
नोबेल शांति विजेता श्री कैलाश सत्यार्थी के प्रयासों का परिणाम है अंतरराष्ट्रीय बाल श्रम विरोधी दिवस

लेख- गोविंद खनाल
आज 12 जून है। अंतरराष्ट्रीय बाल श्रम विरोधी दिवस। यह दिन मेरे जैसे लाखों लोगों के लिए खास मायने रखता है, क्योंकि हम भी कभी बाल मजदूर थे। यह एक ऐसा दिन है जो हममें आजादी का एहसास भरता है। इस ऐतिहासिक दिन की अहमियत मेरे लिए इसलिए खास है क्योंकि इस दिन के बनने की कहानी मेरी देखी-सुनी है।
मैं 6 जून 1998 को याद कर रहा हूं। तब मेरी उम्र 14 साल की थी। हम सैकड़ों बच्चों ने जब 'हर बच्चे का है अधिकार रोटी, खेल, पढ़ाई प्यार...', 'बच्चों के हाथों में औजार नहीं, किताबें दो...' 'चाइल्ड लेबर... डाउन... डाउन', 'बाल मजदूरी बंद करो... बंद करो...' के गगनभेदी नारे लगाते हुए अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) के मुख्यालय जेनेवा में प्रवेश किया। आईएलओ के प्रतिनिधियों ने तालियों की करतल ध्वनि से हमारा भव्य स्वागत किया। तालियों की वह गूंज सभागार में हमें तब तक सुनाई देती रही जब तक कि हम वहां से नहीं हटे। तालियों की वह गूंज इस बात की प्रतीक थी कि हम अपने मिशन में सफल रहें।
मेरे जैसे 600 मुक्त बाल मजदूर नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित जाने-माने बाल अधिकार कार्यकर्ता श्री कैलाश सत्यार्थी के नेतृत्व में आईएलओ के वार्षिक अधिवेशन में पहुंचे थे। गौरतलब है कि श्री सत्यार्थी ने अपनी दो मांगों के लिए ग्लोबल मार्च अगेंस्ट चाइल्ड लेबर जैसी विश्वव्यापी जन-जागरुकता यात्रा का आयोजन किया था। पहली मांग थी बाल मजदूरी के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय कानून बनाने की और दूसरी मांग थी एक दिन बाल श्रमिकों के नाम करने की।
विश्व इतिहास गवाह है कि बाल मजदूरी के खिलाफ उससे पहले इतनी बड़ी जन-जागरुकता यात्रा का आयोजन नहीं हुआ था। 17 जनवरी 1998 को फिलिपींस की राजधानी मनीला से इस ऐतिहासिक जन-जागरुकता यात्रा का आगाज किया गया था। इस विश्वव्यापी जन-जागरुकता यात्रा की मनीला के अलावा तीन अन्य जगहों से भी समानांतर शुरुआत की गई थी, जो बीच में मुख्य यात्रा में मिलते जाती थीं। मैं मनीला से शुरू हुई मुख्य यात्रा का हिस्सा था और 80 हजार किलोमीटर की दूरी 103 देशों से गुजरते हुए तय की थी। आखिरकार 6 जून 1998 को हमारा ग्लोबल मार्च अगेंस्ट चाइल्ड लेबर आईएलओ के जेनेवा स्थित मुख्यालय पर जाकर खत्म हुई थी।
यह विश्वव्यापी जन-जागरुकता यात्रा लगभग पांच महीने चली। इसमें डेढ करोड़ लोगों ने भाग लिया और बाल श्रम के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय कानून बनाने की पुरजोर वकालत की। इसमें 100 से अधिक देशों के राष्ट्रपतियों, प्रधानमंत्रियों, वैश्विक नेताओं और राजा-रानियों ने शिरकत की। इससे हम अनुमान लगा सकते हैं कि इस जन-जागरुकता यात्रा को कितना जन समर्थन और सम्मान मिला होगा। यात्रा को मिला वह जन समर्थन ही था जिसने संयुक्त राष्ट्र संघ और आईएलओ पर इतना दबाव बनाया कि वे कानून बनाने को बाध्य हुए।
