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अमित शाह बोले, हम पीओके और अक्साई चीन को भी अपना मानते हैं, इसके लिए जान दे देंगे
नई दिल्ली : गृह मंत्री अमित शाह ने मंगलवार को लोकसभा में जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने का प्रस्ताव पेश किया। इस पर विपक्ष ने हंगामा किया। कांग्रेस नेता अधीररंजन चौधरी ने कहा कि कश्मीर मामला संयुक्त राष्ट्र (यूएन) में लंबित है, इसलिए यह अंदरूनी मसला कैसे हो सकता है। इस पर शाह ने चुनौती दी कि अगर सरकार ने कोई नियम तोड़ा हो तो बताएं। हम पाक के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) और अक्साई चिन को भी अपना मानते हैं। इसके लिए जान दे देंगे।
शाह ने सोमवार को राज्यसभा में कहा था कि जम्मू-कश्मीर दिल्ली और पुड्डुचेरी की तरह केंद्र शासित प्रदेश रहेगा यानी यहां विधानसभा रहेगी। वहीं लद्दाख की स्थिति चंडीगढ़ की तरह होगी, जहां विधानसभा नहीं होगी।
अमित शाह ने पुनर्गठन बिल पर कहा कि हम जम्मू कश्मीर के लिए 2 केंद्र शासित प्रदेश लेकर आ रहे हैं जिसमें लद्दाख और जम्मू कश्मीर होगी. जम्मू कश्मीर में विधानसभा होगी और चुना हुआ मुख्यमंत्री वहां काम करेगा. जम्मू कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है और इस पर कानून बनाने का अधिकार इस संसद को है. अमित शाह ने कहा कि हम सवाल का जवाब देने के लिए मैं तैयार हूं आप इसपर चर्चा कीजिए. हम शांत माहौल में चर्चा चाहते हैं क्योंकि घाटी समेत पूरा देश और दुनिया हमें देख रही है.
शाह-चौधरी के बीच तीखी बहस
चौधरी ने कहा कि आप (अमित शाह) कश्मीर के अंदरूनी मसला बताते हैं लेकिन 1948 से यूएन इस मामले को देख रहा है। इसे अंदरूनी मामला कैसे कह सकते हैं? हमने शिमला और लाहौर समझौते पर हस्ताक्षर किए, ये अंदरूनी मामले हैं या फिर द्विपक्षीय? कुछ दिन पहले एस जयशंकर ने अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो से कहा था कि कश्मीर द्विपक्षीय मुद्दा है, आप इसमें दखलअंदाजी नहीं कर सकते। क्या अब भी जम्मू-कश्मीर अंदरूनी मसला रह जाता है।
कांग्रेस ने 2 बार किया इस प्रावधान का प्रयोग: गृह मंत्री
लोकसभा में अमित शाह ने कहा कि विपक्ष जो भी पूछेगा उसका जवाब देंगे लेकिन पहले मुझे अपनी बात रखने दीजिए. उन्होंने कहा कि धारा 373 (3) का उपयोग कर राष्ट्रपति इसे सीज कर सकते हैं, लेकिन राष्ट्रपति तभी ये नोटिफिकेशन निकाल सकते हैं जब जम्मू कश्मीर संविधान सभा की अनुशंसा हो. उन्होंने कहा कि इस प्रावधान का उपयोग कांग्रेस 1952 और 1955 में कर चुकी है. महाराजा के लिए पहले सदर ए रियासत और फिर 1965 में इसे गवर्नर किया. आज कांग्रेस हल्ला कर रही है लेकिन राष्ट्रपति इसका उपयोग कर चुके हैं जिसपर सरकार की अनुशंसा मिली थी. जम्मू कश्मीर में विधानसभा नहीं चल रही है और ऐसे में इसी संसद में जम्मू कश्मीर के सारे अधिकार निहित हैं.
इस पर शाह ने कहा- जम्मू-और कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है। इस पर कोई कानूनी विवाद नहीं है। जब भारत और जम्मू-कश्मीर का संविधान बना था, तब उन्होंने भी स्वीकार किया था कि वह भारत का ही अभिन्न अंग है। अभी अनुच्छेद 370 के खंड-1 के जितने भी नियम हैं, वे लागू हैं। इसके 15वें भाग में उल्लेख है कि जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है। जम्मू-कश्मीर के संविधान में भी इसका उल्लेख है। इस देश को पूरा अधिकार है कि वह जम्मू-कश्मीर को लेकर इस प्रकार का कानून बना सके। जब मैं जम्मू और कश्मीर बोलता हूं तो पीओके और अक्साई चिन भी इसके अंदर आता है। हम इसके लिए जान दे देंगे। हम आक्रामक क्यों नहीं हों? क्या आप पीओके को भारत का हिस्सा नहीं मानते? हमारे संविधान ने जम्मू-कश्मीर की जो सीमाएं तय की हैं, उसमें पीओके भी आता है।
संसद को कश्मीर पर कानून बनाने का हक: अमित शाह
अमित शाह ने अधीर रंजन के सवाल का जवाब देते हुए कहा कि 1948 में यह मामला UN में पहुंचाया गया था. फिर इंदिराजी ने शिमला करार में भी इसका जिक्र किया. अमित शाह ने कहा कि जम्मू कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है इस पर कोई कानूनी या संवैधानिक विवाद नहीं है. उन्होंने कहा कि जम्मू कश्मीर ने भी इसे स्वीकार किया है. शाह ने कहा कि अनुच्छेद 370 (C) में इस बात का जिक्र भी है. जम्मू कश्मीर पर कानून बनाने के लिए यह संसद पूरी तरह सक्षम है. हम राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद यह संकल्प लेकर आए हैं.
