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क्या राहुल गांधी देश को अस्थिर करने वालों के साथ हैं?
लेखक- महेंद्र पांडेय
दुर्भाग्य से देश में कुछ ऐसी पार्टियां भी रही हैं जिनका राजनीतिक एजेंडा नई दिल्ली के बजाय विदेशी राजधानियों में तय होता था। लेकिन अपनी इसी राजनीति के कारण आज ये लगभग अप्रासंगिक हो चुकी हैं। बरसों तक देश में ऐसी सरकारें भी रही हैं जो विदेशी दबाव के आगे आसानी से घुटने टेक देती थीं। इनके लिए राष्ट्रीय हितों से कहीं अधिक महत्वपूर्ण विदेशी ताकतों के हित होते थे और इसीलिए ये विदेशी ताकतों की प्रिय थीं। लेकिन 2014 में नरेंद्र मोदी जब भारत के प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि भारत न किसी को आंख दिखाएगा, न किसी के आगे आंख झुकाएगा, भारत आंख से आंख मिला कर बात करेगा। तब से यही भारतीय नीति का मूल मंत्र है।
भारत, एक विश्वगुरु बनने की दिशा में तेजी से कदम बढ़ा रहा है, जो उसकी तेजी से बढ़ती आर्थिक और सैन्य ताकत का परिणाम है। परंतु यह कुछ ताकतों को नागवार गुजर रहा है और वे नरेंद्र मोदी सरकार को अस्थिर करने के हरसंभव प्रयास कर रही हैं। ये ताकतें चाहती हैं कि मोदी और भाजपा सरकार की जगह कोई ऐसी सरकार आए जो भारत में उनके हितों की सुरक्षा को प्राथमिकता दे। दुर्भाग्य से देश में एक ऐसी पार्टी के एक ऐसे राजनेता हैं जो खुलेआम इन प्रयासों में उनका साथ दे रहे हैं क्योंकि उन्होंने वोट के सहारे सत्ता में आने की उम्मीद खो दी है। उन्हें लगता है कि अगर अराजकता और अव्यवस्था फैला दी जाए और संस्थाओं की छवि खत्म कर दी जाए तो शायद उनके लिए कोई उम्मीद बन सकती है। लिहाजा वे उनके इशारे पर देश में अव्यवस्था और अराजकता फैलाने पर आमादा हैं।
ये राजनीतिक पार्टी कांग्रेस और इसके नेता राहुल गांधी हैं। विगत कई वर्षों से वे विदेशी धरती पर भारत और मोदी सरकार के खिलाफ जहर उगलते रहे हैं और उन तमाम लोगों से भेंट मुलाकात करते रहे हैं जो खुले तौर पर भारत विरोधी हैं। राहुल गांधी और कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी को हमेशा से लगता है कि सत्तापोषित वफादारों का उन्होंने जो इकोसिस्टम बनाया है, वह किसी विपक्षी सरकार को ज्यादा दिन नहीं टिकने देगा। और इकोसिस्टम दादरी में अखलाक की हत्या और चर्चों पर कथित हमले के बाद तुरंत हरकत में आया और आनन फानन में कथित असहिष्णुता के नाम पर अवार्ड वापसी आंदोलन शुरू किया गया। पूरी दुनिया में भारत की ऐसी तस्वीर पेश की गई जैसे यह देश असुरक्षित हो गया है। दिवंगत अरुण जेटली ने इसे ‘कृत्रिम असंतोष’ के निर्माण की संज्ञा दी। लेकिन बिहार और दिल्ली के विधानसभा चुनावों में भाजपा की हार से उत्साहित कांग्रेस को लगा कि यह जीत कृत्रिम असंतोष के निर्माण का नतीजा है और यह प्रयोग आगे भी दोहराया जा सकता है।
यह प्रयोग आगे शाहीन बाग और किसान आंदोलन के रूप में सामने आया और देश ने देखा कि किस तरह इन फर्जी किसानों ने पूरी कानून व्यवस्था को बंधक बनाए रखा। 26 जनवरी को लाल किले पर बेहद उकसाने वाली घटना हुई लेकिन मोदी सरकार ने संयम बनाए रखा। शाहीन बाग एक ऐसा प्रयोग था जिसकी परिणिति तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की भारत यात्रा के दौरान दिल्ली में दंगों के रूप में हुई।
