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कैलाश सत्यार्थी के कदम से कदम मिलाएं, और बाल दिवस को सार्थक बनाएं
लेखक- शिव कुमार मिश्र
आज अंतर्राष्ट्रीय बाल दिवस है। यह दिन दुनिया के बच्चों के नाम है। लेकिन आज भी 15 करोड़ बच्चे बाल मजदूरी के रूप में गुलामी का जीवन जी रहे हैं। आधुनिक युग की दासता की यह एक अंतहीन कहानी है। लेकिन इस "अंतहीन" कहानी के "अंत" के लिए जो व्यक्ति संघर्ष कर रहा है... जिनकी गूंगी और खामोश जबान को आवाज दे रहा है... आज उसको याद किया जाना, उसके कार्यों की चर्चा करना लाजिमी बनता है। उस शख्स का नाम है कैलाश सत्यार्थी। नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित ये वही कैलाश सत्यार्थी हैं जिन्हें दुनियाभर में बच्चों के अधिकारों का योद्धा माना जाता है। 67 साल की उम्र में भी आप इस नोबेल विजेता को भारत से लेकर अफ्रीका, एशिया और यूरोप के देशों में सड़कों पर उतर कर संघर्ष करते हुए देख सकते हैं। बाल अधिकारों को सशक्त आवाज देने के लिए वे नोबेल विजेताओं और दुनियाभर के प्रभावी नेताओं को लामबंद कर रहे हैं। विश्व के तमाम मंचों पर लगातार बच्चों के सवाल उठा रहे हैं। उनकी बदौलत ही आज हाशिए के बच्चे वैश्विक चर्चा के केंद्र में आ चुके हैं। इसीलिए बच्चों की उम्मीद बन चुके कैलाश सत्यार्थी को लोग अब "बच्चों की आस-कैलाश" कहने लगे हैं।
कैलाश सत्यार्थी युवाओं से अकसर कहते हैं कि सपना वह नहीं है जो आप नींद में देखते हैं। सपना वह होता है जो आपको सोने नहीं देता। ऐसा वह केवल कहते नहीं, बल्कि इसे खुद जीते भी हैं। वह अपने जीते-जी दुनिया से बाल मजदूरी को खत्म होते देखना चाहते हैं। वे एक ऐसी दुनिया का सपना देखते हैं, जहां सभी बच्चों का बचपन खुशहाल, शिक्षित, सुरक्षित और आजाद हो। उन्होंने अपने सपनों को बच्चों के सपनों से जोड़ लिया है। इसे पूरा करने के लिए वे एक से एक रचनात्मक अभिनव पहल करते आ रहे हैं। बाल मित्र ग्राम, बाल आश्रम, लॉरिएट्स एंड लीडर्स, जनजागरुकता यात्राएं, 100 मिलियन फॉर 100 मिलियन कैंपेन आदि उनकी कुछ ऐसी ही असाधारण पहल है। इन पहलों और अभियानों का एकमात्र उद्देश्य दुनियाभर में बच्चों के मुद्दों के प्रति जागरुकता पैदा करना और उनके अधिकारों को वैश्विक चर्चा के केंद्र में लाना है। श्री सत्यार्थी का मानना है कि बच्चे यदि हमारा भविष्य हैं और वही अपने अधिकारों से वंचित रह जाते हैं तो एक बेहतर दुनिया का निर्माण नहीं किया जा सकता। इसलिए सरकारों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हर बच्चे को उसका अधिकार प्राप्त हो।
इंजीनियरिंग का अपना बेहतरीन करियर छोड़कर श्री सत्यार्थी चार दशकों से बाल अधिकारों की लड़ाई लड़ रहे हैं। उनके प्रयास से बाल श्रम के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय कानून बना। भारत सहित दुनिया के तमाम देशों में बच्चों के हक में कानून और नीतियां बनवाने का श्रेय भी उन्हीं को जाता है। इन कानूनों और नीतियों की लिस्ट भी बहुत लंबी है। बच्चों के अधिकारों को सुरक्षित करने के लिए उन्होंने जितना कुछ किया है उसकी गिनती नहीं है। मौजूदा दौर में कोरोना महामारी की वजह से पूरी दुनिया आर्थिक संकट में है। जिसका