ग्लोबल मार्च अगेंस्ट चाइल्ड लेबर के जरिए मैं इतने देशों से गुजरा कि उनमें से अधिकांश देशों का मैं नाम भी आज भूल गया हूं। हम गांवों, कस्बों और शहरों की गलियों में घंटों पैदल मार्च करते। नारे लगाते और नुक्कड नाटक करते। यह जन-जागरुकता यात्रा एक ओर यदि कई मायनों में सुखदाई थी, तो वहीं दुखदाई भी कम नहीं थी। कई दिन और रात हमें भूखे भी रहने पड़ते। लेकिन जेहन में एक महान स्वप्न तैर रहा था कि दुनिया के बच्चों को शोषणमुक्त करना है। लोगों का हमें अथाह प्यार और समर्थन मिल रहा था। मैंने यूरोप और पश्चिमी देशों की सड़कों पर जन सैलाब उमड़ते देखा। सड़कों पर पैदल चलते हुए अक्सर हमारे पांवों में छाले पड़ जाते। उसी दौरान एक दिन मेरे छालों पर श्री सत्यार्थी की नजर पड़ी। उन्होंने मलहम लगाते हुए कहा था, "बेटा, ये छाले इतिहास लिखने जा रहे हैं।" मैं बता नहीं सकता कि उसका सुखद एहसास मेरे जीवन में आज भी कितना है। जिस बाल श्रम विरोधी विश्व यात्रा के हम यात्री थे, उसी ने यह कमाल किया कि आज पूरी दुनिया में अंतरराष्ट्रीय बाल श्रम विरोधी दिवस मनाया जा रहा है।
ग्लोबल मार्च अगेंस्ट चाइल्ड लेबर में हम अलग-अलग देशों के 35 बच्चे साथ-साथ चल रहे थे। अब वे आजाद हैं लेकिन कभी वे भी मेरी तरह बाल मजदूरी, भीखमंगी और गुलामी करते थे। मेरी कहानी भी दूसरे शोषण के शिकार बच्चों जैसी ही है। मैं नेपाल का रहने वाला हूं। जब मेरे पिता बहुत बीमार रहने लगे, तब मैं अपना और अपने परिवार के दो जून की रोटी के लिए 11 साल की उम्र में घरेलू नौकर बन गया। घर का मालिक मुझे बहुत मारता-पीटता और प्रताडि़त करता। एक दिन मैं वहां से भाग निकला। भागते-भागते भारत-नेपाल बॉर्डर पहुंचा और वहां एक दुकान में काम करने लगा। वह मुझसे सामान की तस्करी करवाता। तस्करी में सामान को भारत भिजवाता। मैंने जब होश संभाला, तब मुझे पता चला कि मैं तस्करी के सामान का कैरियर था। एक दिन की बात है। मैं जिस दुकान पर काम करता था, ठीक उसके सामने श्री सत्यार्थी दक्षिण एशियाई बाल दासता विरोधी यात्रा की एक जनसभा में भाषण दे रहे थे। उनकी बातों ने मुझे प्रभावित किया। मुझे दिल की गहराइयों से यह अहसास हुआ कि ये तो मेरी ही बात कर रहे हैं। देखते ही देखते मैंने नौकरी छोड़ दी और उनके साथ उस यात्रा में शामिल हो गया। बाद में मैं बाल श्रम विरोधी विश्व यात्रा का हिस्सा बना।
श्री सत्यार्थी के नेतृत्व में ग्लोबल मार्च अगेंस्ट चाइल्ड लेबर जेनेवा पहुंची। उस दिन वहां संयुक्त राष्ट्र संघ भवन में जिसे स्थानीय भाषा में 'पैले दा नेशियान' के नाम से जाना जाता है, के मुख्य सभागार में आईएलओ का वार्षिक अधिवेशन चल रहा था। अधिवेशन में 150 देशों के श्रम मंत्री, विभिन्न सरकारों के वरिष्ठ पदाधिकारी, उद्योग और मजदूर संगठनों के प्रतिनिधि सहित करीब 2000 लोग भाग ले रहे थे। सभागार में चर्चा चल रही थी, लेकिन बाहर जबरदस्त हलचल थी। मुझे अच्छी तरह याद है आईएलओ के मुख्य द्वार पर उसके तत्कालीन प्रमुख श्री हेनसन ने हम बच्चों का भव्य स्वागत किया था।
आईएलओ ने गुलामी के शिकार रहे हम बच्चों के लिए अपने दरवाजे खोल दिए थे। जैसे ही हमने सभागार में प्रवेश किया दुनिया की नीतियों और निर्णयों को प्रभावित करने वाले सैकड़ों विशिष्ट लोगों ने खड़े होकर तालियों की गड़गड़ाहट से हमारा पुरजोर स्वागत और सम्मान किया। आईएलओ ने अपनी शानदार परंपरा और गरिमा को तजकर पहली बार एक गैर सरकारी व्यक्ति श्री कैलाश सत्यार्थी और दो पूर्व बाल मजदूरों को अपने वार्षिक अधिवेशन को सम्बोधित करने के लिए बुलाया। आपको जानकर यह आश्चर्य होगा कि उन दो बच्चों में से एक बच्चा मैं था। श्री सत्यार्थी ने मौके पर अपनी उन दो मांगों को प्रस्तुत किया जिनके लिए उन्होंने ग्लोबल मार्च अगेंस्ट चाइल्ड लेबर जैसी विश्वव्यापी जन-जागरुकता यात्रा का आयोजन किया था। श्री सत्यार्थी ने पहली मांग के रूप में बाल श्रम के खिलाफ एक अंतरराष्ट्रीय कानून बनाने की बात की। दूसरी मांग के रूप में उन्होंने साल में एक दिन उन बच्चों को समर्पित करने की बात की जो बाल मजदूरी और गुलामी के शिकार होते हैं। यह मांग उन्होंने इसलिए रखी ताकि उस पूरे दिन पूरी दुनिया में बच्चों के अधिकारों और भविष्य पर चर्चा हो।