इन प्रयोगों के दौरान देखा गया कि आंदोलन के नाम पर कैसे पानी की तरह पैसे बहाए जा रहे हैं, कैसे अंतरराष्ट्रीय मीडिया में भारत के खिलाफ जहरीला दुष्प्रचार चल रहा है। गौर करने वाली बात यह है कि अंतरराष्ट्रीय मीडिया के भारत में जितने भी संवाददाता हैं, उनमें से ज्यादातर कांग्रेसी नेताओं के करीबी और रिश्तेदार हैं। कभी सहिष्णुता, नागरिकता, धार्मिक स्वतंत्रता, कभी जाति तो कभी संविधान के नाम पर यह सिलसिला जारी है और थमने वाला नहीं है। लेकिन इसकी ज्यादा देर तक अनदेखी भी ठीक नहीं है क्योंकि हम देख चुके हैं कि किस तरह कृत्रिम असंतोष का निर्माण कर दुनिया में कई लोकप्रिय सरकारें गिराई गई हैं। इनके काम करने का तरीका यह है कि सतत दुष्प्रचार से चुनाव आयोग, न्यायपालिका, सेना, पुलिस और तमाम कानून प्रवर्तन एजेंसियों और संस्थाओं की छवि को दागदार कर दिया जाए ताकि लोगों का हर चीज से भरोसा उठ जाए। इसके बाद किसी न किसी तरह अव्यवस्था और अराजकता फैला कर निर्वाचित नेता को इसके लिए जिम्मेदार ठहरा दिया जाए।
यह सारा खेल लोकतंत्र और संविधान बचाने के ही नाम पर होता है और कांग्रेस पूरी तरह इस अनैतिक कार्य में लिप्त है। हरियाणा और कश्मीर में विधानसभा चुनाव के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि भारत को बांटने के लिए अंतरराष्ट्रीय साजिशें हो रही हैं और कांग्रेस के चट्टे-बट्टे इसमें लिप्त हैं तो वे मजबूरन देश को इस खतरे के खिलाफ आगाह कर रहे थे। देश का बच्चा-बच्चा जानता है कि किस तरह मोदी के नेतृत्व में भारत ने वैश्विक मंचों पर अपनी स्थिति को मजबूत किया है। लेकिन, जैसे-जैसे भारत का प्रभाव बढ़ता है, वैसा ही इसके खिलाफ साजिशों का खतरा भी बढ़ जाता है। ये अंतरराष्ट्रीय शक्तियां आज और सक्रिय हैं क्योंकि इन्हें भारत के बढ़ते कद से अपने लिए खतरा दिखता है। खासकर तब, जब भारत अपने स्वदेशी विकास के मॉडल पर जोर देता है और वैश्विक मंचों पर अपनी स्वतंत्र आवाज बुलंद करता है। कुछ विदेशी शक्तियों को यह भले ही नहीं पसंद आए और वे दुष्प्रचार को कितना भी हवा दे लें लेकिन संविधान सुरक्षित है और विदेशी शक्तियों के सहयोग से सत्ता हासिल करने का सपना पूरा होना मुश्किल है। हरियाणा विधानसभा चुनाव के नतीजे इसके सबूत हैं।
यह देखना दुखद है कि देश पर सबसे लंबे समय तक शासन करने वाली पार्टी आज सत्ता खोने की हताशा में अंतरराष्ट्रीय साजिशों और विभाजनकारी राजनीति के हाथों का खिलौना बनी हुई है। कांग्रेस फिफ्थ कॉलम की तरह हो चुकी है जिसका काम समाज में धार्मिक, जातीय या सांस्कृतिक विभाजन को बढ़ावा देना रह गया है। इसका परिणाम सामाजिक एकता और शांति के टूटने के रूप में होता है, जो समाज में अस्थिरता और हिंसा को जन्म दे सकता है। इस राजनीति और इन मंसूबों को असफल करने के लिए जरूरी है कि हर मोर्चे पर सतर्कता बरती जाए और संस्थाओं को दागदार करने के प्रयासों को नाकाम किया जाए।
(लेखक भाजपा के वरिष्ठ नेता हैं)