सबसे ज्यादा असर बच्चों पर हो रहा है। इस महामारी के दौर में बच्चों को उनका हक और अधिकार मिले इसके लिए भी वे लगातार प्रयास कर रहे हैं। कोरोना महामारी की वजह से बच्चे अपने बचपन और आजादी की कीमत पर बाल मजदूरी करने को मजबूर हो रहे हैं। यूनेस्को इंस्टीट्यूट ऑफ स्टैटेस्टिक्स की ग्लोबल एजूकेशन मॉनिटरिंग रिपोर्ट के अनुसार दुनिया के एक अरब से ज्यादा बच्चे स्कूलों से बाहर हो गए हैं। इसीलिए श्री सत्यार्थी का मानना है कि बाल अधिकारों के क्षेत्र में अभी तक जितनी भी प्रगति हासिल हुई है, अगर कोरोना महामारी से उत्पन्न संकट को नहीं टाला जाता है तो सारी की सारी उपलब्ध्यिां धरी की धरी रह जाएंगी। ऐसे में एक बार फिर बड़ी संख्या में बच्चे गुलामी और दासता के शिकार हो जाएंगे।
श्री सत्यार्थी महामारी से उत्पन्न संकट से बच्चों को उबारने के लिए फिलहाल दो मोर्चों पर सक्रिय रूप से काम कर रहे हैं। एक है- सड़क पर संघर्ष और दूसरा है- वैश्विक दबाव बनाने के लिए दुनिया के तमाम नेताओं को बच्चों के हक में लामबंद करना। "लॉरिएट्स एंड लीडर्स फॉर चिल्ड्रेन" के तहत वे बच्चों के अधिकारों को आवाज देने के लिए नोबेल पुरस्कार विजेताओं और दुनिया के तमाम बड़े नेताओं को लामबंद कर रहे हैं। जबकि हाशिए के वंचित बच्चों के अधिकारों के संघर्ष के लिए उन्होंने "100 मिलियन फॉर 100 मिलियन कैंपेन" नामक एक आंदोलन की शुरुआत की है। यह आंदोलन फिलहाल 40 देशों में चलाया जा रहा है। लॉरिएट्स एंड लीडर्स के बैनर तले उन्होंने 9 और 10 सितंबर 2020 को ''फेयर शेयर फॉर चिल्ड्रेन'' के नाम से बच्चों के हक में दो दिवसीय समिट का आयोजन किया है। समिट के जरिए श्री सत्यार्थी के नेतृत्व में नोबेल पुरस्कार विजेताओं और वैश्विक नेताओं ने दुनिया के अमीर देशों और अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं से आह्वान किया है कि वे महामारी से प्रभावित समाज के सबसे कमजोर और हाशिए के बच्चों की सुरक्षा, शिक्षा और स्वास्थ्य के लिए तत्काल एक ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की मदद करें। अमीर देशों के संगठन जी-20 ने कोरोना महामारी से उबरने के लिए 5 ट्रिलियन डॉलर मदद का एलान किया था। दुनिया में 20 फीसदी आबादी बच्चों की है। इसलिए श्री सत्यार्थी मांग कर रहे हैं कि इस मदद का 20 फासदी हिस्सा यानी एक ट्रिलियन डॉलर बच्चों पर खर्च किया जाए। "फेयर शेयर फॉर चिल्ड्रेन" की मांग समय रहते यदि मान ल जाती है तो कोई कारण नहीं कि इससे एक ओर जहां संयुक्त राष्ट्र संघ के सतत विकास लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद मिलेगी, वहीं दूसरी ओर दुनिया के 7 करोड़ लोगों की भी भुखमरी के कगार पर जाने से बचाया जा सकेगा। समाज के कमजोर और हाशिए के बच्चों की शिक्षा और स्वास्थ्य से संबंधित जरूरतों को पूरा किया जा सकेगा।
