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इमपार मुसलमानों की जरूरत थी: एम जे खान

Shiv Kumar Mishra
26 May 2020 9:25 AM GMT
इमपार मुसलमानों की जरूरत थी: एम जे खान
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रमज़ान के दौरान एक लड़की ने रोज़ा तोड़कर एक गैर मुस्लिम व्यक्ति को खून दिया, ऐसे कार्यों की खूब तारीफ और सराहना की जानी चाहिए.

भारतीय मुसलमानों को नई दिशा देने और उनकी सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक दशा बदलने के मद्देनजर एक नये समूह इंडियन मुस्लिम प्रोग्रेसिव एंड रिफार्म यानी इमपार का उद्भव हुआ है जो डाक्टर एम जे खान की कोशिशों का नतीजा है, डाक्टर एम जे खान साहब से हमारे संवाददाता मसरूर मलिक ने इमपार की जरूरत और कार्यशैली व अन्य मुद्दों पर तफसीली बातचीत की है जो आपकी सेवा में पेश किया जा रही है.

प्रश्न: डाक्टर साहब इमपार का आइडिया कैसे आया और मुस्लिम बुद्धिजीवियों को इकट्ठा करने के पीछे क्या सोच रही?

उत्तर: देखिए ये कोई नया आइडिया नहीं है बल्कि नई चुनौतियों के तहत पुनरुत्थान किया गया है. 2004 में डाक्टर मनमोहन सिंह सरकार के दौरान अल्पसंख्यकों की शिक्षा पर एक कांफ्रेंस हुई थी जिसमें मैं शरीक हुआ था और पहली बार मैं किसी मुसलमानों से जुड़े कार्यक्रम में शामिल हुआ था, इससे पहले मैंने कृषि क्षेत्र में कार्य करता रहा हूँ और लंबा अनुभव भी कृषि क्षेत्र में था. कभी किसी मुस्लिम मुद्दे से मेरी कोई दिलचस्पी नहीं थी और किसी मुस्लिम संगठन या अभियान से ना संबंध था ना वास्ता. मैंने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से एमबीए किया और दो साल वहाँ गुज़ारे.

इस कांफ्रेंस में हुई चर्चा ने मुझे बेहद मायूस किया, मैंने तत्कालीन मानव संसाधन मंत्री अर्जुन सिंह और उनके सचिव की बातचीत सुनी जो टीब्रेक के दौरान आपस में हो रही थी. अर्जुन सिंह का कहना था कि जिस कांफ्रेंस का प्रधानमंत्री ने उद्घाटन किया हो वहाँ हम सोच कर आए थे कि बहुत बड़े बड़े मुद्दे उठाए जाएंगे लेकिन यहाँ तो बहुत ही छोटे छोटे मुद्दों पर बात हुई है. खैर वो लंबी बहस है तभी हमने सोच लिया था कि कुछ ऐसा किया जाना चाहिए जो सही मुद्दों को सही मांग के साथ प्राथमिकता के आधार पर उठाया जा सके. अच्छे अवसर मुहैया हों सकें और सरकार से सही लाभ समुदाय को हासिल किया जा सके.

यहीं से इमपार की सोच उभरी. 2004 में ही सबसे पहले हमने 20-25 लोगों की मीटिंग बुलाई थी. इसके बाद हर साल दो चार मीटिंग बुलाते रहे कोई फाइनल ढांचा नहीं बन सका क्योंकि कृषि कार्य में जयादा बिज़ी रहा. लेकिन यह भी सोच रही कि मुस्लिम समुदाय का सहयोग देश के लिए कम हो रहा है और बेरोजगारी बढ़ रही है. मुस्लिम नौजवानों की सकारात्मक ऊर्जा सही दिशा में उपयोग नहीं हो रही है. यही सोचकर फिर फैसला किया कि अगर कोई बड़ा थिंक टैंक भी न बने तो अपने क्षेत्र से जुड़े क्षेत्र में ही मुस्लिम समुदाय के लिए कुछ किया जाए. फिर 2015 में इंडियन माइनोरिटी इकोनॉमिक डेवलपमेंट एजेंसी यानी आइमेडा का गठन किया और एक साल बाद दौरे करने शुरू कर दिए, मुस्लिम समुदाय से संवाद करना, कालेज में छात्रों से बात करना, मदरसे में जाना वगैरह काम शुरू हो गये. छात्रों को शिक्षा और रोजगार के बारे में समझाना आदि भी कर रहे थे.

लेकिन पिछले छह महीने में जिस तरह की चुनौतियां मुस्लिम समुदाय के सामने आई और सोशलमीडिया पर जैसे जैसे कमेंट मुसलमानों के बारे में पढ़ने को मिलते थे तो इससे लग रहा था कि मुसलमानों की छवि अगर ऐसे ही खराब होती रही तो लॉक डाउन खत्म होते होते हालात बहुत खराब हो जाएंगे. मीडिया एक एजेण्डा के तहत जो कर रहा था उससे बहुसंख्यक वर्ग का गुस्सा सड़क पर उतरेगा जिससे मुस्लिम समुदाय की स्थिति और भयावह हो जाएगी.

