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जी हां, दंगाइयों के जमावड़े में एक बहादुर ऐसा था, जिसने ताजिंदगी बदनामी के धब्बे को स्वीकारते हुए नीलकंठ बनना स्वीकार किया। उस तस्वीर में भारत का प्रतिनिधि बनना स्वीकार किया, जब हिंदुस्तान की सर्वसशक्तिमान सरकार चंद आतंकियों के सामने सरेंडर कर रही थी।
नई सहस्त्राब्दी करवट बदलने को थी, और जसवंत सिंह घर मे नए मेहमान का स्वागत कर रहे थे। पोती हुई थी, परम्परानुसार उसका मुंह मीठा कराने पहुंचे भारत के विदेशमंत्री जसवंत को खबर मिली- यात्रियों से भरा हवाई जहाज हाईजैक हो गया है।
IC-814 अमृतसर छोड़ते ही भारत के हाथों से निकल गया था। एक घण्टे तक सांप सूंघी हुई सरकार अब लकीर पीट रही थी। जहाज निकला तो लाहौर पहुंचा, मगर उतरने की इजाजत न मिली। दुबई की ओर मुड़ा। फ्यूल खत्म हो रहा था, भारत ने किसी तरह दुबई से इजाजत ली। दुबई के दूसरे, कम व्यस्त एयरपोर्ट पर रात को जहाज उतरा। अलग खड़ा रहा।
कुछ बरस पूर्व भारत गणतंत्र दिवस के मुख्य अतिथि, और प्रधानसेवक के अभिन्न मित्र, शहजादे MBZ ने दुबई स्थित भारतीय अधिकारियों को न नेगोशिएट करने की इजाजत दी, न ऑपरेशन करने की। अलबत्ता CNN को इजाजत मिली, जो रातभर भारत की उतरती इज्जत लाइव दिखाता रहा। एक तिहाई यात्री और एक लाश, फ्यूल के बदले उतार दी गयी। अलसुबह जहाज ने दुबई छोड़ा, वह कन्धार पहुंच गया।
दिशाहीन नेतृत्व, दुबई की फुटेज और मिडीया की सनसनी से फैले पैनिक के बीच जसवंत की प्रेस कॉन्फ्रेंस में यात्रियों के रिश्तेदार घुस गए। ख्वाबों में बाबर से लड़ने वाली जनता, असलियत में तालिबान और 5 हाईजैकर्स के सामने भारत के घुटने टेक जाने में कोई बुराई नही देख रही थी। आज गोलियों से मा भारती की आरती करने का हामीदार मध्यवर्ग तब हांफते हुए गुहार लगा रहा था - " लेट देम टेक व्हाट दे वांट" । मामला उनके घरों का जो था।
तो नेगोशियशन चले। पाकिस्तान की शह पर पाकिस्तान के हाईजैकर्स ने, कन्धार की जमीन से, भारत की जेलों में बंद 30 आतंकी मांगे। अंततः तीन पर सौदा हुआ। पाकिस्तानी मौलाना मसूद अजहर, जो कश्मीर में आपस मे झगड़ रही तंजीमो के बीच सुलह कराने भेजा गया था। उसका भाई खुद हाईजैकर था, सारा मामला उसके लिए ही बना था। उमर शेख, जो इंटनेशनल टेरेरिस्ट फिगर था। पाकिस्तानी एस्टेब्लिशमेंट में उसके परिवार के ऊंचे सम्पर्क थे।
दो पाकिस्तानी के बाद तीसरा एक कश्मीरी नाम लेना मजबूरी थी। पाकिस्तानी हैंडलर्स ने मुश्ताक अहमद जरगर को फाइनल किया। यह वही आदमी था, जो पहले भी रुबाइया सईद के बदले एक बार छोड़ा जा चुका था। तो तीन आतंकी और भारत की इज्जत एक हवाई जहाज में लादकर कन्धार में सरेंडर की जानी थी। यह अप्रिय काम करने वाला, जीवन भर के लिए अपमानित होने वाला था।
फैसला जाहिर है, पूरी कैबिनेट का था। मगर शर्म तारी थी। आगे चलकर लौह पुरुष, उपप्रधानमंत्री, और नम्बर 2 रहे आडवाणी भी इस फैसले की जिम्मेदारी से ही पल्ला झाड़ लेने वाले थे। इस वक्त जहर को पीने, राजस्थान का यह वीर आगे आया। दो जोड़ी कोट,एक गीता और एक रुद्राक्ष बैग में डालकर वह कन्धार पहुंचे। उन शर्मनाक तस्वीरों का हिस्सा बने। अपने किये कराए का जिम्मा औरो पर डालने वालो के दल में, यह बहादुरी रेयर है।
31 दिसम्बर को, सात दिनों बाद वह फ्लाइट अपने गंतव्य पालम एयरपोर्ट पर लौटी। जसवंत उसी जहाज में आये। सबसे पहले उतरे, और सीढियों के नीचे तब तक खड़े रहे, जब तक आखरी यात्री ने सुरक्षित भारत भूमि पर कदम न रख दिये।
जसवंत उस ब्रीड के नेता है, जिन्होंने अटल युग मे अटल को मजबूती दी। यशवंत और जसवंत ने विदेश और वित्त बारी बारी सम्भाला। घटिया धार्मिक राजनीति से दूर, जिम्मेदार, स्वत्रन्त्र चिंतक, डाउन टू अर्थ, सीरियस एडमिनिस्ट्रेटर थे।कारगिल, ऑपरेशन पराक्रम, बम, बस, अमेरिकी प्रतिबन्ध, संसद पर आतंकी हमले और IC-814 के दौर में यह कुर्सियां कांटो से भरी थी। बदनामियाँ इनके खाते में गयी, उपलब्धि अटल के..।
इसलिए ये नीलकंठ हैं।
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जसवंत के पुत्र मानवेन्द्र ने एक आर्टिकल में लिखा- 2016-17 के दौरान वे पिता के साथ NDTV की एक बहस देख रहे थे। इस दौरान अपहृत जहाज में शामिल एक महिला, स्टूडियो में दर्शकों के बीच थी। बार बार बहस में बड़ी मजबूत बातें कर रही थी। उसका कहना था कि देश ने आतंकियों को छोड़कर गलत किया। भली अंग्रेजी में उसने तालियां लूटीं।
टीवी पर बहस देखते हुए जसवंत ने मानवेन्द्र को बताया- यह लेडी उस जहाज में सबसे ज्यादा हिस्टिरिकल (बदहवास) थी। जब मैं जहाज पर पहुचा तो यह मेरे सीने से आकर लग गयी और कहा..
आपने इतनी देर क्यो लगा दी??