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विरासत के वारिस: क्या राहुल की मुलाकात बिलावल भुट्टो से होगी!

Shiv Kumar Mishra
4 May 2023 5:25 PM IST
विरासत के वारिस: क्या राहुल की मुलाकात बिलावल भुट्टो से होगी!
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भारत और पाकिस्तान के दोनों युवा नेताओं में कई समनाताएं है।

भारत और पाकिस्तान में दो राजनैतिक परिवार अपनी विरासत की राजनीति करते नजर आ रहे है। जहां भारत में पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू का परिवार तो पाकिस्तान में पूर्व प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति जुल्फीकार अली भुट्टो का परिवार है। इस परिवार में कई समानताएं भी है। जैसे कि अब जो दो युवराज है उनमें भारत में राहुल गांधी जिनके पिता की हत्या एक आतंकी संगठन लिट्टे के हमले में हुई जबकि पाकिस्तान के युवराज बिलावल भुट्टो की माँ की हत्या भी एक आतंकी हमले में हुई।

बीजेपी सांसद ने भी की थी बिलावल की तुलना राहुल गांधी से

कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी पिछले 4 महीने से भारत जोड़ों पदयात्रा पर निकले हुए हैं। उनकी ये पदयात्रा 5 सितंबर को कन्याकुमारी से शुरू हुई थी जो श्रीनगर में जाकर समाप्त होगी। उनकी इस पदयात्रा को लेकर देश में खुब सियासत हो रही है। भाजपा द्वारा कभी पदयात्रा के दौरान राहुल गांधी की तस्वीरों पर पर सवाल खड़ा किया जा रहा है। कभी भाजपा के नेता राहुल गांधी की दाढ़ी को लेकर उनकी तुलना आतंकवादी सदाम हुसैन से कर रहे हैं। इसी कड़ी में नई एंट्री बिहार भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल ने मारी है। उन्होंने राहुल गांधी कि तुलना पाकिस्तान के विदेश मंत्री बिलावल जरदारी भुट्टो से की है। उन्होंने दोनों को ही पप्पू बताया है।

'राहुल गांधी और बिलावल भुट्टो में समानता'

संजय जायसवाल ने ट्वीट कर राहुल गांधी पर तंज कसा है। उन्होंने कहा कि राहुल गांधी और बिलावल जरदारी भुट्टो मे दो समानताएं हैं । दोनों की पहचान अपने देश में पप्पू के रूप में है जो अपने परिवार के बदौलत यह मुकाम हासिल किए हैं । एक दुखद समानता यह भी है कि बिलावल भुट्टो विदेश मंत्री रहते हुए भी भारत के प्रधानमंत्री के बारे में बांग्लादेश की आजादी के रोज अनर्गल टिप्पणी करता है और उसके अगले दिन ही राहुल गांधी भारतीय सेना की वीरता के बारे में अनर्गल टिप्पणी करते हैं। उन्होंने कहा कि तवांग में जो कुछ भी हुआ वह सभी को पता है। भारत सरकार को अगर वाहवाही का शौक होता तो उसी दिन भारत में चर्चा का विषय चीनी सैनिकों का भागना होता ।


उसके बाद दोनों युवराज राजनीति के पप्पू बनकर रह गए है। राहुल गांधी और बिलावल भुट्टो की क्या उस हैसियत से भारत यात्रा के दौरान मुलाकात होगी कि नहीं इस पर अभी सवाल बना हुआ है। उधर पाकिस्तान से विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो की भारत यात्रा का विरोध भी किया जा रहा है। लेकिन विरोध करने वाले भी भारतीय ही है। जबकि उनके नाना की भारत में आज भी विरासत है।