ग्लोबल मार्च अगेंस्ट चाइल्ड लेबर का इतना दूरगामी और जबरदस्त असर हुआ कि एक साल बाद ही 17 जून 1999 को आईएलओ ने बाल श्रम और बाल दासता के खिलाफ सर्वसम्मति से कनवेंशन-182 कानून पारित कर दिया। आईएलओ कनवेंशन-182 कानून बाल दासता और बंधुआ बाल मजदूरी पर रोक लगाते हुए बच्चों को बाल मजदूर बनाने, बच्चों से भीखमंगी करवाने, पोर्नोग्राफी उद्योग में उन्हें शामिल करने पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाता है। इस अंतरराष्ट्रीय संधि पर भारत सहित दुनिया के सभी 187 देश हस्ताक्षर कर चुके हैं। जुलाई, 2020 में दक्षिण प्रशांत महासागर के एक द्वीपसमूह टोंगा ने 187वें सदस्य देश के रूप में आईएलओ कन्वेंशन-182 का समर्थन किया है। टोंगा की पुष्टि के बाद कन्वेंशन-182 आईएलओ के इतिहास में वैश्विक स्तर पर सबसे अधिक समर्थन वाला कन्वेंशन हो गया है। संयुक्त राष्ट्र संघ ने श्री सत्यार्थी की दूसरी मांग भी सन 2002 में मान ली और 12 जून को अंतरराष्ट्रीय बाल श्रम विरोधी दिवस के रूप में मनाने की घोषणा कर दी।
इस दिन बाल मजदूरी को समाप्त करने हेतु नीतियों और कानूनों की घोषणा की जाती है। बाल मजदूरों के पुनर्वास, बजट और अनुदान का ऐलान किया जाता है। जिसका सुखद परिणाम कोरोना महामारी से पहले तक देखने को मिला। 1998 में जब ग्लोबल मार्च अगेंस्ट चाइल्ड लेबर को शुरू किया गया था, तब दुनिया में तकरीबन 26 करोड़ बाल मजदूर थे। वह घटकर अब में करीब 16 रह गई। लेकिन 2020 में जब से कोविड की विनाशकारी विपदा शुरू हुई है, बाल मजदूरों की संख्या में लाखों की वृद्धि का अनुमान लगाया जा रहा है। दो महामारियों के दौरान महीनों तक लॉकडाउन लगा रहा और घर में कमाने वाले लोग बेरोजगार हो गए। माता-पिता के बेरोजगार होने के बाद परिवार का गुजारा चलाने के लिए बच्चों को जबरिया बाल मजदूरी और ट्रैफिकिंग के दलदल में धकेला गया। जिससे बाल मजदूरों की संख्या में लाखों की वृद्धि का अनुमान लगाया जा रहा है।
इस साल अंतरराष्ट्रीय बाल श्रम विरोधी दिवस को मनाना तभी सार्थक होगा जब कोविड में सिसक रहे बचपन की सुरक्षा को सुनिश्चित करने को विश्व समुदाय एकजुट हो जाए। श्री कैलाश सत्यार्थी के हाल ही में डब्ल्यूएचओ की 74वीं वर्ल्ड हेल्थ असेम्बली में की गई उस मांग पर सभी देशों को मिलकर काम करने की जरूरत है, जिसमें उन्होंने सभी बच्चों की शिक्षा, स्वास्थ्य और सुरक्षा सुनिश्चित करने की मांग की थी।
सामाजिक और आर्थिक रूप से कमजोर और हाशिए के बच्चों को समुचित बाल चिकित्सा सुविधाओं और सामाजिक सुरक्षा से लैस करने की बात की है। अंतरराष्ट्रीय बाल श्रम विरोधी दिवस को मनाना तभी सार्थक होगा, जब सभी बच्चों के चेहरों पर मुस्कान हो। इसलिए इस साल हम यह शपथ लें कि हम मिल-जुलकर उन बच्चों के दुख हरेंगे, जिन पर गुलामी के साथ-साथ कोविड का भी साया मंडरा रहा है।
(लेखक बाल अधिकार कार्यकर्ता हैं)