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अभी अभी लिव इन रिलेशनशिप के रजिस्ट्रेशन वाली अर्जी देख नाराज हुए CJI चंद्रचूड़, लगाई याचिककर्ता को कड़ी फटकार और बोले

Shiv Kumar Mishra
21 March 2023 11:53 AM IST
अभी अभी लिव इन रिलेशनशिप के रजिस्ट्रेशन वाली अर्जी देख नाराज हुए CJI चंद्रचूड़,    लगाई याचिककर्ता को कड़ी फटकार और बोले
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याचिका में लिव इन रिलेशनशिप के रजिस्ट्रेशन और सरकार से इसका डाटाबेस तैयार करने की मांग की गई थी।

Live-in Relationship.:सुप्रीम कोर्ट ने 20 मार्च को लिव इन रिलेशनशिप (Live in Relationship) के पंजीकरण की मांग वाली पीआईएल खारिज कर दी। साथ ही याचिकाकर्ता को कड़ी फटकार भी लगाई। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़ (CJI DY Chandrachud), जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस जेबी पारदीवाला की बेंच ने मामले की सुनवाई करते हुए याचिकाकर्ता की मंशा पर भी सवाल खड़े किए।

अर्जी देख बिफर पड़े सीजेआई चंद्रचूड़

चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ (CJI DY Chandrachud) ने PIL पर कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि क्या आप लिव-इन में रहने वाले लोगों की सुरक्षा से खिलवाड़ चाहते हैं? नहीं चाहते कि लोग लिव इन में रहें? सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि अगर एक महिला और पुरुष बगैर शादी के साथ रहने का निर्णय लेते हैं तो इसमें केंद्र सरकार का क्या काम? ऐसी बेतुकी याचिका का क्या मतलब है? इस पर तो जुर्माना लगाया जाना चाहिए।

याचिका में क्या मांग की गई थी?

एडवोकेट ममता रानी ने अपनी पीआईएल में अर्जी लगाई थी कि लिव-इन में रहने वाले लोगों की सिक्योरिटी की व्यवस्था की जाए। याचिका में यह भी कहा गया था लिव इन को रजिस्टर ना करना संविधान के आर्टिकल 19 और आर्टिकल 21 का उल्लंघन है। याचिका में लिव इन रिलेशनशिप को लेकर कानून बनाने की भी मांग की गई थी और केंद्र सरकार से डेटाबेस तैयार करने की भी मांग थी।

याचिका में तर्क दिया गया था कि हाल के दिनों में लिव-इन पार्टनर के बीच हिंसा में भी बढ़ोतरी आई है। रेप और मर्डर जैसी घटनाएं भी सामने आई हैं। ऐसे में लिव इन रिलेशनशिप के रजिस्ट्रेशन से ऐसी घटनाओं पर रोक लगाई जा सकेगी।

लिव इन रिलेशनशिप को लेकर क्या कहता है कानून?

लिव इन रिलेशनशिप (Live in Relationship) मतलब दो वयस्क लोगों का बगैर शादी के एक साथ एक छत के नीचे रहना। हालांकि लिव इन रिलेशनशिप की कोई अलग से कानूनी परिभाषा नहीं है। लेकिन साल 1978 में बद्री प्रसाद बनाम डायरेक्टर आफ कंसोलिडेशन केस में सुप्रीम कोर्ट ने पहली बार लिव इन रिलेशनशिप को तरीके से मान्यता दी थी।

इस केस में सुप्रीम कोर्ट ने माना था कि दो वयस्क लोगों का लिव इन रिलेशनशिप किसी भारतीय कानून का उल्लंघन नहीं है। कोर्ट ने कहा था कि अगर कोई कपल लंबे समय से साथ रहा है रहा है तो यह शादी ही मानी जाएगी।

इसी तरह…संविधान के आर्टिकल 19 से लेकर आर्टिकल 22 में मौलिक अधिकारों का जिक्र है। लिव इन रिलेशनशिप की जड़ भी एक तरीके से इन्हीं आर्टिकल में है। कानून के जानकार बताते हैं कि लिव इन रिलेशनशिप स्वतंत्र तरीके से जिंदगी जीने के दायरे में ही आता है और आर्टिकल 21 से अलग नहीं है।

घरेलू हिंसा का कानून भी होता है लागू

इसी तरह इंदिरा शर्मा बनाम वी.के. शर्मा केस में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि घरेलू हिंसा कानून (Domestic Violence Act, 2005) लिव इन रिलेशनशिप पर भी लागू होता है।

सोर्स जनसत्ता

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