प्रश्न: कोरोना को लेकर मीडिया के ज़रिए तबलीगी जमात का नाम लेकर और अन्य मुद्दों पर मुसलमानों के खिलाफ नफरत का माहौल बनाने की जो कोशिश की जा रही है उसके खिलाफ इमपार की क्या रणनीति रहेगी.

उत्तर: ये बिलकुल सच्चाई है कि मीडिया का एक वर्ग मुसलमानों के खिलाफ विभाजनकारी एजेण्डा के तहत काम कर रहा है. वो तथ्य नहीं बताते बल्कि झूठ की बुनियाद पर नफरत फैलाते हैं. मौलाना साद को भी चाहिए था कि सामने आकर सच्चाई मीडिया और कैमरे के साथ सोशलमीडिया पर रखते. सच्चाई सामने आती तो आम आदमी सच को मानता और नफरत ना फैलती. लेकिन मीडिया तो अपनी तथ्यहीन रिपोर्टिंग कर रहा था. दूसरी तरफ मुसलमानों की तरफ से मीडिया में सही नुमाइंदगी नहीं हो पाती.

प्रश्न: इमपार ने एक मीडिया पैनल बनाया है जिसकी सूची तमाम चैनलों और समाचार समूहों को भेजी गई है कि इन लोगों को मुसलमानों के विभिन्न मुद्दों पर बात रखने के लिए बुलाइए, जिससे सही नुमाइंदगी मुसलमानों की तरफ से हो, क्या मीडिया समूहों ने इस मामले में सकारात्मकता दिखाई है?

उत्तर: हाँ बिलकुल सकारात्मकता दिखाई है. टीवी एडिटर्स से व्यक्तिगत रूप से कहा गया तो कुछ चैनलों इस पर बाकायदा डिबेट की कि इमपार की आवश्यकता क्यों? अन्य टीवी चैनल्स ने हमारे पैनल से लोगों को बुलाना शुरू कर दिया है. ये काम भी इसलिए किया गया कि चैनल्स को आसानी से ऐसे लोगों के नाम मिल गये जिन्हें वो डिबेट में बुला सकते हैं. इससे पहले जिन लोगों को वो डिबेट में बुलाकर और तू तू मैं मैं कराकर टीआरपी बढ़ा रहे थे उसमें कुछ नहीं किया जा सकता लेकिन जब लोग मुहैया होंगे तो अच्छे लोगो को बुलाया जाएगा. इमपार ने हर क्षेत्र से जुड़े बेहतरीन सौ लोगों की सूची बनाई है. जब चैनल्स के पास ये नाम होंगे तो वो उन्हें क्यों बुलाएँगे जो इस्लामिक स्कालर के नाम पर जाते हैं भले ही इसलाम की अलिफ बे नहीं जानते.

प्रश्न: इमपार ने मुस्लिम समुदाय से संबंधित फेक न्यूज़ चाहे मीडिया पर हो, अखबार या सोशलमीडिया पर हो पर कानूनी कार्रवाई करने की बात भी कही थी, इस बारे में क्या हो रहा है?

उत्तर: फेक न्यूज़ के बारे में इमपार तीन स्तर पर काम कर रहा है. पहला फेक न्यूज़ की शिकायत पुलिस में करना, दूसरा जहाँ पुलिस ने शिकायत पर अच्छा काम किया उनकी सराहना करना और तीसरा फेक न्यूज़ की सच्चाई सामने लाना. तीनों कामों पर इमपार आगे बढ़ रहा है, लेकिन इमपार का दूरगामी एजेण्डा ये है कि सकारात्मकता और निर्माणकारी कामों को जयादा फैलाया जाए. कानूनी एक्शन जयादा कामयाब नहीं होगा बल्कि समुदाय की तरफ से किये जा रहे अच्छे कार्यों का प्रचार होना चाहिए. कोरोना महामारी के दौरान समुदाय के लोगों ने संगठन के आधार पर और व्यक्तिगत रूप से बहुत काम किया है. हम समुदाय के पढ़े लिखे लोगो, मौलवी साहिबान के बयान मंगा रहे हैं जो लॉक डाउन की गाइडलाइन को फोलो करने के संबंध में हैं उन्हें प्रचारित करेंगे, जिस भी गैर मुस्लिम का बयान अच्छा होगा उसकी सराहना की जाएगी और जो सरकार बेहतर कदम उठाएगी उसकी भी सराहना इमपार करेगा. मुसलमानों ने रमज़ान और ईद के दौरान गाइडलाइन को अच्छी तरह और जिम्मेदारी के साथ फोलो किया है जिसकी तारीफ की जानी चाहिए. मेरा गृह जनपद लखीमपुर खीरी है जहाँ रमज़ान के दौरान एक लड़की ने रोज़ा तोड़कर एक गैर मुस्लिम व्यक्ति को खून दिया, ऐसे कार्यों की खूब तारीफ और सराहना की जानी चाहिए.

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