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पीएम मोदी का अपमान नहीं सहेगा हिन्दुस्तान, माफी मांगें अखिलेश
कहावत है कि कसाई के श्राप से गाय नहीं मरा करतीं। इस कहावत की याद इसलिए आ रही है कि काशी विश्वनाथ की धरती पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने ऐसी बातें कह दीं जो हर देशवासी को नागवार गुजर रहा है। हालांकि अखिलेश यादव ने अपना वह बयान वापस ले लिया है जिसमें उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए मृत्यु की कामना की थी। अखिलेश ने कहा है कि वे पीएम मोदी की लंबी उम्र की कामना करते हैं। वास्तव में वे मोदी-योगी राज के अंत की बात कर रहे थे। सवाल यह है कि आखिर अखिलेश को अपना बयान क्यों वापस लेना पड़ा?
निश्चित रूप से अखिलेश यादव को जल्द यह बात समझ में आ गयी कि उत्तर प्रदेश की जनता इस बात को बर्दाश्त नहीं करेगी कि वे प्रधानमंत्री मोदी के लिए अशुभ बातें कहें। ये वही मोदी हैं जिन्होंने बनारस की तस्वीर बदलकर रख दी है। जो काशी विश्वनाथ मंदिर कुछ हजार स्क्वायर फीट में था, आज वह 5 लाख स्क्वायर फीट में फैल चुका है। गंगा की तमाम घाटें अब काशी विश्वनाथ मंदिर से आ जुड़ी हैं। यह श्रद्धालुओं के लिए ही नहीं, पर्यटन के नजरिए से भी बड़ी उपलब्धि है।
आम लोगों की मानें तो काशी का कायाकल्प हो चुका है। अब संकरी गलियों वाली काशी नहीं रही। सौन्दर्यीकरण ने काशी का नक्शा बदल दिया है। गंगा की सफाई को लेकर लगातार काम हुए हैं और हो रहे हैं। गंगा के किनारे बसे इस शहर की आयु और यश बढ़ गया है। यह सब करने में अगर किसी एक व्यक्ति का योगदान है तो वे हैं स्थानीय सांसद और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का।
खुद को गंगा का बेटा मानने वाले नरेंद्र मोदी ने जब तन-मन-धन काशी के विकास को समर्पित कर दिया है तो ऐसे में काशी आना उनके लिए गुनाह हो जाए, काशी आने पर पीएम मोदी के लिए मौत की चाहत का कोई सार्वजनिक इजहार करे, इस बात को काशीवासी ही नहीं यूपी का कोई भी नागरिक बर्दाश्त नहीं कर सकता। अखिलेश यादव के बयान सामने आने के बाद तत्काल ही अखिलेश की थू-थू होने लग गयी। ट्विटर पर अखिलेश ट्रोल होने लग गये। मीडिया में किरकिरी होने लग गयी। समाजवादी पार्टी के प्रवक्ताओं के लिए अपने नेता का बचाव करना मुश्किल हो गया। आखिरकार अखिलेश यादव को अपना बयान न सिर्फ वापस लेना पड़ा बल्कि उन्हें कहना पड़ा कि वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दीर्घायु होने की कामना करते हैं।
एक और बात जिसने अखिलेश को डरा रही थी वह है हिन्दू वोटों के नाराज़ होने का डर। वैसे ही अखिलेश यादव को 'मुल्ला मुलायम' की तोहमत झेलनी पड़ती है। बारंबार कहा जाता है कि वे एक ऐसे नेता के बेटे हैं जिन्होंने राम भक्तों पर गोलियां चलवाईं। ऐसे में काशी में कॉरिडोर का उद्घाटन करने के धार्मिक प्रयोजन से आए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए अखिलेश कोई बात कहें तो इसे हिन्दू भक्त या श्रद्धालु कैसे बर्दाश्त कर पाते। हिन्दुओं में तुरंत अखिलेश के लिए नफरत का भाव पैदा हो गया और उन्होंने इस भावना को ताड़ लिया।
सवाल यह है कि क्या अखिलेश के बयान बदलने भर से उस नुकसान की भरपाई हो जाएगी जो उनके बयान से हुआ है। यह चुनाव का समय है। चुनाव में जनता के मन में कौन सी तस्वीर कब उभर जाती है और स्थायी हो जाती है इसका पता किसी को नहीं होता। अखिलेश यादव ने इससे पहले भी जिन्ना की हिमायत कर हिन्दू भावना को भड़का रखा है। ऐसे में हिन्दू हित की बात करने वाले पीएम मोदी के लिए वे कुछ उल्टा बोलेंगे तो हिन्दू इसे बर्दाश्त नहीं कर सकते।
अखिलेश यादव चुनाव जीतने के लिए जातिगत समीकरणों का सियासी गणित बिठा रहे हैं। लेकिन, वे भूल रहे हैं कि हर जाति का व्यक्ति पहले हिन्दू है, बाद में कुछ और। हिन्दुओँ के खिलाफ बोलकर या हिन्दुओँ की धार्मिक भावनाएं भड़काकर अखिलेश चुनाव में बेहतर नतीजे पाएंगे- यह सोच निरा मूर्खता है।
अच्छा होता अगर अखिलेश यादव सीधे तौर पर देश की जनता से माफी मांग लेते। गलती तो अखिलेश ने मान ली है लेकिन वे माफी कब मांगेंगे- यह सवाल महत्वपूर्ण है। न सिर्फ उन्हें जनता से माफी मांगनी चाहिए बल्कि यह भरोसा भी दिलाना चाहिए कि भविष्य में वेकभी ऐसा नहीं करेंगे। लेकिन क्या वास्तव में अखिलेश ऐसा कर पाएंगे? अगर नहीं, तो वोटरों का दिल जीतने का सपना अखिलेश छोड़ दें।
(लेखक मनीष गुप्ता कानून और आर्थिक मामलों के जानकार होने के साथ-साथ राजनीतिक विश्लेषक हैं जो विभिन्न टीवी चैनलों पर होने वाले डिबेट का हिस्सा रहते हैं)