कहाँ है विरासत

6 अक्टूबर, 1948 में बीएमसी ने 1,226 स्कावयर मीटर जमीन मुंबई के वर्ली में जुल्फीकार बिलावल भुट्टो को अलॉट की थी। जमीन के साथ उन्हें एक पुराना बंगला भी अलॉट हुआ था।1000 साल तक भारत के खिलाफ जंग का ऐलान करने वाले पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति जुल्फीकार अली भुट्टो की आज भी भारत में विरासत है। इस बात की जानकारी शायद बहुत कम लोगों को होगी। पाकिस्तान की सियासत से जुल्फीकार के खानदान का पुराना नाता है। खुद देश के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री रहे। उनकी बेटी बेनजीर भुट्टो ने पीएम पद पर रहकर देश की बागडोर संभाली। अब उनके नवासे बिलावल भुट्टो जरदारी पाकिस्तान के विदेश मंत्री हैं, जिनकी भारत यात्रा से देश में बवाल शुरू हो गया है।

1 रुपये सालाना पट्टे पर मिली थी जमीन

बिलावल गोवा में आज और कल एससीओ की बहुपक्षीय बैठक में शामिल होंगे। यहां से सिर्फ 500 किमी की दूरी पर मुंबई के वर्ली में उनके नाना से जुड़ी विरासत है, जो 1948 में बॉम्बे म्यूनिसिपल कोर्पोरेशन ने उन्हें अलॉट की थी। हालांकि, अब वहां हरे पर्दों और बैरिकेड के पीछे निर्माणधीन बिल्डिंग ही नजर आती है। इतने सालों में यह प्रॉपर्टी कई लोगों के हाथों में गई, लेकिन बिलावल के लिए यह इसलिए खास है क्योंकि सबसे पहले यह उनके नाना जुल्फीकार भुट्टो को ही अलॉट की गई थी।


जुल्फीकार अली भुट्टो काफी कम उम्र में ही मुंबई आ गए थे। वह मुंबई के ही कैथेड्रल एंड जॉन कोनोन स्कूल और सेंट जेवियर्स कॉलेज से पढ़े हैं। 6 अक्टूबर, 1948 में बीएमसी ने 1,226 स्कावयर मीटर जमीन मुंबई के वर्ली में उन्हें अलॉट की थी। जमीन के साथ उन्हें एक पुराना बंगला भी अलॉट हुआ था। इसके लिए बीएमसी उनसे 1 रुपये सालाना चार्ज करती थी और उन्हें संपत्ति पर स्थाई पट्टा प्राप्त करने के लिए 25,343 रुपये का भुगतान करना पड़ा था। सूत्रों ने बताया कि उस समय भी बॉम्बे टाउन प्लानिंग एक्ट लागू था। इसके तहत मालिकों को पट्टे पर भूमि पार्सल और संपत्तियां दी जाती थीं। पट्टे की अवधि अनुबंध समझौते पर निर्भर थी। अधिकारियों का कहना है कि इसका मकसद मुंबई में आवास और विकास को बढ़ावा देना था।

तब से अब तक भुट्टो को अलॉट की गई यह संपत्ति कई हाथों में जा चुकी है। 1963 में जुल्फीकार के बाद मोरारजी फैमिली ट्रस्ट ने यह जमीन खरीदी और साल 2005 में लोधा ग्रुप और खेनी एस्टेट प्राइवेट लिमिटेड ग्रुप को 12 करोड़ रुपये में बेच दी। इसके 5 साल बाद बिल्डिर ने इसके रिडेवलपमेंट के लिए बीएमसी से इजाजत मांगी, जिसके बदले उन्हें 84 लाख रुपये देने के लिए कहा गया। इसके खिलाफ बिल्डर ने बॉम्बे हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। उन्होंने दावा किया कि भुट्टो और बीएमसी के बीच हुए विलेख में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, जो वह इतनी भारी रकम वसूल रहे हैं। इस पर कोर्ट ने बिल्डर के पक्ष में फैसला दिया, जिसके बाद बीएमसी सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया। फिलहाल इस जमीन पर हरे पर्दे और बैरिकेड्स लगे हैं, जो इस ओर इशारा करते हैं कि बिल्डिंग में रिडेवलपमेंट और कंस्ट्रक्शन चल रहा है। हालांकि, यहां के स्थानीय लोग शायद इस प्रॉपर्टी की विरासत से अनजान हैं।

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