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देश के केंद्रीय बैंक आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन (Raghuram Rajan) ने सरकार को आगाह किया है कि देश की अल्पसंख्यक विरोधी छवि भारतीय प्रोडक्ट्स के लिए बाजार को नुकसान पहुंचा सकती है। इसके चलते विदेशी सरकारें राष्ट्र को अविश्वसनीय साथी मान सकती है। रघुराम राज ने धर्मनिरपेक्षता जैसी साख की ओर इशारा करते हुए कहा कि भारत मजबूत स्थिति से धारणा की लड़ाई में प्रवेश कर रहा है जिससे हमें ही नुकसान होगा।
खबरों के मुताबिक राजन ने कहा कि अगर हमें लोकतंत्र के रूप में अपने सभी नागरिकों के साथ सम्मानपूर्वक व्यवहार करते हुए देखा जाए तो हम बहुत ही अधिक सहानुभूतिपूर्ण हो जाते हैं। उपभोक्ता कहते हैं मैं इस देश से सामान खरीद रहा हूं जो सही काम करने की कोशिश कर रहा है जिससे हमारे बाजार बढ़ते हैं।
राजन ने आगे कहा कि यह केवल उपभोक्ता नहीं हैं जो इस तरह के विकल्प चुनते हैं कि किसको संरक्षण देना है बल्कि अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में गर्मजोशी भी इस तरह की धारणाओं को तय करती है। सरकारें इस आधार पर निर्णय लेती हैं कि कोई देश विश्वसनीय भागीदार है या नहीं। यह अपने अल्पसंख्यकों के साथ कैसे पेश आता है।
पूर्व आरबीआई गवर्नर ने कहा कि चीन उइगरों और कुछ हद तक तिब्बतियों को लेकर भी इस तरह की छवि समस्याओं का सामना कर रहा है जबकि यूक्रेन को भारी समर्थन मिला है क्योंकि राष्ट्रपति वोलोडिमीर जेलेंस्की को किसी ऐसे व्यक्ति के रूप में देखा जाता है जो लोकतांत्रिक विचारों की रक्षा के लिए खड़ा होता है जिस पर दुनिया विश्वास करती है।
राजन ने आगे कहा कि सेवा क्षेत्र में निर्यात भारतीयों के लिए एक बड़ा अवसर प्रस्तुत करता है और देश को इसे बनाए रखना होगा। उन्होंने कहा कि हमें गोपनीयता पर पश्चिम की संवेदनशीलता के बारे में बहुत जागरूक होने की जरूरत है।
उन्होंने कहा कि जिन अवसरों का लाभ उठाया जा सकता है उनमें एक चिकित्सा क्षेत्र है। उन्होंने चेतावनी देते हु एकहा कि एक ऐसे देश के रूप में देखे जाने से, जो डेटा सुरक्षा और गोपनीयता की चिंताओं को संतुष्ट नहीं करता, सफल होना मुश्किल है।
उन्होंने यह भी कहा कि चुनाव आयोग, प्रवर्तन निदेशालय या केंद्रीय जांच ब्यूरो जैसे संवैधानिक प्राधिकरणों को कम आंकने से हमारे देश के लोकतांत्रिक चरित्र का क्षरण होता है। घरेलू मामलों पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा कि भारतीय प्रशासन को तीन कृषि कानूनों जैसे उदाहरणों से बचने के लिए प्रमुख हितधारकों के साथ परिवर्तनों पर चर्चा करके शासन की चुनौतियों से जूझना होगा। किसानों के विरोध के बाद पिछले साल तीन कृषि कानूनों को रद्द कर दिया गया था।