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जानिए क्या होता है उपछाया चंद्र ग्रहण और क्या होते हैं इसके नियम
5 जून यानि शुक्रवार की रात इस वर्ष का दूसरा चंद्र ग्रहण होगा। हालांकि ये उपछाया चंद्र ग्रहण है। इस ग्रहण को पूरे भारत में देखा जा सकेगा। आपको बता दें कि इस वर्ष चार चंद्रग्रहण लगने हैं। इनमें से पहला चंद्रग्रहण एक जनवरी को लग चुका है। दूसरा इस माह है। तीसरा जुलाई और चौथा नवंबर में होगा। 5 जून को होने वाला चंद्रग्रहण उपछाया होगा। इसका अर्थ है कि चांद, पृथ्वी की हल्की छाया से होकर गुजरेगा। आपको यहां पर ये भी बता दें कि इसी माह में सूर्य ग्रहण भी है जो 21 जून को होगा। इन दोनों की ही पौराणिक और वैज्ञानिक महत्व हैं। आइये जानते हैं इस खगोलीय घटना के पीछे छिपे कारणों असल वजह।
क्यों होता है
दरअसल, जब सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा एक ही सीध में होते हैं तो चंद्रग्रहण लगता है। ऐसे में पृथ्वी सूर्य और चंद्रमा के बीच में आ जाती है और सूर्य की किरणें चंद्रमा तक नहीं पहुंच पाती हैं। यह चंद्रग्रहण 3.18 घंटे का होगा। इसकी शुरुआत 5 जून को रात 11.15 होगी और 6 जून की सुबह 12.54 ये अधिकतम और सुबह 2.34 मिनट पर ये खत्म हो जाएगा। इस ग्रहण को एशिया, यूरोप, ऑस्ट्रेलिया और अफ्रीका के लोग देख सकते हैं।
अंतर करना मुश्किल
आपको यहां पर ये भी बता दें कि उपछाया चंद्र ग्रहण होने के कारण लोगों के बीच सामान्य चांद और ग्रहण वाले चांद के बीच अंतर करना मुश्किल होगा। इस ग्रहण के दौरान चंद्रमा के आकार में कोई परिवर्तन नहीं आएगा। इस दौरान चंद्रमा की छवि कुछ धुंधली जरूर हो जाएगी और ये कुछ मटमैला सा दिखाई देगा। इसकी वजह यह है कि यह वास्तविक चंद्रग्रहण नहीं है यह एक उपछाया चंद्रग्रहण है। इससे पहले 10 जनवरी को ऐसा ही चंद्रग्रहण लगा था।
चंद्र मालिन्य
ग्रहण लगने से पहले चंद्रमा पृथ्वी की उपछाया में प्रवेश करती है, जिसे चंद्र मालिन्य कहते हैं। उपछाया चंद्र ग्रहण के दौरान चंद्रमा उपछाया में प्रवेश करके उपछाया शंकु से ही बाहर निकल कर आ जाता है और भूभा जिसे अंग्रेजी में (Umbra) कहते हैं, में प्रवेश नहीं करता है। इसलिए उपछाया के समय चंद्रमा का बिंब केवल धुंधला पड़ता है, काला नहीं होता है। यही वजह है कि इसे उपछाया चंद्र ग्रहण कहते हैं।
बाध्यताएं नहीं
इस ग्रहण में दूसरे ग्रहण के समान बाध्यताएं नहीं होती हैं। इसमें न तो सूतक माना जाता है और न ही पूजा-पाठ की कोई मनाही है। इसके अलावा इस दौरान जागने की भी पांबदी नहीं है। इसे न देखने जैसा भी नियम नहीं है। इस दौरान आप भोजन भी कर सकते हैं और सामान्य रूप से दिनचर्या रख सकते हैं। ग्रहण के लिए दान करने का नियम भी इस पर लागू नहीं होता है। इसके बावजूद आपको बता दें कि दान देना प्राचीन काल से भारतीय संस्कृति का एक हिस्सा रहा है। भले ही उपछाया चंद्रग्रहण के दौरान दान देने की बाध्यता नहीं है, लेकिन ऐसा करने से जो मानसिक शांति और दूसरों को लाभ मिलता है इसकी कल्पना करना भी सुखद होता है।
ये है पौराणिक कथा
हिंदू धर्म में चंद्रग्रहण के पीछे राहु व केतु का प्रभाव होता है। समुद्र मंथन के दौरान देवताओं व दानवों के बीच अमृत पाने को लेकर युद्ध चल रहा था। अमृत का देवताओं को सेवन करवाने के लिए भगवान विष्णु सुंदर कन्या का रूप धारण कर सभी में अमृत बांटने लगे। इस बीच एक असुर देवताओं के बीच जाकर बैठ गया। उसने जैसे ही अमृत हासिल किया तो भगवान सूर्य व चंद्रमा को इस बात का पता चल गया। जब उन्होंने इसकी जानकारी भगवान विष्णु को दी तो उन्होंने अपने सुदर्शन चक्र से उसकी गर्दन धड़ से अलग कर दी। अमृत पीने के कारण वह मरा नहीं तथा उसका सिर व धड़ अलग होकर राहु तथा केतु नाम से विख्यात हो गए। इस घटना के कारण राहु व केतु सूर्य और चंद्रमा को ग्रहण के रूप में लगते हैं।