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लखीमपुर खीरी हिंसा की घटना पर सुप्रीम कोर्ट की तल्ख टिप्पणी, कहा- ऐसी घटनाओं की जिम्मेदारी कोई नहीं लेता
उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में हुई हिंसा के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा है कि जब ऐसी दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएं होती हैं, तो कोई भी जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं होता है। प्रदर्शनकारी दावा तो करते हैं कि उनका प्रदर्शन शांतिपूर्ण है, लेकिन जब वहां हिंसा होती है तो कोई जिम्मेदारी लेने के लिए तैयार नहीं होते हैं।
वहीं केंद्र की तरफ से पेश अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि लखीमपुर खीरी जैसी घटनाओं को रोकने के लिए किसानों के विरोध-प्रदर्शन पर तुरंत रोक लगाने की जरूरत है।
किसानों की याचिका पर हुई सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट में किसान महापंचायत की उस याचिका पर सुनवाई हो रही थी, जिसमें जंतर-मंतर पर सत्याग्रह करने की अनुमति मांगी गई थी। इस पर कोर्ट ने कहा कि वह इस बात की जांच करेगा कि क्या विरोध करने का अधिकार एक पूर्ण अधिकार है।
दो जजों की बेंच ने की सुनवाई
जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस सीटी रविकुमार की बेंच ने केस की सुनवाई की। उन्होने कहा कि इन घटनाओं में जनहानि के मामले सामने आते हैं, संपत्ति को नुकसान पहुंचता है, लेकिन कोई इसकी जिम्मेदारी नहीं लेता।
बंद हो विरोध प्रदर्शन
AG ने कहा कि जब कोर्ट में कृषि कानूनों के मुद्दे पर पहले से याचिकाएं लगी हुई हैं। जब मुद्दा कोर्ट में है, तो किसी को प्रदर्शन नहीं करना चाहिए। बीते दिन बेहद खराब घटना देखने मिली। लोगों को इस तरह सड़कों पर नहीं उतरना चाहिए था। विरोध प्रदर्शन बंद होना चाहिए।
तीनों कानून वापस नहीं होंगे
सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि वह तीनों कृषि कानूनों को वापस नहीं लेगी। अब किसानों के पास उन्हें कोर्ट में चुनौती देने का विकल्प बचा है। कानून का विरोध समझ से परे है, क्योंकि यह किसी पर जबरदस्ती लागू नहीं किया जा रहा है।
जंतर-मंतर पर धरने की अनुमति मांगी थी
कोर्ट ने किसान महापंचायत की याचिका पर तीखी टिप्पणी की। कोर्ट ने कहा कि आप एक तरफ तो अदालत में याचिका दायर करते हैं और दूसरी तरफ कहते हैं कि विरोध भी करेंगे। कोर्ट उस याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें किसान संगठनों ने कोर्ट से अपील की थी कि वह उन्हें दिल्ली के जंतर-मंतर पर धरना देने की अनुमति दे।