विधेयक के विरोध में DMK
लोकसभा में डीएमके सांसद टीआर बालू ने कहा कि कश्मीर की परिस्थिति विशेष हैं लेकिन आपने राज्य विधानसभा से इस बारे में कोई चर्चा नहीं की, क्या यह सरकार लोकसभा के साथ वहां विधानसभा चुनाव नहीं कर सकती थी लेकिन इनकी मंशा ही नहीं थी. उन्होंने कहा कि संसद को संकल्प पास कर राष्ट्रपति के पास भेजने का अधिकार है और यही वजह से है रोज 2-3 विधेयकों की पैदावारी यहां हो रही है. बगैर चर्चा और वाद-विवाद के कानून बनाए जा रहे हैं. बालू ने कहा कि सरकार को इससे क्या हासिल होने वाला है आखिर उनका मकसद क्या है, ऐसे बिल पर हम या तो वॉक आउट करेंगे या खिलाफ में वोट करेंगे. आपने एक राज्य को 2 नगर पालिकाएं बना दिया, उन लोगों को फिक्र कौन करेगा. उन्होंने कहा कि देश में कई और भी मुद्दे हैं, गरीबी है, सीमा सुरक्षित नहीं है, घुसपैठ हो रही है, रोज लोग मारे जा रहे हैं. बालू ने कहा कि इन दो विधेयकों को पारित करने का हक सिर्फ विधानसभा का है, संसद इसकी अधिकारी नहीं है. वहां की संविधान सभा इसे सुलझाने में सक्षम है. लेकिन आपने सिर्फ अपने घोषणापत्र को लागू करते हुए 370 को हटा दिया, यह सिर्फ आपका मकसद है लेकिन जनता की मंशा कुछ और है. डीएमके ने इस बिल का विरोध किया है.
नेहरू की वजह से धारा 370 का कलंक: BJP सांसद
जम्मू कश्मीर पुनगर्ठन बिल पर चर्चा के दौरान बीजेपी सांसद जुगल किशोर शर्मा ने कहा कि नेहरू की वजह से यह धारा 370 का कलंक हमारे ऊपर लगा. उन्होंने कहा कि सरदार पटेल और श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने तब भी इसका विरोध किया था. इस धारा ने कश्मीर को सिर्फ भारत से दूर करने का काम किया है. इसी वजह से वहां भ्रष्टाचार बढ़ता चला गया क्योंकि केंद्र की एजेंसियों वहां जांच नहीं कर सकती. मोदी सरकार की ओर से सामान्य वर्ग के गरीबों को मिलने वाला 10 फीसदी आरक्षण भी वहां लागू नहीं होता. आतंकवाद भी धारा 370 की ही देन है जिसकी वजह से हजारों लोग और जवानों को जान गंवानी पड़ी.
नेहरू की वजह से कश्मीर भारत का अभिन्न अंग: तिवारी
कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने कि बगैर संविधान सभा की इजाजत के धारा 370 को खारिज नहीं किया जा सकता जो आज मौजूद नहीं है. तिवारी ने कहा कि जम्मू कश्मीर विधानसभा-विधान परिषद का मतलब यह संसद नहीं है. उन्होंने कहा कि जम्मू कश्मीर का अलग संविधान है जो 1957 को लागू हुआ था क्या अब प्रदेश के बंटवारे के बाद उस संविधान को खारिज करने का बिल भी सरकार लेकर आएगी. उन्होंने कहा कि संघीय ढांचे के ऊपर इससे बड़ा आघात नहीं हो सकता, साथ ही आज अगर जूनागढ़, हैदराबाद और जम्मू कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा है तो उसके पीछे पंडित नेहरू ही वजह थे. अमित शाह ने कहा कि कांग्रेस बताए कि वह धारा 370 के पक्ष में हैं या इसके खिलाफ हैं. तिवारी ने कहा कि बगैर जम्मू कश्मीर संविधान सभा की मंजूरी के धारा 370 को खारिज नहीं किया जा सकता.
'राष्ट्रपति को अनुच्छेद 370 निष्क्रिय करने का अधिकार'
शाह ने कहा- ''इस सदन ने बहुत सारे ऐतिहासिक क्षण देखे हैं। मैं गर्व के साथ कहना चाहता हूं कि यह प्रस्ताव और बिल इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों से लिखे जाएंगे। कल अनुच्छेद 370 1डी का प्रस्ताव पास किया गया। इसमें उल्लेख किया गया है कि जम्मू-कश्मीर को विधानसभा कहकर ही बुलाया जाएगा। अनुच्छेद 370 की धारा तीन के तहत राष्ट्रपति को अधिकार है कि एक नोटिफिकेशन जारी कर 370 को निष्क्रिय कर सकते हैं। वे तब ही नोटिफिकेशन जारी कर सकते हैं, जब जम्मू-कश्मीर संविधान की अनुशंसा हो। उसके बाद ही यह हुआ है। कांग्रेस ने भी 1952 और 1965 में इसका इस्तेमाल किया था। राष्ट्रपति ने कैबिनेट की अनुशंसा के बाद ही ऐसा किया है। मुझे उम्मीद है कि सदन के सभी सदस्य धारा 370 हटाने के लिए एक साथ वोट करेंगे।''
अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी किया
इससे पहले केंद्र ने जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले 70 साल पुराने अनुच्छेद 370 को केंद्र सरकार ने सोमवार को हटा दिया। इसके लिए गृह मंत्री अमित शाह ने राज्यसभा में अनुच्छेद 370 को हटाने का संकल्प पेश किया। कुछ ही देर बाद राष्ट्रपति की मंजूरी वाली अधिसूचना भी जारी हो गई। इससे जम्मू-कश्मीर में भी भारत का संविधान लागू होने का रास्ता साफ हो गया।