''100 मिलियन फॉर 100 मिलियन'' कैम्पेन बच्चों के अधिकारों के जमीनी संघर्ष लिए दुनियाभर के छात्रों, युवाओं और नौजवानों को एक जुटकर करने का अभियान है। यह एक ऐसा कैम्पेन है जिसके माध्यम से दुनिया के 10 करोड़ संपन्न और विशेषाधिकार प्राप्त युवा उन 10 करोड़ बच्चों और युवाओं के अधिकारों के लिए संघर्ष करेंगे जो अधिकाररहित और हाशिए का जीवन जी रहे हैं। "100 मिलियन फॉर 100 मिलियन" कैम्पेन का आगाज कैलाश सत्यार्थी के नेतृत्व में भारत की राजधानी नई दिल्ली के राष्ट्रपति भवन में 11 दिसंबर 2016 को किया गया था। समारोह में भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी और नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित विश्व प्रसिद्ध आध्यात्मिक नेता दलाई लामा समेत विश्व के करीब 50 प्रमुख नेताओं ने 6,000 युवाओं के साथ मिलकर '100 मिलियन फॉर 100 मिलियन' को हरी झंडी दिखाई। राष्ट्रपति भवन से इंडिया गेट तक मार्च करते हुए इन हस्तियों ने सभी बच्चों को स्वतंत्र, सुरक्षित और शिक्षित करने की मांग भी की। इस कैम्पेन का मुख्य लक्ष्य बच्चों से संबंधित स्थानीय समस्याओं का समाधान करना है। स्थानीय समूह अपने आसपास अन्याय और भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाते हुए जिम्मेदार लोगों से मांग करते हैं कि बच्चों के खिलाफ होने वाले सभी प्रकार के शोषण को वे समाप्त करें और वे ऐसी नीतियां और योजनाएं बनाएं, जिसमें जाति, धर्म, लिंग और नस्ल के आधार पर किसी तरह का भेदभाव नहीं हो।
श्री सत्यार्थी की बच्चों के प्रति यह गहरी करुणा, कर्तव्य और नैतिकता ही है कि उन्हें चैन से बैठने नहीं देतीं। कोरोना काल के दौरान उनके नेतृत्व में बचपन बचाओ आंदोलन ने भारत के कोने-कोने में ट्रैफिकिंग एवं बाल श्रम के खिलाफ सघन जन-जागरुकता अभियान चलाया और पुलिस की मदद से सीधी छापामार कार्रवाई करके 1500 से अधिक बच्चों को ट्रैफिकिंग तथा बाल श्रम के दलदल में धंसने से बचाया।
अंतर्राष्ट्रीय बाल दिवस श्री सत्यार्थी के नेतृत्व में 1998 में आयोजित उस ऐतिहासिक "ग्लोबल मार्च अगेंस्ट चाइल्ड लेबर" को भी याद करने का दिन है, जिसके फलस्वरूप 1999 में अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) ने बाल श्रम के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय कानून आईएलओ कन्वेंशन-182 को पारित करते हुए बाल श्रम के सभी रूपों पर प्रतिबंध लगा दिया था। बाल श्रम के मुद्दे पर 6 महीने तक चली यह वैश्विक यात्रा तब 103 देशों से गुजरी थी और 80 हजार किलोमीटर की दूरी तय की थी। इसमें 100 से ज्यादा राष्ट्राध्यक्ष, राजा-रानी और वैश्विक नेता शामिल हुए थे। कानून बनने के करीब दो दशक बाद अब बाल मजदूरों की संख्या घटकर लगभग 15 करोड़ हो गई है, जबकि ग्लोबल मार्च के समय यह संख्या 26 करोड़ के ऊपर थी। श्री सत्यार्थी की वजह से आज 10 करोड़ बच्चों का जीवन खुशहाल बन गया है।
अंतरराष्ट्रीय बाल दिवस हर साल आता है और मनाया जाता है। लेकिन इस बाल दिवस की सार्थकता तभी बढ़ेगी जब हम सब मिलकर श्री कैलाश सत्यार्थी की मुहिम में शामिल हों और इसे आगे बढाएं। आइए, इस अवसर पर हम यह शपथ लें कि बच्चों की परेशानियों को दूर करने की हरसंभव कोशिश करेंगे। श्री सत्यार्थी द्वारा सरकारों से की जा रही मांगों और कदमों का परोक्ष और प्रत्यक्ष तरीके से समर्थन करेंगे। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि एक सभ्य और मानवीय दुनिया की कल्पना हम तभी कर सकते हैं जब उसमें सभी बच्चों के अधिकार सुरक्षित हों।
(लेखक स्पेशल न्यूज कवरेज डॉट इन के संपादक हैं)