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चार रोटियाँ नही बल्कि चारों स्तम्भ है देश के, जो आज रेल की पटरियों पर पड़े सिसक रहें है!
कई राज्य की बीजेपी सरकारे प्रवासी मजदूरों के साथ बंधुआ मजदूर जैसे बर्ताव कर रही है. केंद्र की मोदी सरकार पल्ला झाड़कर बैठ गयी है कर्नाटक के मंगलूरू में शुक्रवार को प्रवासी मजदूरों ने अपने गृह राज्य वापस भेजे जाने के लिए प्रदर्शन किया।
कर्नाटक में फंसे कई मजदूरों के समक्ष भुखमरी की स्थिति उत्पन्न हो गई है। प्रवासी मजदूर कह रहे है की वे बिना नौकरी, पैसा और पर्याप्त भोजन के शहर में फंसे हुए हैं। अगर फौरन विशेष ट्रेनें नहीं चलाई गईं तो वे पैदल ही अपने गृह राज्य जाना चाहते हैं।
अधिकतर प्रवासी मजदूर बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल के रहने वाले हैं। ये मजदूर स्टेशन पर डटे रहे और पुलिस की अपील के बावजूद उन्होंने वहां से जाने से इनकार कर दिया।झारखंड के मंत्री मिथलेष कुमार ठाकुर कह रहे है कि मजदूरों के साथ जिस तरह से अवमानवीय व्यवहार किया जा रहा है वो गलत है।
इसके पहले खबर आयी थी कि कर्नाटक सरकार ने राज्य में मजदूरों की कमी रोकने के लिए ऐसी ट्रेनें चलाने से इनकार कर दिया जिससे मजदुर वापस जाना चाहते थे मंगलवार को 10 श्रमिक ट्रेनों की मांग को रद्द कर दिया. कहा जा रहा है कि यह कदम बिल्डर्स की मांग के बाद उठाया गया जिसमें कहा गया है कि प्रवासी अगर अपने घर चले गए तो निर्माण कार्यों में भारी दिक्कत आ सकती है. बिल्डरों द्वारा मंगलवार को यह अनुरोध करने के कुछ ही घंटों के भीतर टट्रेन चलाने का फैसला रद्द कर दिया।
3 मई के बाद से हजारो मजदूरों का पलायन शुरू हो गया है पैदल जाने वाले अधिकतर मजदूर राष्ट्रीय राजमार्गों या ट्रेन की पटरियों के सहारे ही आगे बढ़ रहे हैं। अब तक सेकड़ो मजदूर ऐसी यात्राओं में अपनी जान गँवा चुके है और ऐसी ही परिस्थिति रही तो हजारो मजदूर सड़को और पटरियों पर और मारे जाएंगे।