरी सिर्फ एक किमी के अंदर ही होगी। ...........
यदि होम डिलीवरी नहीं की जाएगी तो आदमी मजबूरन सामान खरीदने बाहर जाएगा ही ऐसे में कैसे सोशल डिस्टेंसिंग की व्यवस्था रखी जाएगी ?
आपके शहर में क्या हालात है बताइये
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