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इसरो 50 सालः भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन और पंडित नेहरु
इंडियन स्पेश रिसर्च ऑरगेनाइजेशन के पचास साल 15 अगस्त को पूरे हो रहे हैं। अपने पचास साल के इतिहास में इसरो ने कई उतार-चढ़ाव देखते हुए अभूतपूर्व सफलता हासिल की है। कम बजट में दुनिया के दूसरे मुल्कों के अंतरिक्ष विज्ञान को चुनौती देते हुए इसरो ने अभूतपूर्व सफलता हासिल की।
आज दुनिया के कई मुल्क अपने शांतिपूर्व अंतरिक्ष अभियान और जरूरतों के लिए इसरो पर निर्भर हैं। दुनिया के कई मुल्क इसरो के साथ कॉमर्शियल गठजोड़ कर रहे हैं। इसरो उनकी जरूरतों को पूरा कर रहा है। शांतिपूर्ण अभियान के जरिए ही इसरो करोड़ों डॉलर की आय भी कर रहा है। किसी जमाने में दुनिया के दूसरे मुल्कों से अंतरिक्ष विज्ञान की टेक्नलॉजी के लिए मोहताज इस भारत को इसरो ने अंतरिक्ष विज्ञान के टेक्नलॉजी में आत्मनिर्भर बना दिया।
विज्ञान से खासा प्रेम था पंडित नेहरू को
पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय पंडित जवाहर लाल नेहरू के विज्ञान के प्रति खास प्रेम ने भारत को अंतरिक्ष विज्ञान में आज सशक्त बना दिया है। स्वतंत्रता के बाद ही पंडित जवाहर नेहरू के निर्देश पर भारत ने अंतरिक्ष विज्ञान की तरफ कदम बढ़ाना शुरू कर दिया था।
आजादी के संघर्ष के दौरान पश्चिमी देशों और सोवियत संघ की यात्रा के दौरान पंडित नेहरू ने विज्ञान के क्षेत्र में हो रहे कामों को ध्यान से देखा था। आजाद भारत में भी विज्ञान उनकी प्राथमिकता में था। हालांकि इसरो की स्थापना तो 15 अगस्त 1969 को हुई थी। लेकिन आधुनिक भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान की नींव पंडित जवाहर लाल नेहरू ने अपने जीते जी डाली थी।
एक लंबे सफर के बाद इसरो ने आज दुनिया के तमाम उन मुल्कों में भारत को स्थान दिलवाया है, जो अपने अंतरिक्ष विज्ञान को लेकर गर्व करते हैं। इसमें अमेरिका, चीन, फ्रांस, ब्रिटेन, रूस आदि मुल्क शामिल हैं। यही नहीं इसरो ने कई जगहों पर पश्चिम देशों के अंतरीक्ष विज्ञान को मात दे दी।
मसलन मंगलयान को इसरो ने पहले ही प्रयास में मंगल पर पहुंचाया। जबकि अमेरिका, को यह सफलता पांचवी बार में मिली थी। सोवियत संघ को 8वीं बार में मिली थी। दिलचस्प बात यह थी कि भारत का मंगल मिशन अमेरिका और रूस के मुकाबले कई गुणा सस्ता था। भारत ने मंगल मिशन पर 450 करोड़ रुपये खर्च किए थे।
एक साथ 104 सैटेलाइट लॉन्च किए
2017 में इसरो ने एक रिकॉर्ड बनाया। इसरो ने एक साथ 104 सैटेलाइट्स लॉन्च किए। यह भारत ही नहीं विश्व के लिए महत्वपूर्ण था। इसरो ने इतिहास रचा था क्योंकि अंतरिक्ष कार्यक्रम में भारत ने रूस का रिकॉर्ड तोड़ दिया था। इससे पहले एक साथ किसी अभियान में सबसे ज्यादा उपग्रह भेजने का रिकॉर्ड रूस के पास था। रूस ने यह काम 2014 में किया था जब एक साथ 37 उपग्रह भेजे गए थे।
दिलचस्प बात यह थी कि भारत ने दूसरे देशों के सैटेलाइट्स भी भेजे थे। भारत के अपने सैटेलाइट इस अभियान में सिर्फ 3 थे। जबकि दूसरे मुल्कों जिसमें इजराइल, कजाकिस्तान, नीदरलैंड, स्विट्जरलैंड और अमेरिका के थे।
इनकी संख्या 101 थी। इस अभियान ने साफ किया कि भारत अंतरिक्ष विज्ञान के कॉमर्शियल इस्तेमाल में सक्षम है। भारत ने इस अभियान से साबित किया कि सैटेलाइट प्रक्षेपण के बाजार में अभारत की अब महत्वपूर्ण हिस्सेदारी है।
गौरतलब है कि इससे पहले भी भारत ने 21 देशों के 79 सैटेलाइट को अंतरिक्ष में प्रक्षेपित किया था। इसमें गूगल और एयरबस के सैटेलाइट भी शामिल थे।
सस्ता प्रक्षेपण, चीन से मुकाबला
इसरो ने प्रक्षेपण के बाजार में अपनी हिस्सेदारी इसलिए मजबूत की है कि इसरो दुनिया के बाकी मुल्कों के मुकाबले सस्ता प्रक्षेपण उपलब्ध करवाता है। इसका एक मुख्य कारण इसरो द्वारा सस्ता श्रम उपलब्ध करवाना है। हालांकि भारत को इस दिशा में अब चीन से चुनौती मिल रही है, क्योंकि चीन भी अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में सस्ती सुविधा उपलब्ध करवा रहा है।
भारत अंतरिक्ष विज्ञान में चीन का मुकाबला तभी कर पाएगा जब-जब बड़े सैटेलाइट को प्रक्षेपित करेगा, क्योंकि अभी भी अंतरिक्ष के कमर्शियल बाजार में छोटे सैटेलाइटों की हिस्सेदारी कम है, बड़ों की ज्यादा है। वहीं चीन अपने अंतरिक्ष विज्ञान पर बजट भारत से ज्यादा रखे हुए है।
दरअसल, अगर भारत और चीन की तुलना करें तो इस समय चीन एक साल में 20 सैटेलाइट अभियान लॉन्च करने की क्षमता रखता है, जबकि भारत 5 सैटेलाइट अभियान लॉन्च करने की क्षमता रखता है। हालांकि इसरो अपने अभियान लॉन्च करने की क्षमता को प्रतिवर्ष 12 तक ले जाने की योजना बना रहा है। इसमें जल्द ही इसरो को सफलता भी मिलने की उम्मीद है। हालांकि भारत अभी भी हल्के औऱ छोटे विदेशी सैटेलाइट भेज रहा है, जिससे कमाई कम है।